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Shahrukh Khan: लंगोट में कट्टा लेकर चलने वाले सख्त लौंडों को भी शाहरुख़ खान ने सिखाया है प्यार करना

Shahrukh khan as King of Romance: रोमांस का बादशाह कहे जाने वाले शाहरुख़ खान का आज 60 वां जन्मदिन है. बढ़ती उम्र उनके लिए कोई मायने नहीं रखती है. 60 की उम्र में भी वह 25 की नायिकाओं के साथ फिल्मों में ऐसे रोमांस करते हैं, जो नौजवानों की कल्पनाओं से भी आगे है. शाहरुख़ प्रेम को मुखर होना सिखाते हैं. प्रेम को हिम्मत देते हैं. उसे समाज सम्मत बनाते हैं.. पढ़ें पूरी रिपोर्ट

Shahrukh Khan: लंगोट में कट्टा लेकर चलने वाले सख्त लौंडों को भी शाहरुख़ खान ने सिखाया है प्यार करना

फिल्म 'सय्यारा' देखने के बाद दर्शक सिनेमा घरों में फूट-फूटकर रो रहे थे. अल्जाइमर पीड़ित नायिका के सबकुछ भूल जाने से शायद नायक का प्रेम अधूरा रह जाता है, जिसे दर्शक बर्दाश्त नहीं कर पाता है.. 
हिन्दुस्तानी दर्शक बेहद जज्बाती किस्म का होता है, और इनकी भावनाएं क्षणिक होती है.  

कई बार तो वो फिल्मों में विलेन के पिटने पर जोश और नायक के पिटने पर शोक में डूब जाता है. लेकिन फिल्म की पटकथा और पात्रों की अदाकारी की असली कामयाबी तब मानी जाती है, जब वो जन मानस पर लम्बे अरसे तक अपनी छाप छोड़ जाती है. समाज के किसी सटेरियोटाइप परम्परा को तोड़ती है, एक नई राह दिखाती है.. उसपर लोक विमर्श छेड़ती है.. प्रेम बांटती है! 

आज की नई पीढ़ी शायद शाहरुख़ खान की शुरूआती फिल्मों से परिचित नहीं है, जिसमें उन्होंने प्रेम की नई परिभाषा गढ़ी.. प्रेम के रास्ते में आने वाली सभी रुकावटों और दीवारों को तोडना सिखाया.. प्रेम में किसी दबाव के बजाये मन की आवाज़ पर चलना सिखाया.. 

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1992 में अपनी डेब्यू फिल्म 'दीवाना' में शाहरुख़ खान (राज) एक विधवा स्त्री काजल (दिव्या भारती) के प्रेम में पड़ जाता है..भारत में विधवाएं अपशकुन मानी जाती रही हैं, लेकिन एक बेहद अमीर घर का एकलौता लड़का राज रवि (ऋषि कपूर) की विधवा के प्रेम में पड़कर अपना घर-बार, धन- दौलत छोड़कर उससे शादी कर उसके परिवार के साथ रहने चला आता है..ये बिना किसी स्वार्थ के प्रेम की इन्तहा थी.. रवि जब जिन्दा पाया जाता है तो पत्नी के प्रेम के खातिर जीने के बजाये दुबारा मर जाता है.. ये प्रेम का एक दूसरा रूप है..

"जा सिमरन जा, जी ले अपनी ज़िंदगी" और "जब आप किसी से सच्चा प्यार करते हैं तो पूरी कायनात आपको उससे मिलाने के लिए साजिश रचने लगती है" ये दो डायलोग भला कौन भूल सकता है?  

'दिलवाले दुल्हानिया ले जाएंगे'  (1995) फिल्म ने समझाया कि सच्चा प्यार विद्रोह नहीं, सम्मान से जीता जाता है. फिल्म का नायक राज (शाहरुख़ खान) शादी तय हो चुके सिमरन (काजोल) को प्यार में भगाने की बजाय उसके पिता (अमरीश पुरी) का दिल जीतता है. यह फिल्म आधुनिक प्रेम कहानी में भारतीय परिवारवाद की जीत का प्रतीक है. यही वजह है कि फिल्म पिछले 30 सालों से मुंबई के मराठा मंदिर सिनेमा हॉल में लगी हुई है. ये आज के मौजूदा समय की घटना है, कि इस फिल्म के दर्शक आज भी इसे प्यार दे रेह हैं.  
वरना, आजकल प्रेम में पड़ते ही लड़कों के मोबाइल में अपनी प्रेमिका के कुछ आपत्तिजनक तस्वीरें और वीडियोज आ जाते हैं! फिर उन्हें ब्लेक भी करने लगते हैं!   

वर्ष 1997 में आयी फिल्म 'दिल तो पागल है' क्लासिक रोमांटिक ड्रामा है. शाहरुख-माधुरी-करिश्मा की तिकड़ी प्रेम में त्याग को प्रशय देता है.. नायक जब कहता है "प्यार वो नहीं जो मिल जाए, प्यार वो है जो खोकर भी न छूटे" तो प्रेम में नाकाम आशिकों को भी जिंदा रहने की वजह मिल जाती है! 

1998 में करण जौहर के निर्देशन में बनी पहली फिल्म 'कुछ-कुछ होता है' ने रोमांटिक ड्रामा की नई परिभाषा गढ़ी और शाहरुख-काजोल की जोड़ी ने इसे अमर बना दिया. इस फिल्म में फ्रेंडशिप और प्यार की बड़ी बारीकी से पड़ताल की गयी.. प्रेम में वक़्त पर इज़हार की अहमियत बताई.. राहुल (शाहरुख खान) और अंजलि (काजोल) और टीना(रानी मुखर्जी ) के इस त्रिकोणीय ड्रामा ने युवाओं पर जैसे कोई चीन-बंगाल का काला जादू कर दिया. 1990 के दशक में लंगोट में कट्टा छिपाकर रखने वाले लौंडे भी प्रेम में पड़ने लगे. अंजलि जब हदस कर अपने घर की नौकरानी से कहती है, "रूपवती मेरा पहला प्यार अधूरा रह गया", तो सिनेमा हॉल में बैठे दर्शकों का दिल भी बैठ जाता है. गला सूखने लगता है. इस फिल्म ने प्रेमिकाओं को साहस दिया था.. फिल्म देखने के बाद प्रेम विहल और प्रेम दमित लड़कियों ने लड़कों को चिट्ठियां भेजकर अपने प्रेम का इज़हार कर दिया था!    

मोहब्बतें (2000), यश चोपड़ा के बेटे आदित्य चोपड़ा की दूसरी फिल्म है, जिसमें प्यार और अनुशासन का सख्त टकराव है. संगीत के शिक्षक राज आर्यन (शाहरुख़ खान) गुरुकुल में प्रिंसिपल नारायण शंकर (अमिताभ बच्चन) के सख्त नियमों और अनुशासन और प्रेम एक कमजोरी है की धारणा को बदल कर कैम्पस में छात्रों को प्रेम करना सीखा देता है. राज आर्यन जता देता है कि सख्त प्रिंसिपल की बेटी के दिल में भी प्यार होता है, और वो स्टूडेंट्स के लिए अप्राप्य जैसी कोई चीज़ नहीं है! 

इसलिए, यूँही नहीं कहा जाता है शाहरुख़ खान को रोमांस का बादशाह.. कभी 'खुशी कभी गम' (2001), 'वीर ज़ारा' (2004), 'चक दे ​​इंडिया' (2007), 'कल हो ना हो' (2003) और 'मैं हूँ ना' (2004) में शाहरुख ने नए जोश, नए लहजे और नई कहानी से दर्शकों का दिल जीता. 

शाहरुख़ खान हर रोल में फिट हैं. उन्होंने अपनी फिल्मों में  विलेन को भी हीरो की तरह दर्शको का प्यार दिलाया है. यही वजह है कि 'बाज़ीगर' और 'डर' आज भी कल्ट क्लासिक फिल्मों का नायब नमूना है. 'बाज़ीगर' (1993) का विक्की मल्होत्रा अपने पिता की मौत और माँ की बर्बादी का बदला लेने के लिए प्रेम को हथियार बनाकर दो बहनों की जिंदगी बर्बाद कर देता है. वहीँ 'डर' (1993) का राहुल मेहरा किरण (जूही चावला) से एकतरफा प्यार में पागल बनकर उसकी पति की हत्या तक कर देता है, फिर भी दर्शकों का प्यार बटोर कर ले जाता है.

'अंजाम' (1994) का विजय अग्निहोत्री अमीर, अहंकारी और एक क्रूर इन्सान है. वह नायिका के साथ धोखा करता है.. 'राम जाने' (2006) का राम प्रसाद ठग और धोखेबाज आदमी है. 'डॉन' (2006) और 'रईस' (2017), 'पठान'  का शाहरुख़ खान एक ग्रे शेड वाला किरदार है, फिर भी उसकी अदाकारी दर्शकों के सिर चढ़कर बोलती है.. ये ही शाहरुख खान की असली सम्पत्ति है.. जो उन्होंने पिछले 35- 40 सालों में कमाई है. बाकी शाहरुख़ खान के पास आज 10 हज़ार करोड़ से ज्यादा की प्रॉपर्टी है, और वो देश के सबसे अमीर कलाकार हैं, एक असली कलाकार के लिए ये मानक और status कोई मायने नहीं रखते हैं. 

हालांकि,  बॉलीवुड के इस टैलेंटेड कलाकार का  दिल्ली की गलियों से लेकर मुंबई के स्टूडियो तक का सफ़र कोई आसान नहीं रहा है, संघर्ष इसके हिस्से में भी आया था.
शाहरुख खान का जन्म 2 नवंबर 1965 को नई दिल्ली के राजेन्द्र नगर में हुआ था. उनके पिता मीर ताज मुहम्मद खान पेशावर (अब पाकिस्तान) के एक राजनीतिक दल के सदस्य थे, जिन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लिया था. उनकी मां लतीफ फातिमा खान एक शिक्षाविद् रह चुकी थीं. शाहरुख का बचपन दिल्ली में गुज़रा था. उनकी प्रारंभिक शिक्षा दिल्ली के सेंट कोलंबस स्कूल में हुई थी. बाद में उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के हंस राज कॉलेज से अर्थशास्त्र में स्नातक किया, शाहरुख़ ने जामिया मिलिया इस्लामिया से मास कम्युनिकेशन में स्नातकोत्तर में एडमिशन भी लिया था, लेकिन बीच में ही पढाई छोड़ दी थी.. खान की अदाकारी का सफ़र 1988 में मशहूर टीवी धारावाहिक 'फौजी' से शुरू हुई, जिसमें उन्होंने एक युवा सैनिक का किरदार निभाया था. 

शाहरुख़ ने 1991 में गौरी छिब्बर से शादी की थी, जो रिश्ता आज भी मज़बूत है. उसी साल, वह अपनी बेटी के साथ फ़िल्मी दुनिया में अपनी किस्मत आजमाने के लिए मुंबई आ गए थे, तब से उनका सफ़र लगातार जारी है. विश यू आल दी बेस्ट 'पठान' !   

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