40 दिन तक व्रत रखने के बाद कुछ युवक प्रभु हनुमान का स्वरूप अपने शीश पर धारण कर शहरभर में घूमते हैं. दशहरा पर जब तक हनुमान के रूप धरे लोग रावण पर अपने गदे से प्रहार नहीं कर देते, तब तक पुतले का दहन नहीं किया जाता है
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विपिन शर्मा/ कैथल : आज पूरा देश धूमधाम से दशहरा मन रहा है, लेकिन कैथल में आज के दिन उत्सव एक अलग अंदाज में मनाया जाता है. काफी समय से चली आ रही इस परंपरा के तहत हनुमान के स्वरूपों की चालीस दिनों तक पूजा की जाती है.
दशहरे के दिन हनुमान के इन स्वरूपों को धारण करने वालों को बड़ी श्रद्धा से लोग अपने घरों में निमंत्रण देते हैं. फिर शाम को जब इन स्वरूपों को धारण किए लोग रावण पर गदा से प्रहार करते हैं उसके बाद ही कैथल में रावण दहन होता है.
दशहरा उत्सव पर कैथल में कुछ युवक प्रभु हनुमान का स्वरूप अपने शीश पर धारण करने के बाद पूरे शहर में घूमते हैं. इन स्वरूपों की लंबाई 3 से लेकर 12 फीट तक होती हैं. परंपरा के अनुसार जब तक यह स्वरूप अपनी गदा से रावण के शरीर पर प्रहार नहीं कर देता, तब तक रावण दहन नहीं होता है.
बताया जाता है कि यह परंपरा देश की आजादी के बाद पाकिस्तान में रहने वाले लोगों के जरिये कैथल में आई. जो लड़के हनुमान जी का स्वरूप धारण करते हैं, वह 40 दिन का व्रत रखते हैं. घर से बाहर रहते हैं और जमीन पर सोते हैं. केवल एक समय फल का सेवन करते हैं. ठीक दशहरा वाले दिन हनुमान के इन सब स्वरूपों की पूजा की जाती है. लोग इन स्वरूपों को धारण करने वालों को अपने घर में बुलाते हैं और हनुमान जी से मन्नतें मांगते हैं. माना जाता है कि ऐसा करने से मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं.
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ढोल नगाड़ों के साथ पूरे शहर में घूमते हैं
यह परंपरा पाकिस्तान से एक परिवार कैथल लेकर आया था. यह स्वरूप केवल कैथल और पानीपत में ही प्रचलित है. इस स्वरूपों का निर्माण पानीपत में होता है, जो भी इन स्वरूपों का निर्माण करता है वह खुद भी 40 दिन का व्रत करता है और बड़ी शुद्धता के साथ इन्हें तैयार करता है.
यह स्वरूप ढोल नगाड़ों के साथ नाचते हुए पूरे शहर में घूमते हैं और रावण दहन से पहले अपनी गदा से रावण के शरीर पर प्रहार करते हैं. इसके बाद रावण के पुतले को जलाया जाता है.