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Delhi HC में केंद्र को झटका; PFI की याचिका, सरकार को देना होगा जवाब!

PFI Plea in High Court: पीएफआई ने दिल्ली हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की थी. केंद्र सरकार के तरफ से पेश वकील ने इस याचिका का विरोध किया था, हालांकि बेंच ने इस याचिका को कबूल कर लिया और अब केंद्र से जवाब मांगा है.

Delhi HC में केंद्र को झटका; PFI की याचिका, सरकार को देना होगा जवाब!

PFI Plea in High Court: दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को यह फैसला दिया कि बैन हुए संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) के जरिए दायर वह अपील, जिसमें संगठन ने यूएपीए ट्रिब्यूनल (UAPA Tribunal) के आदेश को चुनौती दी है, सुनने योग्य है. ट्रिब्यूनल ने केंद्र सरकार के जरिए लगाए गए पांच साल के प्रतिबंध को सही ठहराया था.

पीएफआई की बड़ी अपील

मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की बेंच ने यह आदेश सुनाया और केंद्र सरकार की उस आपत्ति को खारिज कर दिया जिसमें कहा गया था कि हाईकोर्ट इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकता. अदालत ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी करते हुए मामले की अगली सुनवाई 20 जनवरी 2026 के लिए तय की है.

केंद्र की दलील: हाईकोर्ट नहीं कर सकता समीक्षा

सुनवाई के दौरान अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (ASG) एस.वी. राजू, जो केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए थे, ने पिटीशन के कबूल करने का कड़ा विरोध किया. उन्होंने कहा कि चूंकि यूएपीए ट्रिब्यूनल की अध्यक्षता हाईकोर्ट के मौजूदा जज करते हैं, इसलिए उसी हाईकोर्ट की दूसरी पीठ उसके आदेश की समीक्षा नहीं कर सकती.

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एएसजी ने यह भी तर्क दिया कि ट्रिब्यूनल का आदेश केवल सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अनुच्छेद 136 के तहत ही चुनौती दी जा सकती है. उन्होंने कहा, "ट्रिब्यूनल का आदेश हाईकोर्ट की दूसरी पीठ के जरिए जांचा नहीं जा सकता, क्योंकि ट्रिब्यूनल एक अधीनस्थ न्यायालय (subordinate court) नहीं है, जिस पर अनुच्छेद 226 और 227 लागू हों."

पीएफआई ने क्या दी दलील?

वहीं, पीएफआई के वकील ने कहा कि याचिका पूरी तरह से सुनने योग्य है. उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 226 के तहत न्यायिक समीक्षा (judicial review) संविधान की मूल संरचना (basic structure) का हिस्सा है और इसे सीमित नहीं किया जा सकता.

उन्होंने पूर्व न्यायिक फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि न्याय तक पहुंच नागरिकों का अधिकार है और हाईकोर्ट को संवैधानिक या प्रक्रिया से जुड़े सवालों की समीक्षा करने का अधिकार है.

कोर्ट ने क्या कहा?

दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि याचिका की स्वीकार्यता को संविधान द्वारा गारंटीकृत न्यायिक समीक्षा के दायरे में देखा जाना चाहिए. अदालत ने माना कि पीएफआई की याचिका सुनने योग्य है और केंद्र सरकार को अगली सुनवाई से पहले अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया.

क्या है पूरा मामला?

यह मामला केंद्र सरकार के सितंबर 2022 के अधिसूचना से जुड़ा है, जिसके तहत पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) और उससे जुड़े संगठनों पर पांच साल का प्रतिबंध लगाया गया था. सरकार ने यूएपीए के तहत यह प्रतिबंध लगाया था, यह कहते हुए कि पीएफआई आतंकी गतिविधियों में शामिल, कट्टरपंथ फैलाने और राष्ट्रीय सुरक्षा के खिलाफ काम करने में शामिल है. इसके बाद गठित यूएपीए ट्रिब्यूनल, जिसकी अध्यक्षता हाईकोर्ट के एक मौजूदा न्यायाधीश ने की थी. जिन्होंने केंद्र के इस प्रतिबंध को सही ठहराया था. 

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Sami Siddiqui

समी सिद्दीकी उप्र के शामली जिले के निवासी हैं, और 6 से दिल्ली में पत्रकारिता कर रहे हैं. राजनीति, मिडिल ईस्ट की समस्या, देश में मुस्लिम माइनॉरिटी के मसले उनके प्रिय विषय हैं. इन से जुड़ी सटीक, सत्य ...और पढ़ें

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