लगातार ग्लेशियर पिघलने से लड़खड़ा सकती है हिमाचल की अर्थव्यवस्था
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लगातार ग्लेशियर पिघलने से लड़खड़ा सकती है हिमाचल की अर्थव्यवस्था

हिमाचल प्रदेश में पिछले 20 वर्षों के दौरान ग्लेशियर क्षेत्र में 5 % तक की कमी आई है. वैज्ञानिकों ने आने वाले समय में पेयजल की कमी की आशंका जताई. 

लगातार ग्लेशियर पिघलने से लड़खड़ा सकती है हिमाचल की अर्थव्यवस्था

समीक्षा राणा/ शिमला : हिमाचल प्रदेश में हर साल हो रहे जलवायु परिवर्तन से ग्लेशियर पिघल रहे हैं. एक्सपर्ट्स की मानें तो 20 साल में ग्लेशियर के क्षेत्र में 4 से 5 प्रतिशत की कमी आई है. जलवायु परिवर्तन का सीधा असर आम जनजीवन पर पड़ता है. माउंटेन में बढ़ रहे तापमान से हिमाचल के ग्लेशियर लगातार पिघल रहे हैं. अगर इसी तरह ग्लेशियर पिघलते रहे तो इससे प्रदेश के लोगों का रहन सहन खासा प्रभावित होगा.

वैज्ञानिक एसएस रंधावा ने बताया कि सैटेलाइट के माध्यम से ग्लेशियर की मैपिंग की जाती है. चार साल में ग्लेशियर के एरिया में 4 से 5 प्रतिशत की कमी आई है. पहाड़ों पर के तापमान लगातार बढ़ रहा है. उन्होंने ऐसी स्थिति में आने वाले समय में पानी की कमी की आशंका जताई. 

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बर्फबारी में आई कमी 

जहां ग्लेशियर पिघल रहे हैं, वहां 2020-21 में बर्फबारी में कमी आई है. 18.5 प्रतिशत बर्फबारी कम हुई है, जिसका प्रभाव प्रदेश की कृषि- बागवानी पर दिखाई देता है. प्रदेश की अधिकांश अर्थव्यवस्था कृषि और बागवानी पर निर्भर करती है.  

रिकॉर्ड के मुताबिक चिनाब बेसिन में 8.92%,  ब्यास में 18.54 %, रावी नदी में 23.49%, सतलुज में 23.16 % कम बर्फबारी 2020-21 में रिकॉर्ड की गई है.

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