नई दिल्ली: दुनियाभर में वैसे तो कई तरह के आविष्कार हो चुके हैं. इंसान अपने फायदे के लिए कोई न कोई आविष्कार करता ही रहता है, जिससे उसकी जिंदगी सरल बन सके, लेकिन क्या आपने सोचा है कि कोई आविष्कार ऐसा भी होता है जो पूरी दुनिया को ही तबाह करने में सक्षम हो. आपको जानकर हैरानी हो सकती है कि कुछ ऐसे भी आविष्कार हो चुके हैं जो पूरी दुनिया में तबाही तक मचा सकते हैं. दुनिया का सबसे खतरनाक आविष्कार परमाणु बम को माना जाता है, जिसे सबसे पहले जर्मनी ने बनाना शुरू किया था. इसके बावजूद अमेरिका ने इसे पछाड़ दिया.
1938 का है किस्सा
बात है वर्ष 1938 की, जब जर्मनी के जो रसायन फ्रित्स स्ट्रॉस्मन और ओटो हान ने न्यूक्लियर फिजन की खोज की, इसी को परमाणु विखंडन कहा जाता है. बतातें है कि इस विखंडन में परमाणु का केंद्र दो या उससे भी अधिक छोटे केंद्रों में विभाजित हो जाता है, जिससे कि बड़ी मात्रा में तेज ऊर्जा निकलती है. अपने इस खोज को देखते ही जर्मनी के वैज्ञानिकों को अंदाजा हो गया था कि उन्होंने एक बेहद शक्तिशाली चीज की खोज कर ली है.
जर्मनी को समझ आई थी अहमियत
भौतिक वैज्ञानिकों ने कहा कि इस ऊर्जा के इस्तेमाल से इतना शक्तिशाली बम बनाया जा सकता है कि इससे एक बार में भी पूरा शहर तबाह हो सकता है. इसके बाद वह जर्मन वैज्ञानिकों ने परमाणु बम के प्रोजेक्ट पर काम शुरू कर दिया. जर्मनी ने इसके लिए मजबूत ढांचा तैयार तैयार कर लिया, साथ ही सेना की मदद दुनिया के कुछ शीर्ष परमाणु विशेषज्ञों को भी नियुक्त किया गया. इस प्रोजेक्ट को पूरी तरह से गुप्त रखा जा रहा था. हालांकि, नाजी जर्मनी में प्रड़ानाओं से बचने के लिए लोग इधर-उधर भागने लगे.
दूसरी जगहों पर जाने वाले लोगों में कई वैज्ञानिक भी शामिल थे, जिनके जरिए इस प्रोजेक्ट की बात फैलती गई. कहा जाता है कि इनमें से एक अल्बर्ट आइंस्टीन भी थे, जिन्होंने वर्ष 1939 में अमेरिक के तत्काल राष्ट्रपति फ्रैंकलिन रूजवेल्ट को खत लिखकर इस प्रोजेक्ट के बारे में जानकारी दी. वहीं, नाजी जर्मनी के गुप्त रूप से हथियार बनाने की बात ने दुनियाभर में डर और चिंता का माहौल बना दिया. ऐसे में जब अमेरिका तक इस खतरनाक हथियार की बात पहुंची तो उन्होंने भी इस पर काम शुरू कर दिया.
अमेरिका ने की 1942 में शुरुआत
अमेरिका के वैज्ञानिक रॉबर्ट ओपेनहाइमर ने 1942 में परमाणु बन बनाने का प्रोजेक्ट शुरू किया और इसे 'मैनहट्टन प्रोजेक्ट' का नाम दिया गया. इस दौरान विखंडन वाले बम का शोध करने के लिए प्लूटोनियम और यूरेनियम जैसे तत्वों का इस्तेमाल किया गया. कहते हैं कि अमेरिकी सरकार उस समय नाजी जर्मनी द्वारा बनाए जा रहे गुप्त हथियार की खबर से पहले ही काफी चिंता में थी. ऐसे में उसने अपने परमाणु बम के प्रोजेक्ट पर काफी पैसा लगाया.
हिरोशिमा-नागासाकी पर किए परमाणु हमले
ओपेनहाइमर और उनकी टीम को परमाणु हथियार का पहला सफलतापूर्वक परीक्षण करने में 3 साल का वक्त लगा. इसके बाद उन्होंने परमाणु हथियार बनने के तीसरे सप्ताह 6 अगस्त, 1945 को पहला लाइव फायर हिरोशिमा पर किया था. इसके बाद 9 अगस्त, 1945 को नागासाकी पर परमाणु हमला किया गया. ऐसे में जापान को बिना किसी शर्त के आत्मसमर्पण करने पर मजबूर होना पड़ा और यहीं द्वितीय विश्व युद्ध भी समाप्त हो गया.
क्यों पिछड़ गया जर्मनी
सवाल यह उठता है कि परमाणु पर सबसे पहले शोध करने, प्रोजेक्ट शुरू और प्रतिभाशाली वैज्ञानिक होने के बावजूद जर्मनी आखिर अमेरिका से कैसे पिछड़ गया. इसके कई कारण माने जा सकते हैं.
सबसे पहली और अहम वजह तो यह है कि जर्मनी अपने ही वैज्ञानकों का खून बहाने से भी पीछे नहीं हट रहा था. ऐसे में वैज्ञानिकों से यहां से भागना शुरू कर दिया था, इसी के साथ परमाणु के इस शोध की गुप्त चर्चा में भी दुनियाभर में फैलने लगी. इन भागने वाले वैज्ञानिकों में से ज्यादातर ने शरणार्थियों के तौर पर अमेरिका और यूके का रुख किया. कई ऐसे वैज्ञानिक भी रहे जो 'मैनहट्टन प्रोजेक्ट' के साथ भी जुड़े.
इन सबके अलावा जिस समय तक अमेरिका ने परमाणु बम बनाना का अपना 'मैनहट्टन प्रोजेक्ट' शुरू किया तब तक जर्मनी ने अपने परमाणु हथियार पर काम खत्म कर दिया था. जर्मन के वैज्ञानिकों को लगने लगा था परमाणु बम के लिए जो एक सबसे जरूरी चीज आइसोटोप है उसे अलग करने में ही कम से कम 5 साल लगेंगे. उनके पास यूरेनियम को भी बेहतर करने का कोई दूसरा तरीका नहीं था. इसके बाद इस शोध को जर्मनी के 9 संस्थानों में बांट दिया गया.