Elizabeth Zarubina Russian Spy: आज दुनिया भर के देश अपनी सुरक्षा के लिए खुफिया जानकारी इकट्ठा करते हैं, वर्तमान समय में तो जासूसी के लिए आधिकारिक रूप से अलग डिपार्टमेंट बनाए गए हैं. आपने वर्ल्ड वॉर के जासूसी के किस्से खूब सूने होंगे, फिल्मों में भी जेम्स बॉन्ड जैसे किरदार को देखे ही होंगे, जो मिनटों में नामुमकिन जानकारियों को इकट्ठा करता और वहीं दुश्मन को निपटा देता है. ऐसे में रूस की एक मशहूर जासूस हुई, जो मिनटों में दुश्मनों को अपना दीवाना बना लेती थी और वहीं दुश्मन का काम तमाम कर देती थी. ऐसे में, आइए जानते हैं कौन थी वो जासूस? कितने भाषाओं का था उसे ज्ञान? कैसे अमेरिकन परमाणु बम प्रोग्राम की जानकारी मॉस्को पहुंचाई और हिटलर के चंगुल से बच निकली.
तारीख 1 जनवरी, साल 1900, बेसाराबिया में रहने वाले एक साधारण यहूदी परिवार में एक बच्ची का जन्म हुआ. वक्त बिता, स्कूल में दाखिला हुआ, पढ़ाई में खूब मन लगता था. स्कूल से ही उसे सब कुछ जान लेने की बड़ी जिज्ञासा थी. उसका यही जिज्ञासुपना, उसे आगे जाकर दुनिया की मशहूर और कुशल जासूस बनाती है. हम बात कर रहे हैं, ‘लिजा रोजेन्स्वाइग’, जिन्हें एलिजाबेथ जारुबिना के नाम से भी पुकारा जाता था.एलिजाबेथ ने अपनी कॉलेज की पढ़ाई के दौरान विभिन्न भाषाओं में महारत हासिल कर ली, समय के साथ यूरोपी, रूसी, जर्मन, फ्रेंच, इंग्लिश और यिद्दिश भाषाओं (यहूदियों की भाषा) में निपुण हो गई.
जासूसी की दुनिया में प्रवेश
वर्ष 1924 में, एलिजाबेथ सोवियत खुफिया एजेंसी (NKVD) से जुड़ गई और वर्ष 1925 में वियना में तैनात हुई. यहां से उसने टर्की और डेनमार्क जैसे देशों में काम किया. अपनी जासूसी गतिविधियों को छुपाने के लिए, उसने एक कपड़ा निर्यात कंपनी स्थापित की, जिससे वह खुफिया सूचनाएं इकट्ठा कर पाती थी.
इसके बाद, वर्ष 1929 में उसे फ्रांस भेजा गया जहां उसने एक विज्ञापन कंपनी में काम करना शुरू किया. यहां उसने जर्मनी और फ्रांस की गोपनीय जानकारियां एकत्र की और फिर मास्को चली गई. जब वर्ष 1933 में हिटलर सत्ता में आया, तो उसे और उसके पति वासिली जारुबिन को जर्मनी भेजा गया, जहां वे नाजी शासन की गतिविधियों की जासूसी करने लगे.
नाजी जर्मनी में जोखिम भरा मिशन
हिटलर के सत्ता में आने के बाद, सोवियत संघ को नाजी जर्मनी की सैन्य और राजनीतिक गतिविधियों की सटीक जानकारी की आवश्यकता थी. जहां एलिजाबेथ और उसके पति ने एक मजबूत जासूसी नेटवर्क बनाया. एलिजाबेथ जर्मनी में नाजी शासन के भीतर काम करने वाले कुछ असंतुष्टों और जासूसों से गुप्त सूचनाएं प्राप्त की. इस दौरान, उसने जर्मन सेना की रणनीतियों, सैन्य बल की स्थिति और हिटलर की योजनाओं की महत्वपूर्ण जानकारी मॉस्को भेजी.
एलिजाबेथ का सबसे साहसी कार्य जर्मन वैज्ञानिकों से गुप्त सूचनाएं निकालना था. एलिजाबेथ ने नाज़ी वैज्ञानिकों को अपनी बातों में फंसाकर उनसे कई महत्वपूर्ण वैज्ञानिकों के प्रोग्राम्स की जानकारी जुटाई, जिससे सोवियत संघ को युद्ध में काफी बढ़त मिली. उस समय जर्मनी में सोवियत एजेंटों के लिए काम करना बेहद खतरनाक था, पकड़े जाने पर क्रूर यातनाएं दी जाती थी, शिविरों में उन्हें भूखा रखा जाता था, पूछताछ के दौरान उन्हें बर्फ के बीच में नग्न अवस्था में खड़ा कर दिया जाता था, कईयों को सीधे मौत की सजा दे दी जाती थी. लेकिन एलिजाबेथ अपनी चतुराई और रणनीति के कारण पति के साथ बच निकली.
मैनहट्टन प्रोजेक्ट की जासूसी
वर्ष 1939 में वह सोवियत संघ लौटी और उसे 'रेड बैनर ऑर्डर' से सम्मानित किया गया. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, उसे अमेरिका भेजा गया, जहां उसका मिशन यह पता लगाना था कि क्या अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट हिटलर के साथ किसी गुप्त शांति समझौते की योजना बना रहे थे.
इसके अलावा, एलिजाबेथ जारुबिना का सबसे महत्वपूर्ण मिशन, अमेरिका में मैनहट्टन प्रोजेक्ट की जासूसी करना था. मैनहट्टन प्रोजेक्ट वह गुप्त अमेरिकी योजना थी, जिसके तहत परमाणु बम विकसित किया जा रहा था. सोवियत संघ को इस परियोजना की जानकारी पहले ही थी, लेकिन उन्हें इसकी तकनीकी बारीकियों की जानकारी नहीं थी.
वर्ष 1941-43 के दौरान, एलिजाबेथ ने वैज्ञानिकों, सैन्य अधिकारियों और सरकारी अधिकारियों के साथ संबंध बनाए. उसने अपने आकर्षण और चतुराई का उपयोग कर कई वैज्ञानिकों से परमाणु हथियारों से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी हासिल की. वह सोवियत एजेंट क्लॉस फुच्स (जो खुद एक वैज्ञानिक था) और अन्य सोवियत समर्थकों को महत्वपूर्ण डेटा सौंपने में सफल रही. उसकी इस जासूसी का परिणाम यह हुआ कि सोवियत संघ को अमेरिकी परमाणु कार्यक्रम की तकनीकी जानकारी पहले ही मिल गई, जिससे वे भी जल्द ही अपना परमाणु हथियार विकसित करने में सक्षम हो गए. यह मिशन कोल्ड वॉर के दौरान सोवियत खुफिया एजेंसी की सबसे बड़ी सफलताओं में से एक माना जाता है.
जब अमेरिका में बजी खतरे की घंटी
जब एलिजाबेथ न्यूयॉर्क में सोवियत कॉन्सुलेट से काम कर रही थी और अमेरिकी खुफिया एजेंसी (OSS) के अधिकारियों तक पहुंचने की कोशिश कर रही थी. इस बीच, वह एफबीआई के संदेह के घेरे में आ गई. उसके पति वासिली जारुबिन ने कम्युनिस्ट पार्टी के एक सदस्य स्टीव नेल्सन को पैसे दिए थे ताकि अमेरिकी सैन्य उद्योगों में सोवियत एजेंट भर्ती किए जा सकें. एफबीआई ने यह बातचीत रिकॉर्ड कर ली, जिससे उसकी गतिविधियों पर नजर रखी जाने लगी.
जिसके बाद वर्ष 1944 में, उसे और उसके पति को मास्को वापस बुला लिया गया. उन पर कई तरह के आरोप लगाए गए, लेकिन उन्हें कोई गंभीर सजा नहीं हुई. इसके बाद, एलिजाबेथ सोवियत संघ में ही रही और आखिरी में 14 मई 1987 को उसकी मृत्यु हो गई.
'विष कन्या' के रूप में हुई मशहूर
एलिजाबेथ जारुबिना कई महत्वपूर्ण अधिकारियों को अपनी बातों में उलझाकर, आसानी से उनसे खुफिया जानकारी हासिल कर लेती थी. जिसके चलते उसे 'विष कन्या' कहा जाता था, वह अपनी गहरी आंखे, वेशभूषा, हावभाव और संवाद कौशल का इतनी कुशलता से इस्तेमाल करती थी कि बड़े-बड़े अधिकारी भी उसके प्रभाव में आ जाते थे, और कई तो प्यार में फिसलकर खुद को एलिजाबेथ के प्रति समर्पित कर देते थे.
जासूसी की दुनिया में एलिजाबेथ जारुबिना की छाप उसकी जासूसी की शैली आज भी खुफिया एजेंसियों के लिए अध्ययन का विषय बनी हुई है. उसकी रणनीतियां, छद्म पहचान (Pseudo-identity) और संचार कौशल उसे अन्य जासूसों से अलग बनाते हैं. उसकी कहानी यह दिखाती है कि कैसे एक महिला जासूस अपने कौशल और रणनीति से दुनिया की सबसे ताकतवर खुफिया एजेंसियों को भी चकमा देकर, अपने देश के लिए काम कर सकती है.