ख़ानाबदोश गुज्जर बक्करवाल का नहीं बनता है राशन कार्ड जिसके चलते इन्हें सरकारी मंसूबों का फायदा नहीं मिल पाता
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राजू केरनी/जम्मू : कोरोना वायरस के ख़तरात के मद्देनज़र मुल्क भर में जारी लॉक डाऊन की वजह से यौमिया मज़दूरों और मुफ़लिसों के सामने दो वक़्त की रोटी का मसला खड़ा हो गया है. इस दिक़्क़त को देखते हुए बड़े पैमाने पर लोग मदद के लिए सामने आ रहे हैं.वादी में भी समाजी और मज़हबी तंज़ीमें लोगों की मदद को आगे आयी हैं.गरीबों के लिए मदद करने के इस नेक काम को सिक्योरिटी फ़ौज भी अंजाम दे रही हैं. इसी के पेशे नज़र सीआरपीएफ़ की 115वीं बटालियन की जानिब से गांदरबल में 60 ज़रुरतमंद कुंबों को राहत के सामान तक़सीम किए गए. बटालियन की जानिब से 200 ख़ानदानों में राहत रसानी का हदफ़ रखा गया है.
कोरोना वायरस के खिलाफ जंग लड़ने के lockdown और सोशल डिस्टेंसिंग जैसे हथियारों के 2 हफ्ते बीत जाने के बाद जम्मू कश्मीर के खानाबदोश गुज्जर बकरवाल कुंबों पर इस पड़ने वाला बुरे असरियात दिखने लगे हैं. जिसके बारे में शायद इंतेजामिया ने सोचा भी नहीं होगा.
बता दें कि आम तौर पर सर्दियों के महीनों में कश्मीर की ऊंची चरागाहों से जम्मू के मैदानी इलाकों में आने वाले ये ख़ानाबदोश गुज्जर बक्करवाल मार्च-अप्रैल के महीने में अपने माल, मवेशी और कुंबों के साथ जम्मू से कूच करके गुलमर्ग, हलगाम, कुकरनाग,सोनमर्ग की ऊंची चरागाहों में चले जाते है. हजारों की तादाद में इन कुंबों का इस तरह आना जाना सदियों से लगा है.
लेकिन इस साल कोरोना वायरस के चलते मुल्क भर में लागू lockdown के सबब ये घुमंतू क़बीले कश्मीर नहीं जा सके. कोरोना वायरस के चलते इंतेज़ामिया ने इनकी मूवमेंट पर पाबंदी लगा रखी है. लिहाज़ा मेहनत मजदूरी कर जो कुछ पैसे किराए भाड़े के लिए इन लोगों ने जोड़ रखे थे वो इन दिनों खर्च हो गए. ख़ानाबदोश क़बीले से ताल्लुक़ रखने के चलते इनका राशन कार्ड नहीं बनता है जिसके चलते इन कुनबों को सरकारी रिलीफ मंसूबों में शामिल नही किया जाता. हालात अब ये हैं कि छोटे छोटे बच्चों के साथ भूखे प्यासे ये खानाबदोश अपने लिए रोटी की मांग कर रहे हैं.
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साउथ कश्मीर के अनंतनाग जिले की एक दरगाह शरीफ के साथ जुड़े फरीद और रजिया बेगम अपने 3 बच्चों का भी यही हाल है. गर्मियो में अपने मवेशिओ के साथ रोजगार के लिए हर साल आते फरीद को क्या पता था कि इस साल कमाई करके लौटने की बजाए उसके कुंबे को खाने के लाले पड़ जाएंगे. फरीद और रज़िया बेग़म अपने बच्चों को बहला रहें हैं कि खाना आएगा. हालांकि हुकूमत और समाजी तंज़ीमों की जानिब से राहत के तौर पर राशन और दूसरी खाने पीने की चीजें बांटी जा रही है लेकिन शायद इन कुनबों पर किसी की नज़र नहीं जा पा रही.