दूसरी शादी पर इलाहाबाद हाई कोर्ट का बड़ा फैसला; मुसलमानों को खास नसीहत
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दूसरी शादी पर इलाहाबाद हाई कोर्ट का बड़ा फैसला; मुसलमानों को खास नसीहत

Court on Muslim Marriage: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बहुविवाह को लेकर मुसलमानों को खास नसीहत दी है. कोर्ट का कहना है कि इस्लाम में बहुविवाह का प्रावधान होने का गलत इस्तेमाल किया जा रहा है.

दूसरी शादी पर इलाहाबाद हाई कोर्ट का बड़ा फैसला; मुसलमानों को खास नसीहत

Court on Muslim Marriage: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अहम टिप्पणी में कहा है कि मुस्लिम मर्द को तभी दूसरी शादी करने का अधिकार है, जब वह सभी पत्नियों के साथ समानता का व्यवहार करने की क्षमता रखता हो. कोर्ट ने यह टिप्पणी मुरादाबाद से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान की. जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल की एकल पीठ ने कहा कि इस्लाम में बहुविवाह की इजाजत खास वजहों और शर्तों के तहत दी गई है, लेकिन कई बार पुरुष इस प्रावधान का गलत इस्तेमाल करते हैं. कोर्ट ने समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) की भी वकालत की.

क्या है पूरा मामला?

फुरकान, खुशनुमा और अख्तर अली ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसमें मुरादाबाद की एसीजेएम कोर्ट के जरिए उनके खिलाफ जारी समन और चार्जशीट को रद्द करने की मांग की गई थी. इन तीनों के खिलाफ धारा 376, 495, 120-बी, 504 और 506 के तहत एफआईआर की गई था. आरोप था कि फुरकान ने शिकायतकर्ता महिला से यह छिपाकर शादी की कि वह पहले से विवाहित है, और शादी के दौरान उसके साथ दुष्कर्म भी किया.

पिटीशनर ने क्या कहा?

फुरकान के वकील ने कोर्ट में तर्क दिया कि शिकायतकर्ता महिला ने खुद कबूल किया है कि उसने संबंध बनाने के बाद फुरकान से शादी की थी. वकील ने IPC की धारा 494 पर यह दलील दी कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत एक मुस्लिम पुरुष चार शादियां कर सकता है, इसलिए दूसरी शादी अमान्य नहीं मानी जा सकती. उन्होंने 1937 के शरीयत अधिनियम का भी हवाला दिया, जिसमें मुस्लिमों के विवाह और तलाक को शरीयत के मुताबिक इजाजत दी गई है.

सरकारी वकील ने किया विरोध

सरकारी वकील ने इसका विरोध करते हुए कहा कि मुस्लिम पुरुष के जरिए किया गया हर दूसरी शादी लीगल नहीं होती है अगर पहला शादी मुस्लिम कानून के तहत नहीं बल्कि किसी स्पेशल एक्ट या हिंदू कानून के तहत की गई हो. ऐसी कंडीशन में IPC की धारा 494 के तहत मामला बनता है.

कोर्ट ने क्या कहा?

कोर्ट ने कुरान का हवाला देते हुए कहा कि बहुविवाह की इजाजत कुछ खास कंडीशन्स और सख्त शर्तों के तहत दी गई है, लेकिन आजकल इसका गलत इस्तेमाल हो रहा है. कोर्ट ने कहा कि समान व्यवहार की शर्त बेहद अहम है और मुस्लिम पुरुषों को इस्लाम के सिद्धांतों का पालन करना चाहिए.

कोर्ट ने अपने 18 पन्नों के फैसले में यह भी माना कि शिकायतकर्ता महिला के बयान के मुताबिक दोनों मुस्लिम हैं और दोनों ने शादी की थी, इसलिए दूसरी शादी वैध मानी जाएगी. कोर्ट ने IPC की धारा 376 और 495/120-बी के तहत प्रथम दृष्टया कोई अपराध नहीं पाया.

अगली सुनवाई और आदेश

कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 26 मई 2025 से शुरू होने वाले सप्ताह में करने की गुजारिश की है. साथ ही कहा है कि तब तक आवेदकों के खिलाफ कोई भी सख्त कार्रवाई नहीं की जाएगी. कोर्ट ने विपक्षी पक्ष को नोटिस जारी किया है.

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