अरब देशों में कब होती थी देवी-देवताओं की पूजा? इस्लाम से पहले इन तीन देवियों का था बोलबाला

इतिहासकारों के मुताबिक, यह वो दौर था जिसे 'जाहिलिय्या' के नाम से जाना जाता है. उस समय हर कबीले के अपने खास देवी-देवता हुआ करते थे, जिनकी पूजा बड़े ही धूमधाम से की जाती थी. आइए, इस दिलचस्प इतिहास के बारे में जानते हैं.

Written by - Prashant Singh | Last Updated : Jun 16, 2025, 03:46 PM IST
  • इस्लाम से पहले करीब 360 देवी-देवताओं की होती थी पूजा
  • तीन मुख्य देवियों को बताया गया अल्लाह की बेटियां
अरब देशों में कब होती थी देवी-देवताओं की पूजा? इस्लाम से पहले इन तीन देवियों का था बोलबाला

आज अरब देश पूरी दुनिया में इस्लाम धर्म के लिए जाने जाते हैं. लेकिन इतिहास के पन्ने पलटें तो पता चलता है कि एक वक्त ऐसा भी था, जब ये ही इलाके अलग-अलग देवी-देवताओं की पूजा का केंद्र थे. इस्लाम के आने से पहले, यानी 7वीं शताब्दी ईस्वी से भी काफी पहले, अरब प्रायद्वीप के लोग कई देवी-देवताओं और उनकी मूर्तियों को पूजते थे. यह इतिहास का एक ऐसा हिस्सा है जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं.

इस्लाम से पहले का अरब
इतिहासकारों की मानें तो इस्लाम धर्म के फैलने से पहले, यानी 7वीं शताब्दी ईस्वी से भी पहले पूरा अरब कई देवी-देवताओं की पूजा में लीन था. उस समय के अरब समाज में, हर छोटा-बड़ा कबीला और समुदाय अपने-अपने भगवान को मानता था. यह सिर्फ मूर्तियों की पूजा तक ही सीमित नहीं था, बल्कि इसमें लोग प्रकृति की चीजों जैसे सूरज और चांद, और कुछ अदृश्य आत्माओं यानी जिन्नों को भी महत्व देते थे, और उनकी पूजा करते थे.

मक्का का काबा और प्रमुख देवी-देवता
प्राचीन अरब में कई बड़े और छोटे देवी-देवता पूजे जाते थे. मक्का शहर में आज जो काबा है, वह इस्लाम का सबसे पवित्र स्थल है. इतिहासकारों के मुताबिक, उस समय वह करीब 360 देवी-देवताओं की मूर्तियों से भरा हुआ था. इन मूर्तियों में 'हुबल' नाम का देवता सबसे खास और बड़ा माना जाता था, उसे काबा का मुख्य देवता कहते थे.

वहीं इसके अलावा, तीन देवियां ऐसी थीं जो बहुत ही मशहूर थीं और जिन्हें कई बार ‘अल्लाह की बेटियांट भी कहा जाता था.

1. अल-लात- इन्हें प्रजनन और मां देवी के रूप में पूजा जाता था.
2. मनात- ये किस्मत और मौत की देवी मानी जाती थीं.
3. अल-उज्जा- ये शक्ति और युद्ध की देवी थीं.

इन देवियों के अपने अलग-अलग बड़े-बड़े मंदिर और पूजा स्थल थे, जहां लोग दूर-दूर से आकर पूजा-पाठ करते थे. कुछ कबीलों के अपने खास देवता भी थे, जैसे वाद, सुवा', यगूथ, याऊक और नस्र, जिनका जिक्र इस्लामी पवित्र किताब कुरान में भी मिलता है.

कैसी थी समाजिक स्थिति और जीवनशैली
इन देवी-देवताओं की पूजा का उस समय के अरब समाज की जिंदगी पर गहरा असर पड़ता था. धार्मिक यात्राएं सिर्फ आस्था के लिए नहीं होती थीं, बल्कि इनसे व्यापार भी खूब चलता था. लोग पूजा के बहाने एक जगह इकट्ठा होते और खरीद-फरोख्त करते थे.

वहीं, हर कबीले की पहचान भी उसके पूजे जाने वाले देवता से जुड़ी हुई थी. हालांकि, यह बात भी सच है कि उस समय अरब के कुछ इलाकों में यहूदी और ईसाई धर्म को मानने वाले लोग भी रहते थे, लेकिन बड़े पैमाने पर ज्यादातर लोग देवी-देवताओं को ही पूजते थे.

इस्लाम के साथ नए युग की शुरुआत
7वीं शताब्दी ईस्वी में पैगंबर मुहम्मद के आने और इस्लाम धर्म के फैलने के साथ, अरब के धार्मिक जीवन में एक बहुत बड़ा बदलाव आया. पैगंबर मुहम्मद ने लोगों को एक ईश्वर यानी अल्लाह की इबादत करने का संदेश दिया. 630 ईस्वी में इस्लामी कैलेंडर के हिसाब से 8 हिजरी में जब मक्का को जीत लिया गया, तो काबा में रखी सभी मूर्तियों को हटा दिया गया. इसके बाद, अरब में धीरे-धीरे देवी-देवताओं की पूजा खत्म हो गई और इस्लाम मुख्य धर्म के रूप में स्थापित हो गया.

इतिहासकार इस बदलाव को अरब प्रायद्वीप के धार्मिक और सामाजिक इतिहास में एक बहुत ही अहम मोड़ मानते हैं, जिसने पूरे इलाके को एक नई पहचान दी.

ये भी पढ़ें- इंडियन नेवी का नाम सुनते ही क्यों 'बाप-बाप' करने लगता है पाकिस्तान? जानिए डर की असल वजह

Zee Hindustan News App: देश-दुनिया, बॉलीवुड, बिज़नेस, ज्योतिष, धर्म-कर्म, खेल और गैजेट्स की दुनिया की सभी खबरें अपने मोबाइल पर पढ़ने के लिए डाउनलोड करें ज़ी हिंदुस्तान न्यूज़ ऐप.

ट्रेंडिंग न्यूज़