'हमेशा देर कर देता हूं मैं' पढ़िए मुनीर नियाज़ी के 10 चुनिंदा शेर
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'हमेशा देर कर देता हूं मैं' पढ़िए मुनीर नियाज़ी के 10 चुनिंदा शेर

Poetry of the Day:  मुनीर नियाज़ी (Muneer Niyazi) ने कई अख़बारों और रेडियो के लिए भी काम किया. 1960 के दशक में उन्होंने फिल्मों के लिए गाने लिखे जो बहुत मशहूर हुए. उन्होंने मशहूर गीत ‘उस बेवफ़ा का शहर है’ लिखा.

Muneer Niyazi

Poetry of the Day: मुनीर नियाज़ी (Muneer Niyazi) उर्दू और पंजाबी के मशहूर शायर थे. मुनीर नियाज़ी साहब का असली नाम मुनीर अहमद (Muneer Ahmad) था. उनके निराले अंदाज को सुनने मुशायरों में आये लोग झूम उठते थे. मुनीर नियाज़ी की पैदाइश 1 अप्रैल 1928 में हुई पंजाब के होशियारपुर में हुई थी. नियाज़ी साहब की इब्तिदाई तालीम साहिवाल जिले में और फिर आला तालीम दियाल सिंह कॉलेज, लाहौर से हुई. नियाज़ी साहब बँटवारे के बाद साहिवाल में बस गये थे और सन 1949 में ‘सात रंग’ नाम मासिक का प्रकाशन शुरु किया. उन्होंने कई अख़बारों और रेडियो के लिए भी काम किया. 1960 के दशक में उन्होंने फिल्मों के लिए गाने लिखे जो बहुत मशहूर हुए. उन्होंने मशहूर गीत ‘उस बेवफ़ा का शहर है’ लिखा. बक़ौल शायर इफ़्तिकार आरिफ़, मुनीर साहब उन पांच उर्दू शायरों में से एक हैं, जिनका कई यूरोपियन भाषाओं में ट्रांसलेशन किया गया है. मुनीर नियाजी को मार्च 2005 में ‘सितार-ए-इम्तियाज’ के अवार्ड से नवाज़ा गया. उनकी जो किताबें पब्लिश हुई हैं उनमे ‘तेज हवा और फूल’, ‘पहली बात ही आखिरी थी’ और ‘एक दुआ जो मैं भूल गया था’ शामिल है. 1 दिसंबर 2006 को मुनीर नियाज़ी इस दुनिया को अलविदा कह गए. 
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ग़म की बारिश ने भी तेरे नक़्श को धोया नहीं 
तू ने मुझ को खो दिया मैं ने तुझे खोया नहीं 
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रहना था उस के साथ बहुत देर तक मगर 
इन रोज़ ओ शब में मुझ को ये फ़ुर्सत नहीं मिली 
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वो जिस को मैं समझता रहा कामयाब दिन 
वो दिन था मेरी उम्र का सब से ख़राब दिन 
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किसी को अपने अमल का हिसाब क्या देते 
सवाल सारे ग़लत थे जवाब क्या देते 
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घटा देख कर ख़ुश हुईं लड़कियाँ 
छतों पर खिले फूल बरसात के 
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यह भी पढ़ें: Poetry of the day: 'ये और बात तेरी गली में न आएँ हम, लेकिन ये क्या कि शहर तिरा छोड़ जाएँ हम'

मैं बहुत कमज़ोर था इस मुल्क में हिजरत के बाद 
पर मुझे इस मुल्क में कमज़ोर-तर उस ने किया 
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देखे हुए से लगते हैं रस्ते मकाँ मकीं 
जिस शहर में भटक के जिधर जाए आदमी 
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तेज़ थी इतनी कि सारा शहर सूना कर गई 
देर तक बैठा रहा मैं उस हवा के सामने
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जिन के होने से हम भी हैं ऐ दिल 
शहर में हैं वो सूरतें बाक़ी 
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शायद कोई देखने वाला हो जाए हैरान 
कमरे की दीवारों पर कोई नक़्श बना कर देख 
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