Kerala HC on Second Muslim Marriage:केरल हाईकोर्ट ने मुस्लिम मर्दों के एक से ज्यादा शादी को लेकर अहम फैसला सुनाया है. कोर्ट ने कहा कि पहली बीवी के जिंदा रहते और शादी कायम होने की स्थिति में, दूसरी शादी के लिए पहली बीवी की सहमति होनी जरूरी है. हालांकि, कोर्ट ने यह भी कहा कि व्यक्तिगत तौर पर शादी मान्य हो सकती है, लेकिन कानूनी तरह दूसरी शादी अमान्य होगी.
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Kerala News Today: भारत में मुसलमानों की एक से ज्यादा शादी हमेशा चर्चा का विषय रही है. इस्लाम में चार शादियों की इजाजत हैं, लेकिन एक बीवी के जिंदा रहते हुए दूसरी शादी करने के लिए कई नियम और शर्तें हैं. मुस्लिम समुदाय में एक से ज्यादा शादी करने वाले लोग अक्सर शरीयत के इन शर्तों और नियमों की अनदेखी करते हैं. इसको लेकर केरल हाईकोर्ट का बड़ा फैसला सामने आया है.
केरल हाईकोर्ट ने मुसलमानों में एक से ज्यादा शादी को लेकर अहम फैसला सुनाया है. इस फैसले में हाईकोर्ट ने कहा कि अगर कोई मुस्लिम मर्द अपनी पहली बीवी के रहते हुए दूसरी शादी के लिए रजिस्ट्रेशन करवाता है, तो उसकी पहली बीवी को भी इस प्रक्रिया में शामिल किया जाना चाहिए और उसकी बात सुना जाना जाहिए कि क्या वह इस बात से सहमत है या नहीं.
अपने फैसले में हाईकोर्ट की जस्टिस पी वी कुन्हींकृष्णन की सिंगल बेंच ने कई अहम टिप्पणी की. उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति में धर्म गौण (Secondary) हो जाता है और संविधान के तहत मिलने वाले अधिकार सबसे ऊपर (Supreme) होते हैं. जस्टिस कुन्हींकृष्णन ने कहा, "जब दूसरी शादी के रजिस्ट्रेशन का सवाल उठता है, तो प्रथा के हिसाब से धार्मिक कानून लागू नहीं होते." उन्होंने यह भी कहा, "मुझे नहीं लगता कि पवित्र कुरान या मुस्लिम कानून किसी मर्द को, जब उसकी पहली बीवी जीवित है और शादी अब भी कायम है, बिना उसकी जानकारी के किसी दूसरी औरत से संबंध रखने या शादी करने की इजाजत देता है."
बता दें कि इस मामले केरल के एक शख्स और उसकी बीवी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. इस याचिका में दोनों ने हाईकोर्ट से मांग की थी कि वह राज्य सरकार को निर्देश दे कि उनकी शादी को रजिस्टर्ड किया जाए. हालांकि, अदालत ने यह याचिका खारिज कर दी, क्योंकि याचिकाकर्ता ने अपनी पहली बीवी मामले पक्षकार नहीं बनाया था.
जस्टिस कुन्हींकृष्णन ने कहा कि मुस्लिम कानून के तहत दूसरी शादी की इजाजत है, लेकिन सिर्फ कुछ विशेष परिस्थितियों में. साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी मुस्लिम शख्स की दूसरी शादी के रजिस्ट्रेशन के लिए उसकी पहली बीवी को मूकदर्शक नहीं बनाया जा सकता है.
फैसले में अदालत ने कहा, "याचिकाकर्ता (शौहर) अगर अपने व्यक्तिगत कानून के मुताबिक दोबारा शादी करना चाहता है, तो कर सकता है. लेकिन अगर वह अपनी दूसरी बीवी के साथ उस शादी का रजिस्ट्रेशन करवाना चाहता है, तो देश का कानून लागू होगा. ऐसी स्थिति में पहली बीवी की बातों को सुना जाना भी जरुरी है."
हाईकोर्ट ने कहा, "ऐसे मामलों में धर्म गौण होता है और संवैधानिक अधिकार सर्वोपरि होते हैं. यह अदालत पहली बीवी की भावनाओं को अनदेखा नहीं कर सकती, जब उसका शौहर दूसरी शादी का रजिस्ट्रेशन करवाना चाहता है." जस्टिस कुन्हींकृष्णन ने कहा कि उन्हें पूरा यकीन है कि 99.99 फीसदी मुस्लिम औरतें अपने शौहर की दूसरी शादी के खिलाफ होंगी, जब तक पहली शादी कायम है.
इकोनॉमिक टाइम्स में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, इस मामले में एक मुस्लिम शख्स ने दावा किया था कि उसने अपनी पहली बीवी की सहमति से दूसरी शादी की है. उसने एक दूसरी औरत से शादी कर ली थी, जबकि उसकी पहली शादी अब भी वैध थी. इसके बाद उसने अपनी दूसरी शादी को रजिस्टर करवाने की कोशिश की, तो स्थानीय प्रशासन ने ऐसा करने से इंकार कर दिया.
इसके बाद शख्स ने हाईकोर्ट का रुख किया. इस पर हाईकोर्ट ने कहा कि विवाह पंजीकरण अधिकारी इस मामले में पहली बीवी को भी सुन सकता है. अगर पहली बीवी शौहर की दूसरी शादी को अमान्य बताकर आपत्ति जताती है, तो मामला सिविल कोर्ट भेजा जा सकता है ताकि यह तय किया जा सके कि दूसरी शादी वैध है या नहीं.
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, "जब किसी मुस्लिम मर्द की दूसरी शादी का रजिस्ट्रेशन किया जा रहा हो, तो उसकी बीवी को भी अपनी बात रखने का मौका मिलना चाहिए और कम से कम रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया के दौरान तो जरूर इस बात का पालन जरुर किया जाना चाहिए." आखिर में कोर्ट ने यह कहते हुए याचिका को खारिज कर दिया कि पहली बीवी को सुने बिना और उसकी सहमति के बिना दूसरी शादी का रजिस्ट्रेशन नहीं किया जा सकता.
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