NCPUL Book on Savarkar: सावरकर पर उर्दू किताब पब्लिश करने के बाद NCPUL पर सवाल खड़े होने लगे हैं. आरोप लग रहे हैं कि संगठन उर्दू के जरिए सावरकर का प्रमोशन कर रहा है.
Trending Photos
)
NCPUL Book on Savarkar: द नेशनल काउंसिल फॉर दी प्रोमोशन ऑफ उर्दू लैंग्वेज (NCPUL) एक बड़े विवाद में घिरता नजर आ रहा है. दरअसल NCPUL पर आरोप लग रेह हैं कि वह अपने उर्दू पब्लिकेशन के जरिए हिंदुत्व विचारक सावरकर का प्रचार कर रही है. सोशल मीडिया पर इस किताब की काफी आलोचना हो रही है. लोगों का कहना है कि NCPUL, जिसका मुख्य उद्देश्य उर्दू भाषा और संस्कृति को बढ़ावा देना है, वह एक ऐसे हिंदुत्ववादी विचारक को प्रमोट कर रही है, जिनके विचारों को उर्दू समुदाय का एक बड़ा हिस्सा स्वीकार नहीं करता है.
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के इतिहास विभाग के प्रोफेसर और *इंडियन हिस्ट्री कांग्रेस* के सचिव नदीम रज़ावी ने परिषद के इस निर्णय पर हैरानी जताई है. रज़ावी ने कहा, "मुस्लिम लीग के दो-राष्ट्र सिद्धांत अपनाने से पहले सावरकर ही थे जिन्होंने इसे स्वीकार किया था. 1937 में हिंदू महासभा को दिए अपने भाषण में सावरकर ने कहा था कि इस देश में दो देश हैं- हिंदू और मुसलमान."
उन्होंने आगे कहा कि सावरकर के विचार देश में हिंदू प्रभुत्व और मुसलमानों को अधीन करने की सोच को बढ़ावा देते थे. कार्यक्रम के बाद सामाजिक कार्यकर्ताओं, राजनीतिक विश्लेषकों और इतिहासकारों ने इस आयोजन पर कड़ी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने किताब में किए गए दावों की सत्यता पर सवाल उठाए और परिषद द्वारा ऐसी विचारधारा को बढ़ावा देने की कड़ी निंदा की.
इस संस्था के जरिए एक किताब जो विनायक दामोदर सावरकर पर आधारित है उसका ट्रंसलेशन पब्लिश किया है. इस किताब का नाम 'वीर सावरकर तक्सीम-ए-हिंद का अलमिया' है. यह किताब मूल रूप से अंग्रेजी में उदय माहुरकर और चिरायु पंडित ने लिखी थी. जिसका टाइटल, 'The Man Who Could Have Prevented Partition'. था. अब इस किताब को जामिया मिलिया इस्लामिया के कुलपति प्रोफेसर मज़हर आसिफ ट्रांसलेट किया है.
इस किताब का विमोचन गुरुवार को प्रधानमंत्री संग्रहालय में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान किया गया था. कार्यक्रम में कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए. उन्होंने सावरकर को एक 'दूरदर्शी नेता' बताते हुए कहा कि वे राष्ट्र की एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध थे.
मेघवाल ने कहा, “अगर सावरकर की सोच को उस समय लागू किया गया होता, तो भारत का विभाजन रोका जा सकता था. उनके दूरदर्शी विचारों को अमल में लाना चाहिए था. किताब के लेखक उदय माहुरकर और चिरायु पंडित ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि इस किताब का उद्देश्य तथ्यों और निष्पक्ष जानकारी को सामने लाना है.