हिमाचल की संस्कृति और परंपरा है ज्ञान का महासागर, युगों से रखा गया है संजोकर
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हिमाचल की संस्कृति और परंपरा है ज्ञान का महासागर, युगों से रखा गया है संजोकर

प्राकृतिक सौंदर्य से लबरेज बर्फ से ढके हुए पहाड़ ऐसा प्रदेश भारत में कुदरत का स्वर्ग है. ऐसा प्रदेश जिसको प्रकृति ने अपने हाथों से सजाया है और निखारा है जहां ऊंचे-ऊंचे बर्फ के हिमालय से लेकर जमीं पर रंगीली संस्कृति मौजूद है.

हिमाचल की संस्कृति और परंपरा है ज्ञान का महासागर, युगों से रखा गया है संजोकर

समीक्षा राणा/शिमलाः प्राकृतिक सौंदर्य से लबरेज बर्फ से ढके हुए पहाड़ ऐसा प्रदेश भारत में कुदरत का स्वर्ग है. ऐसा प्रदेश जिसको प्रकृति ने अपने हाथों से सजाया है और निखारा है जहां ऊंचे-ऊंचे बर्फ के हिमालय से लेकर जमीं पर रंगीली संस्कृति मौजूद है. हम बात कर रहें है हिमालय की गोद में बसे हिमाचल प्रदेश की,  यहां के लोग हिमाचल वासी यानी हिमाचली अपनी संस्कृति और अपनी परंपराओं को अपने साथ लेकर चलते हैं, युगों से हिमाचल ने अपनी संस्कृति अपनी परंपराओं को संजोय रखा है.

देव भूमि हिमाचल प्रदेश का इतिहास उतना ही पुराना है जितना मानव अस्तित्व का अपना इतिहास है. हिमाचल प्रदेश का इतिहास उस समय में ले जाता है जब सिंधू घाटी विकसित हुई, इस बात की सत्यता के प्रमाण हिमाचल प्रदेश के विभिन्न भागों में हुई खुदाई में प्राप्त सामग्रियों से मिलते हैं. प्राचीनकाल में इस प्रदेश के आदि निवासी दास, दस्यु और निषाद के नाम से जाने जाते थे.

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तो वहीं, जनवरी 1948 ई. को शिमला हिल्स स्टेट्स यूनियन सम्मेलन "सोलन" में हुआ, सम्मेलन में हिमाचल प्रदेश निर्माण की घोषणा की गई. 25 जनवरी, 1971 यह वही दिन था जब हिमाचल को पूर्ण राज्य के रूप में एक अलग पहचान मिली थी. आज ही के दिन हिमाचल देश का 18वां राज्य बना था. यह वह दिन था जब बर्फ की सफेद चादर ओढ़े रिज मैदान पर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने हिमाचल को पूर्ण राज्य का दर्जा देने का ऐलान किया था.

हिमाचल प्रदेश के लोगों के पास एक समृद और अंनूठी संस्कृति मौजूद और रहस्य मौजूद है. यह संस्कृति उनको विरासत में मिली है और हिमाचल प्रदेश के लोग अपनी इस रंग-बिरंगी संस्कृति पर गर्व करते है. हिमाचली देश-विदेश के जिस भी हिस्सें में चले जाएं लेकिन अपनी परम्पराओ को कभी नहीं भूलते हमेशा अपनी संस्कृति को साथ लेकर चलते है. पहाड़ी राज्य हिमाचल के भोले-भाले लोग बहुत ही दयालु और मिलनसार रहने पर विश्वास रखतें हैं.

हिमाचल के लोगों को हिमाचली कहने पर गर्व करतें हैं. हिमाचल वासी अपनी पारंपरिक वेशभूषा को आज भी अधिकतर जनजातीय क्षेत्रों में पहना जाता है और अपनी संस्कृति के लिए बहुत जनूनी होते हैं. हिमाचल वासियों के खान-पान, रहन-सहन सब अपनी संस्कृति के अनुसार अब तक संजोय हुए है. रंगीन पोशाक और अद्भुत समारोहों में जरूर दिखाई देता है.

साथ ही वहां के लोगों ने टाइम के अनुसार आ रहे बदलाव को भी अपनाया है. लेकिन, "अपनी संस्कृति को अब तक साथ लेकर" हिमाचल के प्रशिद्ध पकवान जो आज भी बनाये जातें हैं. सिड्डू, राजमाह का मदरा, बबरु आज भी लोग चटकारे लेकर खातें हैं. वहीं हिमाचल आने वाले सैलानियों के लिए एक अनोखा हिमाचल देखते है जहां हर रंग दिखाई देता है. अपना विश्वास, श्रद्धा प्राकृतिक सौंदर्य, सब है.

विविधता में एकता को सजोये हुए हिमाचल प्रदेश एक ऐसी भूमि है जहां अनेक धर्म है और अनेक प्रकार की भाषाओं बोली जाती है. यह एक बहुभासी राज्य है और यहां निम्न भाषाएं हिंदी, पंजाबी, पहाड़ी, डोगरी, कांगड़ी और किन्नौर ही प्रमुख है. यहां के निवासी राज्य में अधिकांश हिंदू धर्म का पालन करते है और अन्य निवासी बौद्ध धर्म का पालन करते है हिमाचल प्रदेश की संस्कृति की सुंदरता यहां के लोग की वेशभूशा और लोगों की सादगी में है.

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हिमाचल के लोग खाफी धार्मिक है देवी देवताओं में अटूट विश्वास रखते हैं. तकनीकी प्रगति के साथ, राज्य बहुत तेजी से बदल गया है. हिमाचल प्रदेश एक बहुसांस्कृतिक और बहुभाषी राज्य है. सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में से कुछ हिंदी और पहाड़ी है. हिमाचल में रहने वाले हिंदू समुदाय में ब्राह्मण राजपूत, कन्नट, राशी और कोली शामिल हैं. यहां में जनजातीय आबादी भी शामिल है जिसमें मुख्य रूप से गद्दी, किन्नर, गुज्जर, पनवाल और लाहौल शामिल हैं.

हिमाचल अपने हस्तशिल्प के लिए भी जाना जाता है. कालीन, चमड़े के काम, शॉल, पेंटिंग, मेटलवेयर, लकड़ी और पेंटिंग की लोग सराहना करते हैं. पश्मीना शाल उन उत्पादों में से एक है जो मांग में अत्यधिक है. हिमाचल का स्थानीय संगीत और नृत्य राज्य की सांस्कृतिक पहचान को दर्शाता है. हिमाचलियों का दिन-प्रतिदिन भोजन उत्तर भारत के बाकी हिस्सों की समान है. यद्यपि हिंदी राज्य की भाषा है. बहुत से लोग पहाड़ी भी बोलते हैं. पहाड़ी में कई बोलियां हैं, अधिकांश आबादी कृषि पद्धतियों में लगी हुई है.

इसी के साथ यहां के घर मिट्टी की ईंटों से निर्मित किया जाता है और छत स्लेट की बनाई जाती है ताकि बर्फबारी आसानी से निकास किया जा सके. हिमाचल वासी आज भी अपनी संस्कृति और अपनी परम्पराओं को संजोए हुए हैं. परंपराओं को संजोने का प्रयास पीढ़ी दर पीढ़ी चलता आया है और आज लोग आने वाली युवा से अपील करते है की इसी तरह संस्कृति को बचाने और अपनी संस्कृति को संजोने का प्रयास करें.

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