आज से गणेश चतुर्थी त्योहार की शुरुआत हो रही है. हिंदू पंचांग के अनुसार आज के दिन यानी भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को भगवान गणेश का जन्म हुआ था. 10 दिनों तक चलने वाला पर्व 19 सितंबर को अनंत चतुर्दशी (Anant Chaturdashi) के दिन संपन्न होगा.
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नई दिल्ली : आज से गणेश चतुर्थी त्योहार की शुरुआत हो रही है. हिंदू पंचांग के अनुसार आज के दिन यानी भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को भगवान गणेश का जन्म हुआ था. 10 दिनों तक चलने वाला पर्व 19 सितंबर को अनंत चतुर्दशी (Anant Chaturdashi) के दिन संपन्न होगा. इस दिन को हम गणेश विसर्जन (Ganesh Visarjan) के नाम से भी जानते हैं. ऐसी मान्यता है कि गणेश जी की आराधना करने से भक्तों पर उनकी कृपा बरसती है.
पूजा का शुभ मुहूर्त
आज गणेश चतुर्थी पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 11.03 AM से दोपहर 1.33 PM तक रहेगा. चतुर्थी तिथि की शुरुआत 10 सितंबर को 12.18 AM से हो जाएगी और इसकी समाप्ति रात 9.57 बजे होगी.
इस तरह करें गणेश जी की पूजा
इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लें. इसके बाद तांबे या फिर मिट्टी की गणेश जी की प्रतिमा लें. एक कलश में जल भरें और उसके मुख को नए वस्त्र से बांध दें, फिर इस पर गणेश जी की स्थापना कर दें. भगवान गणेश को सिंदूर, दूर्वा, घी और 21 मोदक चढ़ाएं और उनकी विधि विधान पूजा करें.
इस बात का रखें ध्यान
10 दिनों तक चलने वाले इस त्योहार में गणेश जी की मूर्ति को एक, तीन, सात और नौ दिनों के लिए घर पर रख सकते हैं.ध्यान रहे कि गणेश जी की पूजा में तुलसी के पत्तों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है. गणेश पूजन में गणेश जी की एक परिक्रमा करने का विधान है.
इसके अलावा गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा का दर्शन नहीं करना चाहिए. आज चन्द्रमा देखने का वर्जित समय सुबह 9:12 से लेकर रात 8:53 तक रहेगा. ऐसी मान्यता है गणेश चतुर्थी पर चंद्रमा के दर्शन करने से कलंक लगने का खतरा रहता है.
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अगर चंद्रमा देख लें तो
अगर गणेश चतुर्थी को आप भूल से चंद्रमा के दर्शन कर लें तो इस मंत्र का 28, 54 या 108 बार जाप करना चाहिए.
सिंहःप्रसेनमवधीत् , सिंहो जाम्बवता हतः।
सुकुमारक मा रोदीस्तव, ह्येष स्यमन्तकः।।
श्री गणेशजी की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार पार्वती जी स्नान से पहले अपने शरीर के मैल से एक पुतला बनाया और उसमें प्राण फूंक दिए. स्नान के लिए जाते समय माता पार्वती ने गृहरक्षा के लिए उसे द्वार पाल के रूप में नियुक्त कर दिया.
चूंकि उस समय तक उसे किसी बात का ज्ञान नहीं था, इसलिए जब भगवान शिव घर पहुंचे तो द्वारपाल ने पार्वती जी की आज्ञा का पालन करते हुए उन्हें भी प्रवेश नहीं करने दिया. इससे नाराज भगवान शिव ने उनका मस्तक काट दिया.
अपने पुत्र की दशा देखकर माता पार्वती कुपित हो गईं. इसके बाद भगवान शिव ने निष्प्राण शरीर पर हाथी का मस्तक जोड़ दिया. इसके बाद से ही भगवान गणेश को गजानन कहा जाने लगा.