तालिबान का कहर, `अफगानिस्तान छोड़ने वालों में 80% महिलाएं और बच्चे`
रविवार को काबुल के पतन से पहले ही, स्थिति तेजी से बिगड़ रही थी, सभी विदेशी सैन्य कर्मियों की नियोजित वापसी और अंतरराष्ट्रीय सहायता में गिरावट के कारण स्थिति और खराब हो गई थी.
नई दिल्ली: तालिबान जैसे-जैसे अफगानिस्तान पर अपनी पकड़ मजबूत करता जा रहा है, देश एक बार फिर महिलाओं के लिए एक बेहद खतरनाक जगह में तब्दील होता जा रहा है. रविवार को काबुल के पतन से पहले ही, स्थिति तेजी से बिगड़ रही थी, सभी विदेशी सैन्य कर्मियों की नियोजित वापसी और अंतरराष्ट्रीय सहायता में गिरावट के कारण स्थिति और खराब हो गई थी.
पिछले कुछ हफ्तों में ही, हिंसा और उनमें हताहत होने वालों की कई खबरें आई हैं. इस बीच, सैकड़ों हजारों लोग अपने घरों को छोड़कर भाग गए हैं. संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी का कहना है कि मई के अंत से जो लोग भाग गए हैं उनमें से लगभग 80% महिलाएं और बच्चे हैं. तालिबान की वापसी महिलाओं और लड़कियों के लिए क्या मायने रखती है?
तालिबान का इतिहास
इस्लामिक कानून की सख्त व्याख्या के बाद कठोर परिस्थितियों और नियमों को लागू करते हुए तालिबान ने 1996 में अफगानिस्तान पर नियंत्रण किया था।
उनके शासन में, महिलाओं को खुद को ढंकना होता था और उन्हें किसी पुरुष संरक्षक के साथ ही घर से बाहर जाने की इजाजत थी. तालिबान ने लड़कियों के स्कूल जाने और महिलाओं के घर से बाहर काम करने पर भी प्रतिबंध लगा दिया. उन्हें वोट देने पर भी रोक लगा दी गई थी. महिलाओं को इन नियमों का उल्लंघन करने पर क्रूर दंड दिया जाता था, जिसमें व्यभिचार का दोषी पाए जाने पर पीटना, कोड़े मारना और संगसार अर्थात पत्थर मारकर हत्या करना शामिल था. उस समय अफगानिस्तान में दुनिया में सबसे ज्यादा मातृ मृत्यु दर थी.
पिछले 20 साल
2001 में तालिबान के पतन के साथ, महिलाओं और लड़कियों की स्थिति में काफी सुधार हुआ, हालांकि ये लाभ आंशिक और नाजुक थे. महिलाएं अब राजदूत, मंत्री, राज्यपाल, पुलिस और सुरक्षा बल के सदस्यों के रूप में पदों पर हैं. 2003 में, नई सरकार ने महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर कन्वेंशन की पुष्टि की, जिसके लिए राज्यों से अपने स्थानीय कानून में लैंगिक समानता को शामिल करने के लिए कहा गया.
2004 के अफगान संविधान में कहा गया, "अफगानिस्तान के नागरिकों, पुरुष और महिला, के कानून के समक्ष समान अधिकार और कर्तव्य हैं." इस बीच, महिलाओं को जबरन और कम उम्र में शादी और हिंसा से बचाने के लिए 2009 का एक कानून पेश किया गया. ह्यूमन राइट्स वॉच के अनुसार, कानून के बाद महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हिंसक अपराधों की सूचना देने, जांच और कुछ हद तक दोषसिद्धि में वृद्धि देखी गई. एक समय देश में स्कूलों में लड़कियों की संख्या लगभग नहीं के बराबर थी, जो आज हजारों में है, प्रगति धीमी और अस्थिर रही है. रिपोर्ट के अनुसार 37 लाख अफगान बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं, जिनमें से लगभग 60% लड़कियां हैं.
काले दिनों की वापसी
तालिबान नेताओं ने आधिकारिक तौर पर कहा है कि वे महिलाओं के अधिकारों को 'इस्लाम के अनुसार' देना चाहते हैं, लेकिन अफगानिस्तान में महिला नेताओं सहित, सभी इसे बहुत संदेह से देख रहे हैं. दरअसल, तालिबान ने हर संकेत दिया है कि वे अपने दमनकारी शासन को फिर से लागू करेंगे. जुलाई में, संयुक्त राष्ट्र ने बताया कि वर्ष के पहले 6 महीनों में मारी गई और घायल महिलाओं और लड़कियों की संख्या एक साल पहले की समान अवधि की तुलना में लगभग दोगुनी हो गई.
तालिबान के नियंत्रण वाले क्षेत्रों में फिर से लड़कियों के स्कूल जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है और उनकी आवाजाही की स्वतंत्रता प्रतिबंधित कर दी गई है. जबरन शादी करने की भी खबरें आई हैं. महिलाएं फिर से बुर्का पहन रही हैं और तालिबान से खुद को बचाने के लिए अपनी शिक्षा और घर से बाहर के जीवन के सबूत नष्ट करने की बात कर रही हैं.
जैसा कि एक गुमनाम अफगान महिला द गार्जियन में लिखती हैं, "मुझे उम्मीद नहीं थी कि हम फिर से अपने सभी मूल अधिकारों से वंचित हो जाएंगे और 20 साल पीछे चले जाएंगे. अपने अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए 20 साल तक संघर्ष करने के बाद अब हम एक बार फिर बुर्के और अपनी पहचान छिपाने के उपाय ढूंढ रहे हैं.
कई अफगान तालिबान की वापसी से नाराज हैं और उनका मानना है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया है. सड़कों पर विरोध प्रदर्शन हुए हैं. अवज्ञा के दुर्लभ प्रदर्शन में महिलाओं ने बंदूकें भी उठा ली हैं, लेकिन महिलाओं और लड़कियों की सुरक्षा के लिए सिर्फ इतना ही काफी नहीं होगा. दुनिया दूसरी तरह देखती है.
वर्तमान में, अमेरिका और उसके सहयोगी अपने नागरिकों और कर्मचारियों को अफगानिस्तान से बाहर निकालने के लिए व्यापक बचाव कार्यों में लगे हुए हैं. लेकिन अफगान नागरिकों और उनके भविष्य का क्या? अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन तालिबान की प्रगति और बिगड़ते मानवीय संकट से काफी हद तक अप्रभावित हैं. 14 अगस्त के एक बयान में, उन्होंने कहा, ‘‘दूसरे देश के नागरिक संघर्ष में एक अंतहीन अमेरिकी उपस्थिति मुझे स्वीकार्य नहीं थी.’’
ऐसा तब है जब कि अमेरिका और उसके सहयोगी- ऑस्ट्रेलिया सहित- तालिबान को हटाने और महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के नाम पर 20 साल पहले अफगानिस्तान गए थे. हालांकि, अधिकांश अफगान यह नहीं मानते कि उन्होंने अपने जीवनकाल में शांति का अनुभव किया है.
जैसा कि तालिबान ने देश पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित किया है, यदि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय एक बार फिर से अफगानिस्तान को छोड़ देता है तो पिछले 20 वर्षों की उपलब्धियां, विशेष रूप से महिलाओं के अधिकारों और समानता की रक्षा के लिए की गई उपलब्धियां, जोखिम में हैं. तालिबान के आगे बढ़ने पर महिलाएं और लड़कियां मदद की गुहार लगा रही हैं. हमें उम्मीद है कि दुनिया सुनेगी.
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