SC on Muslims Name Remove in SIR: बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के बाद वोटर लिस्ट पर सुप्रीम कोर्ट में जबरदस्त बहस हुई. याचिकाकर्ताओं ने मुस्लिम नाम हटाने का दावा किया, जबकि चुनाव आयोग ने इसे गलत ठहराया और डेटा उपलब्ध कराने की चुनौती दी. अदालत ने दोनों पक्षों से स्पष्टीकरण मांगा है.
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SIR Controversy in Bihar: बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के बाद चुनाव आयोग ने वोटर लिस्ट जारी कर दी है. नई वोटर लिस्ट जारी होने के बाद विपक्षी दलों ने गड़बड़ी के आरोप लगाए हैं. आरोप है कि कई इलाकों से मुसलमानों के नाम वोटर लिस्ट से हटा दिया गया है. इस संबंध में एक याचिका भी सु्प्रीम कोर्ट में दायर की गई है. इन अटकलों और दावों पर चुनाव आयोग (ECI) की भी प्रतिक्रिया सामने आई है.
सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ताओं ने दावा किया है कि SIR में बहुत सारे मुसलमानों के नाम वोटर लिस्ट से हटा दिए गए हैं. इस पर चुनाव आयोग ने जवाब दिया कि "वे कह रहे हैं कि बहुत सारे मुसलमानों नाम हटाए गए हैं, लेकिन जब आपके पास डेटा ही नहीं है, तो आपको कैसे पता? आप डेटा तो दीजिए." चुनाव आयोग ने दावा किया कि "जिस औरत का नाम हटाने की बात आप कह रहे हैं, वह तो वोटर लिस्ट में दर्ज है."
न्यूज 18 में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, याचिकाकर्ताओं की ओर से सीनियर वकील डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी, प्रशांत भूषण और वृंदा ग्रोवर समेत कई वकील पेश हुए. वहीं, चुनाव आयोग की ओर से सीनियर एडवोकेट राकेश द्विवेदी ने दलील रखी. चुनाव आयोग ने आरोपों के बचाव में कहा कि एडीआर समेत अन्य याचिकाकर्ताओं की ओर से हलफनामे में किए गए वोट काटे जाने के आरोप पूरी तरह गलत हैं और गलत कहानी गढ़ी जा रही है. जिस औरत का नाम काटने का दावा किया गया, उसका नाम मसौदा सूची और अंतिम सूची में भी दर्ज है.
ECI के वकील ने कहा कि एक शख्स के जरिये दायर हलफनामा जिसमें दावा किया गया कि उसका नाम ड्राफ्ट रोल के बाद हटाया गया, वह गलत है. उस शख्स के जरिये दिया गया बूथ नंबर ही गलत है, जिससे साबित होता है कि उसका दावा झूठा है. उन्होंने बताया कि ड्राफ्ट मतदाता सूची में बड़ी संख्या में लोगों के नाम थे और अचानक उनके नाम गायब हो गए, यह दावा भी झूठा है.
चुनाव आयोग की तरफ से पेश वकील राकेश द्विवेदी ने बताया कि याचिकाकर्ता ने मतदाता गणना फॉर्म जमा नहीं किया था. उन्होंने अपने बूथ नंबर और नाम गलत बताया. संबंधित शख्स ड्राफ्ट सूची में नहीं थे. उन्होंने यह भी बताया कि वह शख्स वोटर लिस्ट के पार्ट 63 में था, न कि पार्ट 52 में.
ECI ने कोर्ट में कहा, "वे कह रहे हैं कि बहुत सारे मुस्लिमों के नाम हटाए गए हैं, लेकिन जब आपके पास डेटा ही नहीं है, तो आपको कैसे पता?" उन्होंने कोर्ट से अपील की कि "अदालत आदेश दे कि जिन लोगों को अपना नाम जोड़वाना है, वह अगले 5 दिनों में आवेदन करें, क्योंकि उसके बाद दरवाजे बंद हो जाएंगे. यह हलफनामा 6 तारीख का है. अगर इसे शामिल करवाना था, तो आवेदन करना चाहिए था."
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "पहले सही जानकारी दी जानी चाहिए, गलत जानकारी हमें भी स्वीकार्य नहीं है." कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा कि "हव इस दस्तावेज की प्रामाणिकता अभी कैसे जानें? जबकि वह जांच एजेंसी नहीं हैं. वे दिखा रहे हैं कि तथ्य गलत हैं." कोर्ट ने अनपी टिप्पणी में कहा, "अगर आप (याचिकाकर्ता) अदालत के सामने यह कहते कि आपकी अपील पर अब तक फैसला नहीं हुआ है, तो हम आपके साथ होते, लेकिन मामला ऐसा नहीं है."
याचिकाकर्ताओं के वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि चुनाव आयोग के जरिये अपनाए गए दिशानिर्देशों में पारदर्शिता नहीं है. उन्होंने तर्क दिया कि "उनके पास सब कुछ कंप्यूटराइज्ड रूप में है, लेकिन अभी भी कोई डेटा नहीं है कि ड्राफ्ट सूची से किसे बाहर रखा गया. इसलिए हम सैकड़ों घंटे जांच में लगा रहे हैं."
वकील वृंदा ग्रोवर ने कहा कि धारा 23(3) के मुताबिक, 17 अक्टूबर को रोल फ्रीज हो जाएगा, तो हमें क्यों बताना चाहिए कि कब तक अपील दायर कर सकते हैं. जस्टिस बागची ने कहा कि अपील सिर्फ तब की जा सकती है जब नाम हटाने का आधार हो और पहला आधार प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन हो.
प्रशांत भूषण ने कहा कि चुनाव आयोग पहले 6 फॉर्मेट में अंतिम मतदाता सूची देता था. तकनीक बढ़ी है और चुनाव आयोग की इसे इस्तेमाल करने की क्षमता भी बढ़ी है. उन्होंने कहा कि अब SIR के बाद जब 3.66 लाख लोग बाहर हैं, तो लिस्ट से बाहर किए गए लोगों की सूची भी नहीं दी जा रही है.
भूषण ने मशीन रिडेबल फॉर्म में वोटर लिस्ट देने की मांग की और पूछा कि इसमें गोपनीयता वाली क्या बात है? सभी एक साफ-सुथरी वोटर लिस्ट चाहते हैं, ऐसे में लिस्ट विश्लेषण योग्य होनी चाहि. चुनाव आयोग ने जोर दिया कि भूषण पहले हलफनामा दाखिल करें. उन्होंने बताया कि पहले चुनाव आयोग छह प्रारूपों में अंतिम मतदाता सूची देता था, अब तकनीक बढ़ गई है, लेकिन 3.66 लाख लोगों को बाहर किया गया और उनकी सूची नहीं दी गई.
सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि बिहार के अनुभव से चुनाव आयोग को अन्य राज्यों में चुनाव कराने में मदद मिल सकती है. कोर्ट ने कहा, "हो सकता है कि बिहार का अनुभव चुनाव आयोग को भी समझदार बनाए. अगली बार हमें यकीन है कि आप सुधार लाएंगे."
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