किसान आंदोलन : हक पाने के लिए एक साल में किसानों ने बहुत कुछ खोया भी, जीत की खुशी के साथ छलका दर्द
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किसान आंदोलन : हक पाने के लिए एक साल में किसानों ने बहुत कुछ खोया भी, जीत की खुशी के साथ छलका दर्द

एक साल से ज्यादा समय तक किसानों ने खुले आसमान के नीचे हर मौसम को देखा और सहा. तपती धूप, कंपकंपाती सर्दी, आंधी, तूफान, तेज बारिश या फिर ओलावृष्टि भी किसानों को उनकी जगह से डिगा नहीं सकी. 

किसान आंदोलन : हक पाने के लिए एक साल में किसानों ने बहुत कुछ खोया भी, जीत की खुशी के साथ छलका दर्द

राजेश खत्री/सोनीपत : आज एक साल 13 दिन चला ऐतिहासिक किसान आंदोलन आखिर खत्म हो गया. 11 दिसंबर को सुबह से ही किसान धरनास्थलों से रवाना होना शुरू हो जाएंगे. इससे पहले गुरुवार को पूरे दिन आंदोलन में शामिल किसान अपने तंबुओं, झोपड़ियों, पंडालों को समेटने का काम करते रहे. किसानों ने सालभर से बने आशियानों से पूरा सामान समेट लिया और ट्रैक्टर-ट्रालियों व ट्रकों में लादना शुरू कर दिया.

कुछ स्थानों पर किसानों द्वारा किए गए पक्के निर्माण को ढहाया जा रहा है. किसानों ने आंदोलन स्थल से रवाना होने से पहले जश्न की पूरी तैयारी कर ली है. ऐतिहासिक जीत पर किसानों ने फतह यात्रा भी निकालने का निर्णय लिया है. हालांकि हेलिकॉप्टर हादसे में शहीद हुए सीडीएस बिपिन रावत के अंतिम संस्कार की वजह से शुक्रवार को किसान जश्न नहीं मनाएंगे.

पहले हरियाणा के किसान होंगे रवाना

11 दिसंबर को सुबह से किसान जुलूस के रूप में निकलेंगे. खास बात यह है कि पहले हरियाणा के किसानों को रवाना किया जाएगा, इसके बाद पंजाब के किसान आंदोलन वाली साइट से रवाना होंगे. 

आए थे तो डंडे बरस रहे थे, अब फूल बरस रहे हैं

किसानोंं की आंखों में जीत की खुशी झलक रही है. पंजाब जत्थेबंदियों के किसान नेता जंगबीर सिंह चौहान व हरियाणा के किसान नेता प्रह्लाद  सिंह ने साफ कहा कि जब वे अपने हक की लड़ाई लड़ने के लिए यहां पहुंचे थे तो उन पर खूब लाठियां, डंडे, पानी की बौछारें, आंसू गैस के गोले बरसे थे और उनको तितर-बितर करने का प्रयास किया गया, लेकिन वे घबराए नहीं और अपने साथी किसानों के बुलंद हौसलों के साथ डटे रहे.

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यही कारण है कि सरकार को इनके आगे झुकना पड़ा और आज जब हम जीत चुके हैं तो फूल बरस रहे हैं. आंदोलन ने सिद्ध कर दिया है कि अगर एकजुट होकर लड़ने का संकल्प लिया जाए तो हर जीत मुमकिन है.

हर मौसम में डटे रहे किसान

एक साल से ज्यादा समय तक किसानों ने खुले आसमान के नीचे हर मौसम को देखा और सहा. तपती धूप, कंपकंपाती सर्दी, आंधी, तूफान, तेज बारिश या फिर ओलावृष्टि भी किसानों को उनकी जगह से डिगा नहीं सकी. कपड़े के तंबूओं के रातभर टपकते रहने का भी प्रभाव किसानों पर नहीं पड़ा और झोपड़ियों में कई बार आग लगने की घटनाओं से भी वे टस से मस नहीं हुए. नतीजा यह हुआ कि सरकार को उनकी मांगें माननी पड़ी और न केवल 3 कृषि कानून वापस लिए, बल्कि अन्य मांगों पर सरकार को झुकना पड़ा. 

लकवाग्रस्त पिता की सेवा न कर पाने का मलाल 

आंदोलन में बहुत से ऐसे किसान हैं, जिन्हाेंने एक साल के दौरान बहुत कुछ खोया भी. गुरदासपुर से पहुंचे किसान गुरविंद्र सिंह ने बताया कि जब वे यहां कुंडली में धरने पर बैठे थे तो गांव में उनके पिता को लकवा हो गया. उनकी देखरेख के लिए गुरविंद्र का 15 साल का बेटा ही घर पर रह गया था. इस बीच बहुत से लोगों ने कहा कि वह अपने पिता को संभाल ले, लेकिन उसके लिए किसानों के हक की लड़ाई में शामिल रहना भी उतना ही जरूरी था.

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ऐसे में 15 वर्षीय बेटे ने साथ निभाया और अपने दादा की सेवा करता रहा, अब आंदोलन खत्म हो गया है तो वह खुद जाकर अपने पिता की सेवा करेंगे। वहीं, दूसरे किसान चरणजीत ने बताया कि उनकी माता का देहांत इस दौरान हो गया, लेकिन धरने पर व्यस्त होने के कारण वह ज्यादा दिन घर नहीं रुक पाया और एक-दो दिन में ही वापस आना पड़ा. 

निशान साहेब के साथ जयकारों से गूंजा कुंडली

सिंघू बॉर्डर पर जैसे ही किसानों की बैठक खत्म हुई और आंदोलन वापसी का ऐलान किया गया, वैसे ही किसान खुशी से झूम उठे. पंजाब के किसानों ने हाथों में निशान साहेब के ध्वज लेकर लहराए और जयकारों से कुंडली गूंज उठा.

इस दौरान किसानों ने न केवल किसान एकता के जयकारे लगाए, बल्कि सिख गुरुओं को भी याद किया. किसानों नेताओं ने पंडालों के बीच पहुंचकर धरनारत बुजुर्ग किसानों व महिलाओं का आभार जताया. इस दौरान किसानों ने लंगर वितरित किया और एक-दूसरे का मुंह मीठा करवाया. 

15 को टोल प्लाजा करवाएंगे शुरू 

किसान मोर्चा ने तय किया है कि अब पंजाब-हरियाणा के सभी टोल प्लाजा को भी मुक्त कर दिया  जिन टोल प्लाजाओं पर धरना दिया जा रहा है, वहां से किसान वापस चले जाएंगे. यही नहीं, 15 दिसंबर को सभी टोल प्लाजा को किसान नेता खुद शुरू करवाएंगे. इनमें केजीपी-केएमपी के अलावा जीटी रोड व अन्य हाईवे के सभी टोल प्लाजा शामिल हैं. किसान नेता जंगबीर सिंह चौहान ने बताया कि किसानों ने तय किया है जो भी सरकारी या गैर-सरकारी संस्थान किसान आंदोलन की वजह से बंद थे, उन्हें शुरू करवाया जाएगा. 

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