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Supreme Court on Waqf Amendment Act 2025: सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने मंगलवार (20 मई) को संशोधित वक्फ कानून से जुड़ी कई याचिकों पर एक साथ सुनवाई की. वक्फ कानून पर अंतरिम रोक लगाने वाली याचिकाओं में सुप्रीम सुनवाई के दौरान करीब पौने चार घंटे तक मैराथन सुनवाई हुई. इस दौरान पक्ष और विपक्ष में कई महत्वपूर्ण तर्क और दलीलें दी गईं.
याचिकाकर्ताओं की ओर से सीनियर वकील वकील कपिल सिब्बल, राजीव धवन, अभिषेक मनु सिंघवी और सीयू सिंह ने अपनी दलीलें सुप्रीम कोर्ट की डबल बेंच के सामने पेश कीं. याचिकार्ताओं की ओर दलील दी गई है कि वक्फ कानून की जो सालों पुरानी रुपरेखा है, उसे यह कानून छीनने वाला है. इतना नहीं कोर्ट में दावा किया गया कि संशोधित वक्फ कानून प्रॉपर्टी को हथियाने वाला है.
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि 'वक्फ बाय यूजर' प्रॉपर्टी के लिए रजिस्ट्रेशन का प्रावधान 1954 से था, लेकिन पहले ऐसान नहीं था कि रजिस्ट्रेशन न होने पर वक्फ संपत्ति का स्टेट्स खत्म हो जाएगा. इसके उलट नए कानून में कहा गया है कि रजिस्ट्रेशन न होने पर उन्हें वक्फ नहीं माना जाएगा.
इसी तरह से याचिकाकर्ताओं की तरफ से आगे दलील दी गई है कि नए कानून में यह प्रावधान है कि अगर किसी संपत्ति को ASI संरक्षित स्मारक घोषित किया जाता है, तो उसका वक्फ प्रॉपटी स्टेटस छिन जाएगा. अगर नया कानून जारी रहता है तो संभल की शाही जामा मस्जिद भी वक्फ संपत्ति नहीं रह जाएगी. यह तो सिर्फ एक उदाहरण है, ऐसी अनेक वक्फ संपत्ति है, जो अपना स्टेटस खो देंगी.
वक्फ कानून संविधान का उल्लंघन
सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि अगर किसी मस्जिद को ASI संरक्षित स्मारक घोषित किया जाता है तो क्या वहां मुसलमानों के इबादत का अधिकार भी छिन जाएगा. इस पर सीनियर वकील कपिल सिब्बल ने कहा, "ऐसी सूरत में उस संपत्ति को वक्फ करने का मकसद ही खत्म हो जाएग." सिब्बल ने दलील दी कि नया कानून संविधान के आर्टिकल 14 (समानता के अधिकार), आर्टिकल 25 (धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार), आर्टिकल 26 (धार्मिक संस्थाओं के प्रबंधन का अधिकार) का हनन करता है.
कोर्ट में कपिल सिब्बल ने दलील दी कि नए कानून में प्रावधान है कि धर्मांतरण के जरिए इस्लाम अपनाने वाला व्यक्ति 5 साल से पहले वक्फ नहीं कर सकता. यह प्रावधान पूरी तरह असंवैधानिक है. उन्होंने कहा कि यह आर्टिकल 25 के तहत धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का हनन करने वाला है.
वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों के चयन पर भी कपिल सिब्बल ने सवाल उठाए. सिब्बल ने दलील दी कि पहले वक्प बोर्ड में लोग चुन कर आते थे, सभी मुस्लिम होते थे. अब सभी सदस्य मनोनीत होंगे, जिसके सदस्यों की संख्या 11 होगी. इन 11 सदस्यों में से 7 मुस्लिम और 4 गैर मुस्लिम हो सकते हैं. उन्होंने कहा कि सेंट्रल वक्फ काउंसिल में अगर गैर मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति होती है तो मुस्लिम समुदाय का वक्फ प्रॉपर्टी के प्रबंधन का अधिकार बाधित होता है.
इस मामले की सुनवाई के दौरान चीफ जस्टि ऑफ इंडिया बीआर गवई ने अहण टिप्पणी की. उन्होंने कहा कि आम तौर पर कोर्ट किसी कानून पर अपना फैसला लेने तक उसके अमल पर अंतरिम रोक नहीं लगता है. ऐसा सिर्फघ तभी होता है जब कानून को चुनौती देने वालों का केस बहुत मजबूत हो.
इस पर कपिल सिब्बल ने कहा कि अगर कानून के अमल पर रोक नहीं लगाया जाता है तो इसकी वजह से ऐसा नुकसान होगा, जिसकी भरपाई नहीं हो सकती. उन्होंने इससे बड़ी संख्या में वक्फ प्रॉपर्टी का स्टेटस छिन जाने की आशंका जताई. सिब्बल ने दलील दी कि सेक्शन 3 के तहत प्रावधान है कि अगर कोई सरकारी संस्था या पंचायत जैसा स्थानीय निकाय भी किसी वक्फ संपत्ति पर अपना दावा करता है और कमिश्नर इसकी जांच करना शुरू कर देता है कि वो सरकारी संपत्ति है या नहीं? तो उसकी जांच जारी रहने के दरम्यान भी उसे वक्फ संपत्ति नहीं माना जाएगा. यानि सिर्फ दावा करने भर से ही उसका वक्फ स्टेटस छिन जाएगा.
सीनियर वकील कपिल सिब्बल ने कहा, "किसी वक्फ प्रॉपर्टी पर सरकारी संपत्ति और दावे की जांच के लिए जो प्रकिया है, वह सही नहीं हैं. जांच करने का जिसको अधिकार मिला है, वो भी सरकारी अधिकारी है यानि यह ऐसा है कि कोई मुवक्किल अपने ही केस में जज हो." उन्होंने कहा, "वक्फ के लिए अपनी संपत्ति देने वाले को ट्रिब्यूनल में आने का अधिकार तब मिलता है, जब अधिकारी इस नतीजे पर पहुंच जाए कि संपत्ति वक्फ नहीं है."
कोर्ट के एक सवाल के जवाब में कपिल सिब्बल ने कहा कि मस्जिद में मंदिरों की तरह हजारों करोड़ का चढ़ावा नहीं आता है. चीफ जस्टिस ने सवाल उठाया कि मैं तो दरगाह, चर्च गया हूं. वहां तो चढ़ावा होता है. इस पर कपिल सिब्बल ने दलील दी कि दरगाह मस्जिद से अलग हैं. मैं मस्जिद की बात कर रहा हूं.