Gold Haram for Men in Islam: दुनिया भर में इस्लाम के मानने वाले कोई भी काम करने से पहले हलाल और हराम का बहुत ख्याल करते हैं. इस्लाम के नियमों और रीति- रिवाजों को लेकर दुनिया में भ्रांतियां फैली हुई हैं. उन्हीं विषयों में से एक है कि इस्लाम में आखिर मर्दों को सोना पहनने से क्यों रोका गया है. आज इसी पर चर्चा करेंगे.
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Islamic Law: भारत समेत दुनिया भर में इस्लाम और मुसलमानों को लेकर कई भ्रांतियां फैली हुई हैं. इस्लाम के नियमों का पालन करने पर अक्सर मुसलमानों को कट्टरपंथी और समाज के लिए संवेदनशील माना जाता है. इसकी वजह है कि मुसलमान किसी भी काम को करने से पहले हराम और हलाल का बहुत ख्याल करते हैं. कुराना और हदीस में इस बात का साफ़ जिक्र कर दिया गया है, कि उनके लिए हलाल और क्या हराम है? उन्हीं में से एक है मुसलमान मर्दों का सोना पहनना, जिसे पहनने से मना किया गया है.
मध्य पूर्व के अमीर देशों के शेख और बादशाह सोने के जहाज़, सोने की कार और बाथरूम में सोने का कमोड तक इस्तेमाल करते हैं, लेकिन वो लोग कभी सोना धारण नहीं करते हैं. इसके पीछे उनका इस्लामी मत है, जो उन्हें सोना पहनने से रोकता है. इस्लाम में सुंदरता और सजावट को न सिर्फ़ मंज़ूरी दी गई है, बल्कि इसे पसंद भी किया गया है.
मशहूर इस्लामी विद्वान शेख यूसुफ अल-करजावी अपनी प्रसिद्ध किताब "इस्लाम में हलाल और हराम" में लिखते हैं कि: "सजावट और सुंदरता इस्लाम में सिर्फ़ जायज़ नहीं, बल्कि यह ज़रूरी मानी गई है. अल्लाह ने फ़रमाया: 'कहो (ऐ नबी): अल्लाह की उस ज़ीनत को किसने हराम किया जो उसने अपने बंदों के लिए निकाली है?" (क़ुरआन, सुरह अल-आराफ़: 32)
हालांकि, इस्लाम में पुरुषों के लिए दो प्रकार की सजावट पर पाबंदी लगाई गई है, जबकि महिलाओं के लिए यह इजाज़त दी गई है:
सोने के ज़ेवर
खालिस रेशम के कपड़े
हज़रत अली (रज़ि.) से रिवायत है कि नबी ए करीम (स.अ.) ने एक बार अपने दाएं हाथ में रेशम और बाएं हाथ में सोना लेकर फ़रमाया: "ये दोनों चीज़ें मेरी उम्मत के मर्दों के लिए हराम हैं और औरतों के लिए हलाल हैं."
एक बार नबी (स.अ.) ने एक मर्द के हाथ में सोने की अंगूठी देखी, तो उसे निकालकर फेंक दिया और फ़रमाया:
जब नबी (स.अ.) चले गए, तो लोगों ने उस मर्द से पूछा कि अंगूठी क्यों नहीं उठाई? उसने जवाब दिया: "अल्लाह की कसम, जिसे रसूल (स.अ.) ने फेंक दिया, मैं उसे कभी नहीं उठाऊंगा."
रसूल (स.अ.) ने खुद चांदी की अंगूठी पहनी थी और उनके बाद खलीफा अबू बक्र, उमर और उस्मान (रज़ि.) ने भी वही अंगूठी पहनी. इसके अलावा, लोहे की अंगूठी को लेकर भी एक हदीस में है कि नबी (स.अ.) ने एक सहाबी से कहा: "अगर कुछ नहीं है तो लोहे की अंगूठी ही दहेज में दे दो." (हदीस: बुख़ारी)
मुसलमान मर्दों का सोना पहनने का जिक्र कुरआन में कहीं पर नहीं मिलता है, लेकिन हदीस में इसका जिक्र किया गया है. सही मुस्लिम की हदीस नंबर-2069 में पैंगबर हजर मोहम्मद (स.अ.) ने फरमाया कि "सोना और रेशम मर्दों के लिए हराम है."
मर्दों को सोना नहीं पहनने के आदेश के पीछे कई वजहें हैं. मुफ़्ती अब्दुर्रहीम अहमद कहते हैं, "एक मुसलमान कुरआन और हदीस की बातों पर आंख बंद कर भरोसा करता है, बिना किसी दलील या लॉजिक के. यानी अगर अल्लाह या रसूल का आदेश है, तो उसके पीछे कोई न कोई मकसद होगा. इंसान का फायदा छुपा होगा."
मुफ़्ती अब्दुर्रहीम अहमद कहते हैं, "इस्लाम में मर्दों को सजने-संवरने से मना किया गया है. ये औरतों का काम है. अगर मर्दों को भी ये छूट दे दी जायेगी तो वो सज- संवर कर औरतों जैसा व्यवहार करने लगेगा." उसमे स्त्रियोचित गुणों का विकास हो जाएगा. इसलिए उसे सोना पहनने से रोका गया है. चांदी पर रोक नहीं है, लेकिन उसकी भी एक सीमा तय है."
मर्द और औरत की सामाजिक भूमिका स्पष्ट करने के लिए जेवर का इस्तेमाल एक सामाजिक प्रतीक है. औरतों के लिए कीमती जेवर उनके सौंदर्य और श्रृंगार से जुड़ी है, जबकि मर्दों के लिए सोने या दूसरी कीमती चीजों का इस्तेमाल उनकी विलासिता, वैभव को उजागर करता है.
इस मामले में जामिया मिलिया इस्लामिया के इस्लामिक अध्ययन के पूर्व छात्र और मुफ़्ती अबरार अहमद कहते हैं, "पुरुषों को सोना पहनने से इसलिए रोका गया है ताकि समाज में दौलत की नुमाइश पर रोक लगाई जा सके. मर्दों के सोना पहने से सामजिक स्तर पर वर्गीय विभाजन पैदा हो जाएगा और इससे आर्थिक असमानताओं को बढ़ावा मिलेगा और सामाजिक असुरक्षा पैदा होगी."
उन्होंने आगे कहा, "दौलत, शौहरत का दिखावा कम होने से अमीर और गरीब के बीच की खाई मिटेगी. मर्दों के सोना न पहनने पर समाज में सादगी पैदा होगी." इस्लाम का मकसद एक ऐसा समाज बनाना है जहां सादगी और बराबरी हो. मर्दों को सोना और रेशम पहनने से मना करना इस बात का हिस्सा है कि समाज में फिजूलखर्ची और विलासिता न बढ़े.
कुछ उलेमा मानते हैं कि सोना पहनने से मर्दों में नामर्दी पैदा होती है. इसलिए हदीस में इसे पुरुषों को पहनने से रोका गया है. ज़्यादातर उलेमा इस बात से इत्तिफाक रखते हैं कि शरीर पर सोना धारण करने से पुरुषों में मर्दानगी कम हो जाती है. ये जाहिरी तौर पर और उसके अंदर के स्पर्म काउंट पर भी असर डालता है.
नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी के जरिये 2016 में पब्लिश की गयी रिसर्च जर्नल की एक रिपोर्ट में चूहों पर किये गए एक्सपेरिमेंट का हवाला देते हुए इस बात की तस्दीक की गई है कि सोना मेल चूहों के शुक्राणुओं की संख्या को कम करते हैं. शोध में पाया गया कि सोने के नैनो-कण सबसे पहले शुक्राणु की गतिशीलता को कम कर सकते हैं, और दूसरे शुक्राणु क्रोमेटिन रीमॉडलिंग को प्रभावित कर सकते हैं. ये शुक्राणु डीएनए क्षति की दर को भी बढ़ा सकते हैं.
हेल्थ, स्प्रिचुआलिटी एंड एथिक्स जर्नल की 2015 की अंक में छपी एक रिसर्च रिपोर्ट में भी इस बात की पुष्टि की गयी है कि पुरुषों के शरीर पर धारण किये गए सोने के कण उसके शुक्राणुओं में पाए गए हैं, जो उसके स्पर्म काउंट और उसकी गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं. ये रिसर्च 20 पुरुष हेल्थ प्रोफेशनल पर किये गए थे.
इस रिसर्च को इस्लाम में पुरुषों के लिए सोना हराम क्यों है? शोध समस्या के तौर पर ईरान के स्कूल ऑफ़ एलाइड हेल्थ साइंसेज, बाबोल यूनिवर्सिटी मेडिकल ऑफ़ साइंस, बाबोल, के शोधार्थियों ग़ोलामरेज़ा अतेई, फ़तेमेह रेज़ाई और महबूबेह ख़ादेम अबोलफ़ज़ली ने किया था.
जनवरी 2009 में Fertility and Sterility नाम की रिसर्च जर्नल में Effect of gold nanoparticles on spermatozoa: the first world report, तीन डॉक्टर्स विरोज विवानिटकिट एम.डी., सेरीमासपुन एम.डी. बी और रोज्रिट रोजानाथनेस पीएच.डी. के रिसर्च में इस बात का खुलासा किया गया है मर्दों के शरीर में सोना पहनने से उसका सीधा असर उसके स्पर्म की सेहत पर पड़ता है. स्पर्म की गुणवत्ता खराब होती है, और उसके अंदर सोने के पार्टिकल्स पाए गये.