Bombay HC on Kafeel Ayub Bail: मुंबई के 2011 ट्रिपल ब्लास्ट केस में बॉम्बे हाईकोर्ट ने कफील अहमद अयूब को 14 साल बाद जमानत दे दी है. कोर्ट ने कहा कि किसी भी आरोपी को बिना ट्रायल के अनिश्चितकाल तक जेल में रखना संविधान के खिलाफ है. अदालत ने इसे किसी शख्स के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन माना है.
Trending Photos
)
Mumbai Triple Blast Case: मुंबई के 2011 के चर्चित ट्रिपल ब्लास्ट केस में बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है. अदालत ने 65 साल के कफील अहमद अयूब को जमानत दे दी है. अयूब पिछले करीब 14 साल से जेल में बंद था. उनके खिलाफ गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम यानी UAPA और महाराष्ट्र कंट्रोल ऑफ ऑर्गनाइज्ड क्राइम एक्ट (MCOCA) के तहत मामला दर्ज था.
जस्टिस ए.एस. गडकरी और जस्टिस आर.आर. भोंसले की खंडपीठ ने कहा कि आरोपी को ट्रायल से पहले ही एक दशक से ज्यादा समय जेल में रखा गया है और मुकदमे के जल्द पूरा होने की कोई संभावना नहीं दिख रही. अदालत ने कहा कि लंबे समय तक ट्रायल न होने की स्थिति में किसी आरोपी को जेल में रखना उसके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है.
कोर्ट ने इस दौरान सुप्रीम कोर्ट के साल 2021 के चर्चित 'के.ए. नजीब केस' का हवाला भी दिया. इस फैसले में कहा गया था कि अगर किसी मामले का ट्रायल लंबे समय तक पूरा नहीं हो पा रहा है, तो आरोपी को जमानत देना उसके राइट टू लाइफ (जीवन के अधिकार) और स्पीडी ट्रायल (त्वरित सुनवाई) के अधिकार का हिस्सा है.
कफील अहमद अयूब की ओर से वकील मुबीन सोलकर ने अदालत में दलील दी कि किसी भी आरोपी को अनिश्चितकाल तक जेल में रखना संविधान के खिलाफ है. उन्होंने कहा कि अयूब का ट्रायल सालों से लंबित है और वह इतने लंबे समय से हिरासत में हैं, जो उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है.
13 जुलाई 2011 की शाम मुंबई में तीन स्थानों पर, जवेरी बाजार, ओपेरा हाउस और दादर कबूतरखाना, में बम धमाके हुए थे. कुछ ही मिनटों के अंतराल पर हुए इन धमाकों में 21 लोगों की मौत हुई थी, जबकि 113 से ज्यादा लोग घायल हो गए थे. भीड़भाड़ के समय हुए इन विस्फोटों ने पूरे शहर को दहला दिया था. उस समय के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने इसे आतंकी साजिश बताया था.
इसके बाद मुंबई एटीएस ने जांच शुरू की और फरवरी 2012 में दिल्ली पुलिस ने बिहार निवासी कफील अहमद अयूब को गिरफ्तार किया था. तब से वह मुंबई की आर्थर रोड जेल में बंद हैं. अभियोजन पक्ष का आरोप था कि अयूब ने कुछ नौजवानों को 'जिहाद' के लिए भड़काया और मुख्य आरोपी यासीन को मदद पहुंचाई.
वहीं, अयूब ने इन आरोपों से इनकार किया और कहा कि केस में लगाए गए आरोप अस्पष्ट हैं. उन्होंने अदालत से कहा कि आरोपों में कहीं भी यह नहीं कहा गया है कि उन्हें धमाकों की साजिश की जानकारी थी. अपनी जमानत अर्जी में अयूब ने कहा कि वह भारत के नागरिक हैं, उनका फरार होने का कोई इरादा नहीं है और इतने सालों से जेल में बंद रहने के बाद उन्हें जमानत से वंचित रखना लोकतंत्र और कानून के शासन के खिलाफ है. सभी पहलुओं पर विचार करने के बाद बॉम्बे हाईकोर्ट ने अयूब को जमानत देने का आदेश जारी किया है.
यह भी पढ़ें: दूसरी शादी तभी जब पहली बीवी हो राज़ी; केरल हाईकोर्ट का मुस्लिम पुरुष को ज़ोरदार झटका!