Supreme Court on Rohingya Deportation: सुप्रीम कोर्ट ने रोहिंग्या शरणार्थियों को जबरन समुद्र में छोड़ने के आरोपों पर दायर याचिका पर अंतरिम राहत देने से इंकार किया है. कोर्ट ने आरोपों पर ठोस सुबूत मांगे और कहा कि भारत की संप्रभुता सर्वोपरि है. याचिकाकर्ता से कोर्ट UNHRC रिपोर्ट पेश करने को कहा है.
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Bangladeshi Rohingya infiltration Case: भारत में लगातार बांग्लादेश और रोहिंग्या नागरिकों के कथित अवैध घुसपैट के दावों पर सियासी रस्साकशी तेज हो गई है. इसी क्रम में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने अवैध बांग्लादेशी और रोहिंग्या नागरिकों के खिलाफ कार्रवाई तेज कर दी है. अवैध बांग्लादेशी और रोहिंग्या (म्यांमार निवासी) को डिपोर्ट करने के लिए सरकार ने एक खास योजना बनाई है.
सरकार ने इसके तहत देश के सभी जिलों में अवैध तरीके से रह रहे विदेशी नागरिकों को चिन्हित कर होल्डिंग सेंटर में रखने के निर्देश दिए हैं. केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इस मामले में सभी राज्य सरकारों को पत्र भेजा है. झारखंड सरकार और मुख्य सचिव को भी इससे संबंधित पत्र भेजा गया है.
झारखंड सरकार को भेजे गए पत्र में कहा है कि सभी राज्य सरकारें अवैध तरीके से रहने वाले बांग्लादेशी और म्यांमार निवासियों को चिह्नित करे. इसके बाद इन्हें होल्डिंग सेंटर में रखे. इसके लिए खुद जिलों में स्पेशल टास्क फोर्स बनाया जाए ताकि इन्हें डिपोर्ट किया जा सके. होल्डिंग सेंटर में जांच-पड़ताल पूरी करने के बाद उन्हें बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स और कोस्ट गार्ड्स को सौंपा जाएगा.
इसके पत्र में आगे कहा गया है कि संबंधित देश को उनके नागरिकों को सौंपा जाएगा. केंद्र सरकार के इस आदेश की तारीफ करते हुए बीजेपी ने कहा कि पूरे देश में यह कार्रवाई चल रही है. सोरेन सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए बीजेपी प्रवक्ता अजय शाह ने कहा, "सिर्फ वोट बैंक की राजनीति के लिए सरकार सच्चाई को कबूल नहीं कर रही है, लेकिन अब मोदी सरकार के फैसले के बाद सभी अवैध बांग्लादेशी और रोहिंग्या नागरिकों को बाहर फेंका जाएगा."
दूसरी तरफ झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) ने कहा कि बीजेपी के पास कोई मुद्दा नहीं है, इसीलिए उनके मंत्रियों के जरिये लगातार देश को शर्मसार करने वाले बयान दिए जा रहे हैं. JMM के महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा, "बीजेपी के नीतियों से साफ है कि वह समाज को तोड़ना चाहते हैं. फिर अगर देश में घुसपैठ हुआ है, तो उसके लिए केंद्र सरकार ही जिम्मेदार है."
JMM महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा, "केंद्र अपनी जवाब देही नहीं तय कर रहा है, वह किसी खास समुदाय को टारगेट करते हुए अनर्गल बयान देते रहते हैं." सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा, "अगर वाकई कोई घुसपैठ हुआ है तो उसे चिन्हित करके रिपोर्ट करने की जरूरत है ना कि मुद्दा बनाने की."
कांग्रेस ने केंद्र सरकार और गृह मंत्रालय की कार्यशैली पर सवाल खड़े किए. कांग्रेस नेता कमल ठाकुर ने कहा,"अगर पूरे देश के लिए सरकार ने पत्र निकाला है, तो फिर किसी खास समुदाय को टारगेट नहीं किया जाना चाहिए. सबसे पहले तो यह तय हो." उन्होंने कहा, "अगर घुसपैठ हुई है तो उन पर कार्रवाई के साथ-साथ प्रधानमंत्री को गृहमंत्री से इस्तीफा ले लेना चाहिए और नए काबिल लोगों को जिम्मेदारी देनी चाहिए."
कांग्रेस नेता कमल ठाकुर ने कहा, "घुसपैठ के मामले पर अगर बीजेपी सवाल उठाती है तो वह अपने नकारा गृहमंत्री की ओर सवाल उठा रही है और यह देश के लिए अच्छी बात नहीं है."
गौरतलब है कि इस दिशा में कार्रवाई के लिए केंद्र का पत्र मुख्य सचिव के स्तर से पुलिस मुख्यालय और सभी जिलों को भेजा गया है. इसे लेकर सभी चिन्हित बांग्लादेशियों और रोहिंग्या नागरिकों के फिंगर प्रिंट और फोटो लिए जाएंगे. जिसके बाद उन्हें उनके देश डिपोर्ट किया जाएगा.
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक रिट याचिका पर सुनवाई के दौरान गंभीर सवाल खड़े किए हैं. इर याचिका के जरिये दावा किया गया था कि भारत सरकार ने 43 रोहिंग्या शरणार्थियों को जबरन इंटरनेशनल समुद्री क्षेत्र में छोड़कर म्यांमार वापस भेज दिया है, जिनमें ज्यादातर महिलाएं, बच्चे और गंभीर बीमारियों से पीड़ित बुजुर्ग शामिल हैं.
जस्टिस सूर्यकांत औरजस्टिस एन. कोटेश्वर सिंह की पीठ ने इस मामले में किसी भी तरह की अंतरिम राहत देने से इनकार करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट पहले भी 8 मई को इसी तरह की एक अन्य याचिका पर राहत देने से इनकार कर चुकी है. कोर्ट ने याचिका में लगाए गए आरोपों को "मिथ्या, अस्पष्ट और मजाकिया" करार दिया. कोर्ट ने कहा कि जब तक इन दावों के समर्थन में ठोस सुबूत नहीं दिए जाते हैं, तब तक उस पर विचार करना मुश्किल है.
सुप्रीम कोर्ट में म्यांमार के पास समुद्र में रोहिंग्या शरणार्थियों को छोड़ने के मामले पर सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान जस्टिस सूर्यकांत ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि "हर दिन एक नई कहानी सामने लाई जाती है, लेकिन उसकी बुनियाद क्या है?" कोर्ट ने याचिका को एक "बेहद खूबसूरती से गढ़ी गई कहानी" करार दिया और ठोस सुबूत पेश करने की मांग की.
'भारत की संप्रभुता को बताया सर्वोपरि'
याचिकाकर्ता के वकील कॉलिन गोंजाल्विस ने बताया कि रोहिंग्या शरणार्थियों को अंडमान से समुद्र में छोड़ दिया गया, जिससे वे अब संघर्ष क्षेत्र में फंस गए हैं. उन्होंने दावा किया कि यह जानकारी उन्हें फोन कॉल के जरिये से मिली. कोर्ट ने इन कॉल्स, वीडियो और अन्य दावों पर संदेह जताया और कहा कि इनकी पुष्टि जरूरी है.
कोर्ट ने UNHRC की जांच रिपोर्ट की मांग की, लेकिन साफ किया कि भारत की संप्रभुता सर्वोपरि है. फिलहाल कोर्ट ने कोई अंतरिम राहत नहीं दी. याचिकाकर्ता ने NHRC बनाम अरुणाचल प्रदेश केस का हवाला देते हुए यह भी कहा कि विदेशी नागरिकों को भी बुनियादी अधिकार हासिल होते हैं, लेकिन कोर्ट ने इस पर भी तत्काल कोई आदेश देने से इनकार कर दिया.
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