Madarsa, Masjid and Majar Demolition in Uttra Pradesh: उत्तर प्रदेश में कथित अवैध मदरसों, मस्जिदों और मजारों के खिलाफ चलाये जा रहे अभियान की कार्रवाई अब पिछले 10 दिनों से नेपाल और भारत से लगने वाले पीलीभीत, लखीमपुर खीरी, बहराइच, बलरामपुर, सिद्धार्थनगर, महाराजगंज और श्रावस्ती जिलों के मदरसे पर आकर टिक गई है. मदरसों और मजारों को लेकर क्या है सरकार का स्टैंड और मुस्लिम पक्ष का रुख. पढ़ें पूरी रिपोर्ट.
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नई दिल्ली: साल 2008 में आई आमिर खान की 'गजनी' फिल्म आपको याद होगी, जिसमें एक अमीर कारोबारी का रोल अदा करने वाला आमिर खान (संजय सिंघानिया) अपनी प्रेमिका के कातिलों का रिकॉर्ड निकालकर चुन-चुनकर बदला लेता है, और फिर उसे लिस्ट से क्रॉस कर देता है. उत्तर प्रदेश सरकार कथित अवैध मदरसों - मस्जिदों और मजारों के खिलाफ आजकल ऐसे ही कार्रवाई करती हुई दिखाई दे रही है. सरकार अब नेपाल से जुड़े सीमावर्ती जिलों के मदरसों और मस्जिदों के खिलाफ जंगी सतह पर कार्रवाई कर रही है, जिससे मुस्लिम समाज में बेहद निराशा और नाराजगी है. वो इसे मुसलमानों के संवैधानिक अधिकारों में हस्तक्षेप मान रहे हैं, जबकि सरकार इसे एक सुधारात्मक कदम बता रही है.
सरकार ने पिछले कई महीनों से कथित अवैध मस्जिद, मजारों और मदरसों के खिलाफ विशेष अभियान चला रखा है, जिसके तहत सरकारी अमला अवैध मस्जिदों, मजारों और मदरसों पर या तो बुलडोज़र चलाकर उसे नेस्त-ओ- नाबूद कर दे रहा है, या उसमें ताला जड़ दे रहा है. प्रदेशभर में अबतक 500 से ज्यादा मजार, मस्जिद और मदरसे या तो पूरी तरह ढहा दिए गए या उनका कुछ आंशिक हिस्सा तोड़ दिया गया.
इनमें कुछ मस्जिदें और मजारें राष्ट्रीय मार्गों के बीच में आने की वजह से तोड़े गए हैं, जो एक वाजिब कारण है. वहीँ, सैकड़ों की तादाद में वैसे मजारों को भी तोड़ दिया गया, जो किसी विकास के काम में बाधा या रुकावट पैदा नहीं कर रहे थे. यहाँ भी सरकार का आरोप है कि तोड़े गए सभी मजार सरकारी ज़मीन को कब्ज़ा कर गैर- कानूनी तौर पर बनाए गए थी. भाजपा शासित राज्य सरकारों और भाजपा से जुड़े संगठनों ने इसे 'लैंड जिहाद' के नाम से प्रचारित किया है.
जानकारों की माने तो सरकार के इन इल्जामों में दम भी है. उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि देशभर में लाखों की तादाद में ऐसे मजार हैं, जो एक अवैध निर्माण के अलावा कुछ नहीं है. सरकारी ज़मीन कब्ज़ा कर मजार जैसा ढांचा खड़ा कर दिया गया है, फिर वहां पर दो- चार कामचोर और निठल्ले लोग मजाबिर(सेवादार) बनकर मुफ्त के चढ़ावे पर ज़िन्दगी गुजारते हैं. झाड़फूंक के नाम पर ठगी करते हैं. नशा करते हैं.
लखनऊ के एक मुस्लिम पत्रकार और एक्टिविस्ट शाहिद सिद्दीकी कहते हैं, " मजारों को लेकर ये बात किसी से छिपी नहीं है कि देश में 90 फीसदी मजारों का कोई ज्ञात इतिहास नहीं है. कोई रिकॉर्ड नहीं है कि ये किस बड़ी शख्सियत की मजार है. जिसे जहाँ मर्ज़ी हुआ एक मजार खड़ी कर दी, और उसमे चार लोग चंदा उगाही के लिए बैठ गए. ये अवैध मजार बुराई के अड्डे में तब्दील हो गए हैं. लूट-मार, नशाखोरी, ठगी और अंधविश्वास यहाँ आम है. इनकी शिनाख्त कर इनके खिलाफ कार्रवाई करना ज़रूरी है, जो काम मुस्लिम समाज और तंजीमों को करना, था उसे सरकार को करना पड़ रहा है."
मजारों पर कार्रवाई के खिलाफ मुस्लिम समाज बंटा हुआ दिखाई दे रहा है. देवबंदी और अहले हदीस जहाँ सरकार के इस कार्रवाई को मौन सहमति दे रहा है, वहीँ बरेलवी मसलक के लोग मजारों के सरकारी तोड़फोड़ से बेहद नाराज़ है. हालांकि, इस बात पर सभी की सहमति है कि सरकार की ये कार्रवाई मुसलमानों के धार्मिक मामले में अनावश्यक और अनुचित हस्तक्षेप है.
मदरसों की बात करें तो उत्तर प्रदेश में लगभग 23 हज़ार मदरसे हैं, जिनमें 11 हज़ार मदरसे रजिस्टर्ड हैं, जिनकी जानकारी राज्य मदरसा बोर्ड के पास है, और वो मदरसा बोर्ड के नियमों का पालन करते हैं. इसे मान्यताप्राप्त मदरसों की सूची में रख सकते हैं. प्रदेश में लगभग 12 हज़ार मदरसे ऐसे भी हैं, जो पंजीकृत यानी मान्यताप्राप्त तो नहीं है, लेकिन सरकार के पास इनके रिकॉर्ड हैं. हालांकि सरकार मानती है कि इनमे 5 हज़ार ऐसे मदरसे भी हो सकते हैं, जिन्हें अस्थाई मान्यता दी गई है. जबकि ऐसा अनुमान है कि इससे भी बड़ी तादाद में ऐसे मदरसे भी हैं, जिनका कोई रिकॉर्ड सरकार के पास नहीं है. जो रजिस्टर्ड मदरसे हैं, उनमे 560 मदरसे सरकारी मदरसे हैं, जो सरकार से मिले अनुदान पर चलते हैं.
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सरकार के निशाने पर हैं, नेपाल- भारत के सीमावर्ती जिलों के मदरसे
जिन मदरसों को सरकार अनुदान नहीं देती है, इसके बाद भी वो मदरसे चल रहे हैं, यही सरकार की चिंता का विषय है. शायद चिंता इसलिए भी है कि इन मदरसों के संचालक अपने आय के स्रोत का कोई रिकॉर्ड नहीं रखते हैं या सरकार को दिखाने में विफल रहे हैं.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा गठित विशेष जांच दल (SIT) ने पिछले साल राज्य में करीब 13,000 अनधिकृत मदरसों का पता लगाया था. विशेष जांच दल ने राज्य के लगभग 23 हजार मदरसों का सर्वे करने के बाद ये रिपोर्ट दिया था.. एसआईटी ने इन अनधिकृत मदरसों को बंद करने की सिफारिश की थी. इनमें ज़्यादातर अवैध मदरसे नेपाल सीमा पर बताये गए हैं. SIT के दावों के मुताबिक इन मदरसों की तामीर के लिए पिछले दो दशकों में खाड़ी देशों से मिलने वाले चंदे का इस्तेमाल किया गया है. एसआईटी की रिपोर्ट की माने तो ऐसे ज़्यादातर मदरसे उत्तर प्रदेश के महाराजगंज, श्रावस्ती और बहराइच सहित नेपाल की सीमा से लगे सात जिलों में हैं. इन सभी सीमावर्ती जिले के मदरसे अंतरराष्ट्रीय सीमा से नजदीकी की वजह से सरकार के लिए चिंता पैदा कर रहे हैं. एसआईटी ने दावा किया था कि सीमावर्ती क्षेत्रों में लगभग 80 मदरसों को विदेशी स्रोतों से लगभग 100 करोड़ रुपये का फंड हासिल हुआ है.
यही वजह है कि पिछले १० दिनों से पीलीभीत, लखीमपुर खीरी, बहराइच, बलरामपुर, सिद्धार्थनगर, महाराजगंज और श्रावस्ती के मदरसे सरकार के निशाने पर हैं. सिर्फ बहराइच में भारत- नेपाल बार्डर पर चिन्हित 384 अतिक्रमण में से 127 पर बुलडोज़र चलवाकर अप्रैल 2025 में मुक्त करा लिया गया. इनमे कई मदरसे और उससे लगी हुई मस्जिदें भी थी. बहराइच में दारूल उलूम अजीजिया हदीकतुल नोमान को सील कर दिया गया. यह काफी पुराना मदरसा था. इससे पहले 28 अप्रैल को चार और मदरसों पर इसी तरह की कार्रवाई हुई थी. यही काम नेपाल सीमा से सटे हुए दूसरे जिलों में भी चल रहा है. कई मदरसों को सील कर दिया गया है.
बलरामपुर जिला अल्पसंख्यक कल्याण विभाग की जांच में 20 मदरसे मानक विहीन पाए गए. किसी के पास मान्यता के अभिलेख नहीं थे, तो किसी में निर्धारित पाठ्यक्रम तक नहीं चल रहा था. इन सभी को बंद कर दिया गया है.
बेहद दयनीय स्थिति में संचालित होते हैं कुछ मदरसे
प्रदेश में संचालित कुछ मदरसे ऐसे हैं, जो दयनीय स्थिति में हैं. यहाँ कमरा ठीक नहीं है. वहां रोशनी का प्रबंध नहीं है. पानी और शौचालय तक नहीं है. सोने जी जगह नहीं है. पढ़ाने के लिए योग्य शिक्षक तक नहीं है, लेकिन संचालकों ने बाहर से बच्चे बुलाकर मदरसों में रख लिया है. कुछ लड़कियों के भी ऐसे मदरसे पाए गए हैं, जहाँ उनकी सिक्यूरिटी का कोई इंतज़ाम नहीं है. आखिर यहाँ कोई घटना- दुर्घटना हो जाती है, तो उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा. मदरसा संचालक मदरसा बंद कर भाग जाएगा. सरकार की चिंता इसे लेकर भी रहती है. प्रदेश के कुछ ऐसे मदरसे भी पाए गए हैं, जहाँ शिक्षा का स्तर बेहद घटिया या स्तरहीन पाया गया है. १०वीं में पढने वाले छात्र अंग्रेजी में अपना नाम तक नहीं लिखा पाए थे.
बहराइच के जिला अल्प संख्यक कल्याण अधिकारी, संजय मिश्रा कहते हैं, "इन मदरसों में पठन-पाठन का कोई माहौल नहीं है. तंग कमरे हैं. वहां कोई समुचित व्यवस्था नहीं है. घरों में मदरसे चल रहे हैं. मदरसों में झाड़ फूंक, तंत्र मंत्र करने के प्रमाण मिले हैं."
मदरसों में गैर कानूनी गतिविधियों के आरोप
सीमावर्ती जिलों के मदरसों में सरकार देश विरोधी गतिविधियों के सञ्चालन का भी आरोप लगाती रही है. हालांकि, अभी तक इसके कोई ठोस प्रमाण नहीं मिले है. पिछले साल इलाहाबाद के एक मदरसे में नकली नोट छापने की मशीन और नोट मिले थे. इसे बंद कर दिया गया. आरोपी वहां कमरे में किराएदार के तौर पर रहते थे. पुलिस ने आरोपियों के साथ मदरसा संचालकों को भी गिरफ्तार कर लिए. एक दूसरे मदरसे में भी नकली नोट छापने का मामला सामने आया था, लेकिन इसमें सभी आरोपी उच्च जाति के हिन्दू थे. दो चार मदरसों में गैर-कानूनी गतिविधियां अगर पाई भी गई है, तो इसे सभी मदरसों पर सामान्यीकरण नहीं किया जा सकता है. वैसे कुछ मदरसों के संचालकों पर मदरसों के बच्चों से बाल मजदूरी कराने के आरोप भी लग चुके हैं. ऐसे बच्चों को मुक्त भी कराया जा चुका है.
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आखिर कहाँ से पैसों का बंदोबस्त करते हैं गैर- रजिस्टर्ड और गैर मान्यता प्राप्त मदरसे ?
जो मदरसे सरकार से अनुदान नहीं पाते हैं, वो दान के पैसों से चलते हैं. आर्थिक रूप से सक्षम मुसलमान इन मदरसों को पैसे दान करते हैं. वो ये मानकर चलते हैं कि यहाँ पढने आने वाले बच्चे बेहद गरीब घर के होते हैं, जिनके अभिभावक उन्हें अच्छी शिक्षा या भोजन तक नहीं दे पाते हैं, उन्हें इन मदरसों में डाल देते हैं. ऐसे बच्चे यहाँ मुफ्त में भोजन और आवास के साथ इस्लाम और जीवन की बुनियादी शिक्षा भी हासिल कर लेते हैं. ऐसे बच्चे अगर इन मदरसों में नहीं होंगे तो वो गलत रास्ते पर चल सकते हैं. भीख मांगने, नशा करने या फिर मानव तस्करी के चंगुल में फंस सकते हैं. इस तरह एक आम मुसलमान मदरसों को समाज का सेफ्टी वाल्व भी मानता है.
एक आम मुसलमान दीन यानी इस्लाम के वजूद और फलने फूलने के लिए मदरसों को ज़रूरी भी समझता है. इसलिए वो मदरसों को चंदा देते हैं. हर सक्षम मुसलमान साल में एक बार अपनी बचत में से जकात अदा करता है. जकात की रकम अक्सर रमजान के महीने में निकाली जाती है. अधिकांश मदरसों की कमाई का स्रोत जकात ही होता है. जकात को छोडकर दान के दीगर शक्लों सदका और फ़ितरा में मिले रकम भी मदरसों के आय के स्रोत होते हैं.
मदरसों में विदेशी फंड
सरकार का इल्ज़ाम है कि सीमावर्ती जिलों के मदरसों में विदेशी फंड आते हैं. पाकिस्तान से नेपाल के रास्ते भारत में नेपाल बॉर्डर पर मदरसों में फंडिंग की जा रही है जिससे मदरसों में इलिगल काम किया जा सके. ऐसे मदरसे अपने अपनी आय- व्यय का लेखा- जोखा नहीं रखते हैं. सरकार को नहीं दिखाते हैं. मदरसों का ये रवैया उन्हें संदिग्ध बनाता है.
सीमावर्ती जिले बहराइच के एक मदरसा संचालक मोहम्मद फहीम कहते हैं, "विदेशी फंड के तौर पर कोई गैर-कानूनी या हवाला का कोई पैसा नहीं आता है. गाँव घर के जो लोग विदेशों में रहते हैं, वही लोग अपने मदरसे को चंदा देते हैं. इन्हीं पैसों से कुछ मदरसों की इमारतें सरकारी स्कूलों से भी बड़ी बन गयी है, जो सरकार की आँखों में खटक रही है." हालांकि, कुछ साल पहले तेज तर्रार मदरसा संचालक खाड़ी देशों की सरकारों या निजी दानकर्ता से गरीब देशों को दिए जाने वाले जकात की रकम लेने में कामयाब हो जाते थे, लेकिन ये हर किसी के लिए आसान नहीं है. इसमें बहुत सी कानूनी अर्चने होती है.
फहीम मानते हैं कि जब ऐसे मदरसे न सरकार से मान्यता प्राप्त हैं, न सरकार इन्हें कोई अनुदान देती है. लोग ऐसे मदरसे संविधान में अपने धार्मिक और पसंद के शिक्षण संस्थान खोलने के अधिकारों के तहत चलाते हैं, फिर हम सरकार को हिसाब क्यों दें? अगर सरकार के पास किसी मदरसे में गैर कानूनी फंडिंग के सबूत है, तो उसके खिलाफ कार्रवाई करे उसे जनता के सामने लाये.
मानकों को लकर क्या कहते हैं मदरसा संचालक ?
सरकार ने अबतक जितने मदरसों को सील किया है, उसमें दो कमियां बताई गई कि एक या तो उनका पंजीकरण नहीं है ये वो मानकों के अनुकूल नहीं हैं. इसलिए कार्रवाई की जा रही है. उत्तर प्रदेश मदरसा बोर्ड के सद्र इफ्तिखार अहमद जावेद और मंत्री दानिश आजाद बार बार कहते हैं कि उन मदरसों को डरने की ज़रूरत नहीं है, जो पंजीकृत हैं, और मनको के अनुरूप चलाये जा रहे हैं. लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि मदरसों का पंजीकरण और मानकीकरण ही जब दोषपूर्ण है, तो इसकी आशा क्यों की जा रही है?
आल इंडिया टीचर्स एसोसिएशन मदारिसे अरबिया के नायब सद्र मोहम्मद सगीर कहते हैं, " प्रदेश में मदरसों के लिए मानक तो पहली बार 2016 में तय किये गए, लेकिन मदरसे तो 50 साल पहले से भी चल रहे हैं. तो नए मानक के हिसाब से पुराने मदरसे खुद को कैसे बदलेंगे? इसके लिए उन्हें संसाधनों की ज़रूरत होगी, जो उनके पास है नहीं ? नए मानक नए मदरसों पर लागू होना चाहिए पुराने पर नहीं." वहीँ पंजीकरण के सवाल पर मोहम्मद सगीर कहते हैं, " सरकार के यहाँ हजारों मदरसों का पंजीकरण का आवेदन सालों से पेंडिंग पड़ा है, सरकार इसे अप्रोवल नहीं दे रही है. इसके अलावा अधिकाँश पुराने मदरसे सोसाइटी पंजीकरण एक्ट के तहत पंजीकृत हैं, तो फिर उनका पंजीकरण और उनमे सरकार अपना मानक क्यों ढूंढ रही है, जबकि सोसाइटी पंजीकरण के तहत शिक्षण संस्थान चलाना गैर कानूनी नहीं है."
न मदरसों के सवाल से बचा जा सकता है, न सरकार की चिंताओं को ख़ारिज की जा सकती है.
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