Bihar Election 2025: बिहार चुनाव से पहले राजनीतिक सरगर्मी तेज़ हो गई है. सभी राजनीतिक दलों ने अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है. इस कड़ी में जदयू ने भी पहली लिस्ट जारी कर दी है. इस लिस्ट में नीतीश कुमार ने तीन मुस्लिम उम्मीदवारों के टिकट काट दिए हैं. इससे माना जा रहा है कि उनका मुसलमानों से मोहभंग हो गया है. आइए जानते हैं.
Trending Photos
)
Nitish Kumar Muslim Ticket Cut: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए मतदान का दिन जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, राज्य का सियासी तापमान बढ़ता जा रहा है. एक के बाद एक सभी सियासी दल अपने उम्मीदवारों की लिस्ट जारी कर रहे हैं. इसी कड़ी में नीतीश कुमार की पार्टी JDU ने भी 57 उम्मीदवारों की लिस्ट जारी कर दी है. सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इस लिस्ट में एक भी मुस्लिम को टिकट नहीं दिया गया है. इस लिस्ट में उन विधानसभा सीटों के उम्मीदवार शामिल हैं, जहां जेडीयू ने 2020 में तीन मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था. ऐसे में आइए जानते हैं कि जदयू के मुखिया और बिहार के सीएम नीतीश कुमार का मुसमलानों से क्यों मोहभंग होते जा रहा है?
दरअसल, 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में जेडीयू ने दरभंगा से फराज फातमी यानी UPA सरकार में मिनिस्टर अली अशरफ फातिमी के बेटे को अपना उम्मीदवार बनाया था. इसके अलावा डुमरांव से अंजुम आरा को मैदान में उतारा गया था, जबकि कांटी से मोहम्मद जमाल को टिकट दिया गया था. हालांकि, तीनों ही उम्मीदवार 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव हार गए थे. उनकी जगह जदयू ने इस बार तीन नए चेहरों को मौका दिया है. दरभंगा ग्रामीण विधानसभा सीट से ईश्वर मंडल को उम्मीदवार बनाया गया है. डुमरांव विधानसभा सीट से राहुल सिंह को मैदान में उतारा गया है, जबकि कांटी से जेडीयू ने अजीत कुमार को अपना उम्मीदवार बनाया है.
लव-कुश समीकरण के साथ आगे बढ़ रहे हैं नीतीश
वहीं, नीतीश कुमार ने इस चुनाव में कोइरी और कुर्मी समाज को भर-भर के टिकट दिया है. इस लिस्ट में सिर्फ इन दो जातियों को 21 से ज्यादा लोगों को टिकट दिया है. यानी नीतीश कुमार ने साफ कर दिया है कि वह लव-कुश समीकरण पर यह चुनाव लड़ना चाहते हैं. साल 2005 के चुनाव के तर्ज पर नीतीश एक बार फिर वापसी करना चाहते हैं. वहीं, नीतीश कुमार ने पहले लिस्ट में एक भी मुसमलान को टिकट न देकर साफ संदेश दिया है कि वह अब मुसलमानों के भरोसे नहीं रहेंगे और अपने पूराने समीकरण के साथ आगे बढ़ना चाहते हैं.
मुसलमानों से नीतीश का क्यों हो रहा है मोहभंग?
बिहार की राजनीति पर पकड़ रखने वाले स्थानीय पत्रकार शम्स अजीज का मानना है कि नीतीश कुमार ने 2014 में बीजेपी से अपना गठबंधन तब तोड़ा था जब गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को एनडीए का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया गया था. यह गठबंधन इसलिए टूटा था क्योंकि 2009 के लोकसभा चुनाव और 2010 के विधानसभा चुनाव में बड़ी संख्या में मुसलमानों ने नीतीश को वोट दिया था. 2014 के चुनाव में नीतीश कुमार ने मुसलमानों के भरोसे बीजेपी से अपना गठबंधन तोड़ दिया और लव-कुश और मुस्लिम वोटों के सहारे चुनावी मैदान में कूद पड़े. हालांकि, 2014 के लोकसभा चुनाव में मुसलमानों ने नीतीश को निराश किया और उन्होंने महागठबंधन का साथ दिया.
नीतीश का कम होता जा रहा है जानाधार
उन्होंने आगे कहा कि नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू लोकसभा चुनाव में सिर्फ दो सांसदों को ही जीत मिली. नतीजतन, बिहार में नीतीश कुमार का जनाधार कम होने लगा. 2015 के विधानसभा चुनाव में 120 सीटों वाली उनकी पार्टी सिर्फ़ 71 सीटों पर सिमट गई थी. हालांकि, यह चुनाव नीतीश कुमार की पार्टी जदयू ने राजद और कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ी थी. वहीं, 2020 का विधानसभा चुनाव नीतीश कुमार ने एनडीए के साथ मिलकर लड़ा, लेकिन मुसलमानों ने एनडीए गठबंधन के खिलाफ भारी मतदान किया और नीतीश सिर्फ़ 43 सीटों पर सिमट गए. हालात इतने ख़राब हो गए कि नीतीश की पार्टी का एक भी मुस्लिम नेता विधायक नहीं बन सका.
नीतीश का छलका दर्द
शम्स अजीज ने कहा कि इस चुनाव के बाद नीतीश कुमार का दर्द साफ़ झलक रहा था और उन्होंने कई मौकों पर साफ़ तौर पर कहा कि उन्होंने मुस्लिम समुदाय के लिए काफ़ी काम किया है, लेकिन उनकी पार्टी के टिकट पर एक भी मुस्लिम उम्मीदवार सदन नहीं पहुंच पाया. इसलिए नीतीश कुमार अब मुसलमानों से दूरी बनाते ही चले जा रहे है. हालांकि, जदयू अभी और सीटों पर उमीदवारों का ऐलान करेगी.. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि बाकी बचे सीटों पर नितीश कुमार किसी मुस्लिम उमीदवार को उतारते हैं या फिर इनसे साफ़ तौर पर दूरी बनाकर भाजपा की राह पर चलेंगे?
इसे भी पढ़ें: BJP के बाद JDU ने भी मुस्लिम उमीदवारों से बनाई दूरी; क्या आर-पार खेलने के मूड में हैं नितीश!
मुस्लिम माइनॉरिटी की ऐसी ही खबरों के लिए विजिट करें https://zeenews.india.com/hindi/zeesalaam