लिबास और लिहाज की बंदिश तोड़ इन 5 महिलाओं ने मुस्लिम औरतों को लेकर बदल दिया पूरी दुनिया का नज़रिया
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लिबास और लिहाज की बंदिश तोड़ इन 5 महिलाओं ने मुस्लिम औरतों को लेकर बदल दिया पूरी दुनिया का नज़रिया

Pakistani Women Created History : किसी ने खाई तालिबानी गोली तो कोई बनी माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली मुस्लिम महिला, पाकिस्तान की इन पांच महिलाओं ने बदलकर रख दिया पूरी दुनिया में मुस्लिम महिलाओं को लेकर लोगों का नजरिया.   

 लिबास और लिहाज की बंदिश तोड़ इन 5 महिलाओं ने मुस्लिम औरतों को लेकर बदल दिया पूरी दुनिया का नज़रिया

Five Pakistani Women Who changed History: अंग्रेजों ने भारत से जाते-जाते उसके दो टुकड़े कर दिए. साल 1947 में भारत और पाकिस्तान दो अलग-अलग देशों के रूप में दुनिया के सामने आया. पाकिस्तान को आजादी के बाद काफी संघर्ष करना पड़ा, लेकिन फिलहाल पाकिस्तान एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और जटिल इतिहास वाला देश बन गया है. इस देश की महिलाओं ने भी पाकिस्तान की तरक्की में काफी अहम भूमिका निभाई है. ऐसे में आज हम बात करेंगे उन पांच महिलाओं की, जिन्होंने अपने संघर्ष से पाकिस्तान के इतिहास को पूरी तरह से बदलकर रख दिया है. 

इन महिलाओं ने पाकिस्तान में महिलाओं के साथ हो रहे गलत कामों का विरोध किया और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक नया रास्ता तैयार कर दिया है, जिसपर चलकर वह अपने भविष्य को बेहतर बना सकती हैं. 

बेनजीर भुट्टो
इस लिस्ट में सबसे पहला नाम आता पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो का.  बेनजीर भुट्टो मुस्लिम बहुल राष्ट्र में लोकतांत्रिक सरकार का नेतृत्व करने वाली पहली महिला थीं. बेनज़ीर भुट्टो का पाकिस्तान के इतिहास पर गहरा और काफी कारगर प्रभाव पड़ा, जो उन्हें दक्षिण एशियाई राजनीति में सबसे प्रभावशाली व्यक्तियों में से एक बनाता है. इसके अलावा, उन्होंने मुस्लिम बहुल देशों में लोकतंत्र, महिला अधिकारों और राजनीतिक नेतृत्व पर वैश्विक चर्चा में एक महत्वपूर्ण किरदार भी निभाया है. बेनजीर भुट्टो साल 1988 में पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बनकर पूरी दुनिया में मुस्लिम महिलाओं के लिए एक ताकत बनकर सामने आईं. उनके पीएम बनने से तमाम महिलाओं और पुरुषों में इस बात की समझ आईं कि महिलाएं भी राजनीति के सबसे ऊपरी मुकाम तक पहुंच सकती है. 

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बेनजीर भुट्टो, पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री  

बेनजीर भुट्टो ने अपने शासन काल में गरीबी में कमी, स्वास्थ्य सेवा में सुधार और शिक्षा के उद्देश्य से नीतियों को लागू किया. उन्होंने पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था और बुनियादी ढांचे को आधुनिक बनाने के लिए काफी मेहनत की थी. इसके साथ-साथ एक महिला होने के नाते उन्होंने महिलाओं के आत्मनिर्भरता और शिक्षा को काफी बढ़ावा दिया, लेकिन शायद इस बात से बाकी लोग इत्तफाक नहीं रखते थे. साल 2007 के दिसंबर महीने में उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई. 

मलाला यूसुफजई 
21वी सदी में महिलाओं की शिक्षा और अधिकारों के लिए लड़ने वालों में अगर किसी का नाम सबसे पहले आता है, तो वह हैं मलाला यूसुफजई. मलाला यूसुफजई ने पाकिस्तान के इतिहास में एक अलग मुकाम बना लिया है.  मलाला यूसुफजई की कहानी आज हर लड़कियों के लिए प्रेरणा की वजह बनी है. उन्होंने लाखों लड़कियों के सपनों और जिंदगी को बदलर रख दिया है. मलाला को उनके कामों के लिए तालिबानी गोलियों का भी शिकार होना पड़ा. लेकिन उनका हौसला कम नहीं हुआ. वह दुनिया भर के सभी बच्चों के लिए शिक्षा के अधिकारों की वकालत करने के लिए अपनी आवाज़ उठाती रही. उनकी आवाज दुनिया भर में गुंजने लगी. और फिर साल 2014 में मलाला महज 17 साल की उम्र में सबसे कम उम्र की नोबेल पुरस्कार विजेता बनीं, उन्होंने भारतीय बाल अधिकार कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी के साथ शांति पुरस्कार साझा किया. इस पुरस्कार ने बच्चों और युवाओं के दमन के खिलाफ और सभी बच्चों के शिक्षा के अधिकार के लिए उनके संघर्ष को मान्यता दी. इस मंच के माध्यम से, उन्होंने पाकिस्तान, अफगानिस्तान, भारत, नाइजीरिया और सीरिया सहित विभिन्न देशों में शिक्षा कार्यक्रमों के लिए संसाधन, धन और समर्थन जुटाया है. 

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मलाला यूसुफजई, नोबेल पुरस्कार विजेता 

आरफा करीम
पाकिस्तान के प्रौद्योगिकी और शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति लाने के लिए आरफा करीम का नाम हमेशा सबसे पहले लिया जाता है. महज 9 साल की उम्र में आरफा दुनिया की सबसे कम उम्र की माइक्रोसॉफ्ट प्रमाणित पेशेवर (MCP) बन गई थी. यह उपलब्धि सिर्फ़ एक व्यक्तिगत मील का पत्थर नहीं थी, इसने अंतरराष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़ दिए और उन्हें प्रौद्योगिकी क्षेत्र में युवा क्षमता के प्रतीक के रूप में दुनिया के मैप पर ला खड़ा किया.  आरफा की कहानी पाकिस्तान और अन्य देशों की लड़कियों के लिए खास तौर से प्रेरणादायक है. उन्होंने दिखाया कि जुनून और समर्पण के साथ, युवा लड़कियां प्रौद्योगिकी में उत्कृष्टता प्राप्त कर सकती हैं और महत्वपूर्ण योगदान दे सकती हैं. आरफा की पहचान पाकिस्तान से निकलकर पूरी दुनिया में होने लगी. उन्हें बिल गेट्स द्वारा यूएसए में माइक्रोसॉफ्ट मुख्यालय का दौरा करने के लिए इनवाइट किया गया था. लेकिन साल 2012 में अचानक से आरफा की मौत से युवाओं को बहुत बड़ा झटका लगा. इसके बाद उनके इस काम को जारी रखने के लिए एक मिशन की स्थापना की गई. जिसका नाम आरफा करीम फाउंडेशन  रखा गया. यह फाउंडेशन पाकिस्तान में युवाओं को संसाधन, प्रशिक्षण और अवसर प्रदान करने के लिए काम करता है. 

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आरफा करीम, दुनिया की सबसे कम उम्र की माइक्रोसॉफ्ट पेशेवर 

आसमा जहाँगीर 
आसमा जहाँगीर का पाकिस्तान के इतिहास में काफी गहरा प्रभाव पड़ा. उन्होंने मानवाधिकारों और लोकतंत्र के क्षेत्र में काफी काम किया है. वह पाकिस्तान और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर न्याय के लिए लड़ती हैं.  वह हाशिए पर पड़े लोगों की वकील के रूप में काम करती हैं और विपरीत परिस्थितियों का सामना करने के लिए साहस के साथ लोगों के लिए खड़ी रहती हैं. अस्मा जहाँगीर पाकिस्तान में मानवाधिकारों, महिलाओं के अधिकारों, धार्मिक आजादी और जातीय समूहों के अधिकारों की रक्षा के लिए हमेशा तैयार रहती हैं. उनकी वकालत समाज के सबसे कमज़ोर लोगों तक फैली हुई थी, जिसमें कैदी, मज़दूर और हिंसा की शिकार महिलाएँ शामिल थीं. अस्मा जहाँगीर एक वकील के रूप में पाकिस्तान के इतिहास में एक अलग छाप छोड़ रही हैं. 

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आसमा जहाँगीर, मानवाधिकार कार्यकर्ता

समीना बेग
समीना बेग माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पाकिस्तानी महिला और पहली मुस्लिम महिला थीं. उनके इस कामयाबी ने पाकिस्तान समेत तमाम मुस्लिम लड़कियों के अंदर एक अलग जुनून पैदा कर दिया. जिसने पाकिस्तान के इतिहास को पूरी तरह से पलटकर रख दिया. 19 मई, 2013 को समीना बेग 21 साल की उम्र में माउंट एवरेस्ट की चोटी पर पहुँचीं यह उपलब्धि सिर्फ़ एक व्यक्तिगत जीत ही नहीं थी, बल्कि खेल में महिलाओं के लिए एक बड़ी सफलता भी थी. यह एक ऐसा खेल है जिस पर अक्सर पुरुषों का दबदबा होता है और रूढ़िवादी समाज की महिलाओं की पहुँच से बाहर माना जाता है. बेग की सफलता ने उन्हें पाकिस्तान और दुनिया भर की महिलाओं के लिए एक आदर्श बना दिया है. पर्वतारोहण के अलावा, समीना बेग ने लैंगिक समानता, महिलाओं के अधिकारों और शिक्षा की वकालत करने के लिए अपने मंच का इस्तेमाल किया है. 

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समीना बेग, माउंट एवरेस्ट क्लाइम्बर 

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