भारत की आन-बान-शान तिरंगा का इतिहास, जो हर भारतीय के लिए जानना बेहद जरूरी
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भारत की आन-बान-शान तिरंगा का इतिहास, जो हर भारतीय के लिए जानना बेहद जरूरी

भारत की आन बान शान यानी हमारा तिरंगा. चलिए आपको राष्ट्रीय ध्वज के बारे में कुछ जरूरी बातें बताते हैं.

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चंडीगढ़- भारत की आन बान शान यानी हमारा तिरंगा. चलिए आपको राष्ट्रीय ध्वज के बारे में कुछ जरूरी बातें बताते हैं. झंडे को भारत की आजादी की घोषणा से 4 दिन पहले यानी 22 जुलाई सन 1947 को संविधान सभा ने भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपना लिया था. 

भारत के तिरंगे की परिकल्पना आंध्र प्रदेश के पिंगली वैंकैया ने लिखी थी. वे जब गांधी जी के संपर्क में आए तो उनके विचार बिल्कुल बदल गए. देखते ही देखते उनकी रुचि झंडे में बढ़ने लगी.

एक दिन गांधीजी ने पिंगली वैंकैया को भारत का झंडा बनाने को कहा. उन्होंने 1916 से 1921 तक करीब 30 देशों के झंडों पर रिसर्च किया. उसके बाद जाकर उन्होंने एक झंडा बनाया.

गांधी जी झंडे को देख काफी ज्यादा खुश हुए. इसके बाद जालंधर के लाल हंसराज ने झंडे में बीचों-बीच एक चक्र बनाने का सुझाव दिया.

उन्होंने कहा कि झंडे के बीत एक चक्र बनाया जाएं. इसके बाद गांधीजी ने झंडे में शांति के प्रतीक सफेद रंग को भी शामिल कर लिया बता दें कि लाल हंसराज ने पंजाब में आर्य समाज के प्रचार प्रसार और डीएवी स्कूल की स्थापना कराई थी, 

जब कुछ साल बीत गए तो तिरंगे के बीच चरखे की जगह अशोक चक्र बनाया गया. तिरंगे झंडे को इस्तेमाल करने और फैराने के लिए एंबलम एंड नेम प्रिवेंशन ऑफ प्रॉपर यूज एक्ट 1950 बनाया गया था.

भारतीय ध्वज संहिता 2002 में बताया गया है कि तिरंगे को तीन भागों में बांटा गया है, जिसमें पहले भाग में सामान्य जानकारी दी गई है. दूसरे भाग में झंडे को आम जनता प्राइवेट संस्था और स्कूल में किस तरह इस्तेमाल करना चाहिए, तीसरे भाग में सरकारों और उनसे जुड़ी एजेंसियों द्वारा किस तरह से झंडे का इस्तेमाल किया जाएगा. 

बता दें कि झंडे को भारत की आजादी की घोषणा से 4 दिन पहले यानी 22 जुलाई सन 1947 को संविधान सभा ने भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपना लिया था.

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