नई दिल्लीः तालिबान ने जब अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया तो इसी बीच एक खबर आई. खबर थी कि जलालाबाद में तालिबानियों ने 4 लोगों की हत्या कर दी. वजह बताई गई कि उन्होंने तालिबान का झंडा उतारकर विरोध किया था. दरअसल, अफगान लोगों ने अपने तीन रंगों वाला झंडा फहराया था और तालिबान के सफेद बैकग्राउंड पर शहादा लिखे झंडे को उतार फेंका था. अफगान को डर है कि तालिबानियों के झंडे से उनकी पहचान पर असर पड़ेगा और ये पहचान ISIS की तरह हो जाएगी.
एक-दूसरे को पसंद नहीं करते ISIS-तालिबान
तालिबान और ISIS, ये दोनों ही जमातें ऐसी हैं, जिन्होंने दुनिया में सिर्फ आतंक मचा रखा है और दहशत का दूसरा नाम बने बैठे हैं. काबुल में विस्फोट के बाद एक बार फिर से चर्चा चल पड़ी है कि तालिबान और ISIS में क्या संबंध हैं. दरअसल, दोनों के बीच एक संबंध तो यही है कि दोनों ही अतिवादी आतंकी हैं.
लेकिन, मजे की बात है कि दहशत गर्द दोनों ही संगठन एक-दूसरे को फूटी आंख भी नहीं सुहाते हैं. आईएसआईएस ने 19 अगस्त को आधिकारिक बयान जारी कर कहा था कि तालिबान अमेरिका का पिट्ठू है.
क्यों है दोनों को खतरा
ऐसी भी कई रिपोर्ट आ चुकी हैं, जिनमें कहा गया है कि अफगानिस्तान में सरकार बनाने जा रहे तालिबान को सबसे ज्यादा खतरा आईएसआईएस से लग रहा है. अगर अफगानिस्तान में इस्लामिक स्टेट का प्रभाव बढ़ता है तो इससे तालिबान का असर कम होगा. दूसरा, तालिबान अफगान धरती पर आईएसआईएस को रोककर दुनिया को यह संदेश देने की कोशिश भी कर सकता है कि वह आतंकी संगठनों को अब पनाह नहीं दे रहा.
एक संबंध जो अमेरिका से जुड़ा है
तालिबान को लेकर तो खुला इतिहास है कि इसके पनपने के पीछे अमेरिका का खाद-पानी है. सोवियत संघ का अफगान से प्रभाव हटाने के लिए अमेरिका ने यहां के मुजाहिदों को ट्रेनिंग दी और फिर उन्हें ही सोवियत के खिलाफ इस्तेमाल किया. आज वही तालिबान, आतंकी बनकर सामने है. ISIS के साथ भी सबसे खास तथ्य है कि इन्हें भी हथियार और प्रशिक्षण अंजाने में ही सही लेकिन अमेरिका से ही मिले हैं.
ऐसे मिले अमेरिका से हथियार
हुआ यूं कि अबू बकर अल बगदादी ने पहले आईएसआई की स्थापना की थी. इसके बाद वह प्रभाव जमाने के लिए सीरिया चला गया. जून 2013 को फ्री सीरियन आर्मी के जनरल ने दुनिया से अपील की थी कि अगर उन्हें हथियार नहीं मिले तो वो जंग हार जाएंगे. इसके बाद अमेरिका, इस्राइल, जॉर्डन, टर्की, सऊदी अरब और कतर ने फ्री सीरियन आर्मी को हथियार, पैसे, और ट्रेनिंग दी.
लेकिन हुआ ऐसा कि फ्री सीरियन आर्मी के लिए आए हथियार 2014 तक आईएसआईएस (इस्लामिक स्टेट इराक एंड सीरिया) तक जा पहुंचे. आईएस दुनिया को धोखे में रखा और इसी धोखे में अमेरिका ने अनजाने में आईएस के आतंकवादियों को ट्रेनिंग दे दी.
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दोनों के बीच झंडे का भी झगड़ा
तालिबानियों ने अफगानिस्तान को 1996 में जब "इस्लामिक एमिरेट्स" बनाने का एलान किया था तब उन्होंने जो झंडा अपनाया था. वह पूरी तरह से सफेद था. तब तालिबानियों ने कहा था कि यह झंडा उनके इस्लाम में विश्वास और सरकार की शुद्धता का प्रतीक है. 1997 में तालिबान ने अपने झंडे में शहादा को जोड़ दिया. इसमें जिस तरह के अक्षरों के आकार का इस्तेमाल किया गया है वह पैगंबर मोहम्मद साहब की ओर से लिखे गए पत्रों के ऊपर लगी मुहर से मिलता जुलता है.
आईएसआईएस के झंडे में भी शहादा का इस्तेमाल किया गया है. काले रंग के झंडे पर बीचोबीच सफेद बैकग्राउंड पर शहादा यानी इस्लाम की गवाही वाला कलमा लिखा है. तालिबान और आईएसआईएस का झंडा लगभग एक जैसा है.
इस्लाम के पांच मूल तत्वों में शहादा पहला है. इसका अर्थ है शहादत. यह एक कसम की तरह है जो मानती है कि अल्लाह के अलावा कोई और इबादत के लायक नहीं है. मुहम्मद साहब उनके भेजे हुए पैगंबर हैं.
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