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मदरसे से मस्जिद तक लूंगी का चलन क्यों है बरकरार? जानिए इस्लामिक कनेक्शन

भारत समेत दक्षिण एशिया के कई हिस्सों में लुंगी को पारंपरिक और आरामदायक परिधान के तौर पर पहना जाता है. खासकर मुस्लिम समुदाय में लुंगी का चलन न सिर्फ सांस्कृतिक विरासत से जुड़ा है, बल्कि धार्मिक सोच और सादगी की मिसाल भी है.

इस्लामी सादगी की मिसाल

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इस्लामी सादगी की मिसाल

इस्लाम में सादगी और शालीनता को अहम माना जाता है. लुंगी एक सादा और ढीला कपड़ा है, जिसे शरीर को ढकने के मामले में शरिया के नियमों के करीब माना जाता है.

नमाज के दौरान लुंगी का इस्तेमाल

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नमाज के दौरान लुंगी का इस्तेमाल

कई मुस्लिम मर्द खासकर नमाज के दौरान लुंगी पहनना पसंद करते हैं क्योंकि यह कपड़ा हल्का होता है, साफ रखने में आसान होता है और इबादत के दौरान आराम देता है.

सुन्नत से प्रेरणा

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सुन्नत से प्रेरणा

इस्लामी इतिहास में कई हदीसों में इस बात का जिक्र है कि पैगंबर मुहम्मद (SAW) ने सादा और ढीला कपड़ा पहना था. इससे प्रेरित होकर कुछ मुसलमान लुंगी या इसी तरह के कपड़े पहनते हैं.

मदरसों में आम पोशाक

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मदरसों में आम पोशाक

देश के कई मदरसों और मस्जिदों में मौलवी, हाफिज और छात्र लुंगी पहने नजर आते हैं, खासकर दक्षिण और पूर्वी भारत में। यह धार्मिक माहौल से मेल खाता है.

सांस्कृतिक विरासत से जुड़ाव

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सांस्कृतिक विरासत से जुड़ाव

तमिलनाडु, केरल, बंगाल और ओडिशा के मुस्लिम समुदायों में लुंगी पहनना न केवल एक जरूरत बन गया है, बल्कि पहचान और विरासत का प्रतीक भी बन गया है.

सफेद लुंगी का धार्मिक महत्व

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सफेद लुंगी का धार्मिक महत्व

मुस्लिम समुदाय में सफेद रंग को पवित्रता का प्रतीक माना जाता है. इसलिए त्योहारों, शुक्रवार की नमाज या ईद पर सफेद लुंगी पहनना सम्मानजनक माना जाता है.

हज और उमराह के दौरान लपेटने वाला वस्त्र

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हज और उमराह के दौरान लपेटने वाला वस्त्र

हज और उमराह के दौरान पुरुषों को "एहराम" पहनना होता है, जो दो सफेद बिना सिले कपड़ों से बना होता है. एक कमर के नीचे और दूसरा कंधे पर. यह परंपरा भी लुंगी जैसी ही है.

आर्थिक और सामाजिक रूप से सरल

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आर्थिक और सामाजिक रूप से सरल

मुस्लिम समुदाय के कई वर्गों में लुंगी एक सस्ता, टिकाऊ और बहुउद्देश्यीय परिधान है. इसमें कोई दिखावा नहीं होता, जो इस्लामी सोच से मेल खाता है.

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