आखिर क्या है 'वक्फ-बाय-यूजर', जिस पर सरकार की मंशा से डरा है देश का मुसलमान?
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आखिर क्या है 'वक्फ-बाय-यूजर', जिस पर सरकार की मंशा से डरा है देश का मुसलमान?

Waqf By User: संशोधित वक्फ कानून को लेकर मुस्लिम पक्ष की सबसे बड़ी चिंता और आशंका इस कानून में मौजूद 'वक्फ-बाय-यूजर' क्लॉज से है. इसको लेकर कोर्ट ने सुनवाई के दौरान चिंता भी जाहिर की और अगले आदेश तक इसे डिनोटिफाई न करने को कहा है. ऐसे में लोगों के मन सवाल उठ रहा है कि आखिर क्या है 'वक्फ-बाय-यूजर', जिसको लेकर समाज का एक बड़ा वर्ग चिंतित है? 

 

फाइल फोटो
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Supreme Court on Waqf By User​: वक्फ अमेंडमेंट एक्ट 2025 पर सुप्रीम कोर्ट ने आज गुरुवार (17 अप्रैल) को दूसरे दिन भी सुनवाई की. इस दौरान कोर्ट ने वक्फ बोर्ड और काउंसिल में नियुक्ति पर रोक लगा दी है. इससे पहले बुधवार को हुई सुनवाई के दौरान कोर्ट ने "Waqf By User" को लेकर कई अहम टिप्पणियां की थी. इस दौरान बेंच ने कल वक्फ कानून के कुछ प्रावधानों पर रोक लगाने के संकेत दिए थे, जिनमें Waqf By User का कान्सेप्ट, वक्फ बोर्ड में गैर- मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व और वक्फ की विवादित संपत्ति पर कलेक्टर को दिए गए अधिकार शामिल हैं.

देश की सर्वोच्च न्यायिक संस्था सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई के दौरान केंद्र का पक्ष रखने के लिए पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने आश्वासन दिया कि वक्फ के पुराने नियमों को डीनोटिफाई (रद्द) नहीं किया जाएगा.  सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को आश्वासन दिया कि अगली सुनवाई तक कोई भी वक्फ नियम, जिसमें Waqf By User भी शामिल है और जो पहले से रजिस्टर्ड है या नोटिफिकेशन के जरिये घोषित किया गया है, उसे रद्द नहीं किया जाएगा.

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मुस्लिम पक्ष की पहली जीत?

इससे पहले कल भी चीफ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस पी वी संजय कुमार और जस्टिस के वी विश्वनाथ की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने 'Waqf By User' को लेकर अहम टिप्पणी की थी. चीफ जस्टिस ने कहा था कि "हम आमतौर पर किसी कानून की चुनौती को उसके शुरूआती दौर में स्थगित नहीं करते, जब तक कि कोई असाधारण परिस्थिति न हो. यह मामला एक अपवाद मालूम होता है. हमारी चिंता यह है कि अगर  'Waqf by User' को डिनोटिफाई किया जाता है, तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं.

सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश को मुस्लिम पक्ष अपने लिए जीत की पहली सीढ़ी मान रहा है, जबकि सरकार या भाजपा समर्थक लोग सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश का इस बिना पर आलोचना कर रहे हैं कि कोर्ट किसी संसदीय कानून के आंशिक पक्ष पर रोक कैसे लगा सकता है, जबकि कोर्ट के फैसलों में ऐसा पहले से कोई नजीर नहीं है? 

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क्या है Waqf by User?

संशोधित वक्फ कानून को लेकर मुस्लिम पक्ष की सबसे बड़ी चिंता और आशंका इस कानून में मौजूद 'वक्फ-बाय-यूजर' क्लॉज से है, जिसमें ये प्रावधान किया गया है कि 'वक्फ-बाय-यूजर' जायदाद को जिले का कलेक्टर नए कानून में मिली अपनी असीमित शक्तियों का इस्तेमाल कर सरकार की संपत्ति घोषित कर सकता है. इस तरह वो संपत्ति वक्फ बोर्ड या मुसलमानों के कब्जे से हमेशा के लिए निकल जायेगी. 

सुप्रीम कोर्ट के जरिये बार 'Waqf by User' का जिक्र करना और इसके रद्द करने पर चिंता जाहिर करने का बाद लोगों के मन में इसको जानने के लिए उत्सुकता बढ़ गई है. आइये जानते हैं- क्या है 'Waqf by User'? जिसको डीनोटिफाई करने पर सरकरा को गंभीर परिणाम की सुप्रीम कोर्ट ने चेतावनी दी है. इसके लिए सबसे पहले वक्फ शब्द को समझना जरूरी है.

"वक्फ" (Waqf) अरबी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ होता है "अर्पित करना" या "स्थायी रूप से समर्पित कर देना. इसका इस्तेमाल इस्लाम के कानून के मुताबिक, एक ऐसी संपत्ति के लिए किया जाता है, जिसको धार्मिक या सामाजिक भलाई करने के मकसद से स्थायी रूप से हमेशा के लिए दे दी जाती है और इस संपत्ति को खरीदा या बेचा नहीं जा सकता है.     

इस्लाम में, वक्फ एक ऐसा जरिया है, जिसमें कोई शख्स अपनी चल या अचल संपत्ति को अल्लाह की राह में दान कर देता है ताकि उसका इस्तेमाल मस्जिद, स्कूल, कब्रिस्तान, गरीबों की सेवा या अन्य धार्मिक या सामाजिक परोपकारी या जनकल्याण के कामों के लिए किया जा सके. इस संपत्ति से होने वाली आमदनी भी इन्हीं उद्देश्यों के लिए लगाई जाती है.

अब बात करते हैं 'वक्फ-बाय-यूजर' (Waqf By User) की. भारतीय वक्फ कानून का एक प्रावधान है, Waqf By User. इस कानून के तहत ऐसी जमीन जो लंबे समय से मुस्लिम समाज के धार्मिक या सामाजिक कल्याण के कार्य के लिए इस्तेमाल की जा रही हैं, जिसमें मस्जिद, कब्रिस्तान, मदरसा या दरगाह वगैरा शामिल है, को वक्फ संपत्ति माना जाएगा. कानूनी रुप से वह संपत्ति वक्फ बोर्ड में पंजीकृत हो या न हो या फिर संपत्ति के मालिक ने लिखित में या औपचारिक रुप से इसके वक्फ का ऐलान न किया हो.

कोर्ट ने जताई चिंता

दरअसल, भारत में संपत्तियों की मौजूदा पंजीकरण व्यवस्था और कोर्ट कचहरी की व्यवस्था ब्रिटिश हुकूमत ने सन 1839 से शुरू की थी. इसे बंगाल रेगुलेशन 1839 के तहत लागू किया गया, जिसे धीरे-धीरे पूरे देश में लागू किया गया. इस कानून का मकसद जमीन और जायदाद के मालिकाना हक को व्यवस्थित करना था. इस कानून के लागू होने के बाद मुसलमानों ने जो संपत्ति वक्फ की है और उसका रजिस्ट्रेशन कराया उसका सरकार के पास रिकॉर्ड है, लेकिन उसके पहले की वक्फ की हुई जमीन या अन्य जायदाद का कोई दस्तावेज नहीं है. मुसलमानों की आशंका है कि सरकार नए कानून के तहत ऐसे जायदाद से मुसलमानों को बेदखल कर उस पर अपना कब्जा करना चाह रही है. 

मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार से ये सवाल पूछा था कि 200-300 साल पुरानी संपत्ति की रजिस्टर्ड "डीड" कहां मिलेगी जबकि यह व्यवस्था ही ब्रिटिश हुकूमत ने शुरू की? कोर्ट ने वक्फ बोर्ड में हिन्दू मेंबर शामिल किये जाने पर सवाल उठाया है और पूछा है कि क्या सरकार मंदिरों के ट्रस्ट में भी कानून बनाकर मुस्लिम मेम्बेर्स को शामिल करने का विचार रखती है?

बेंच ने सरकार से पूछा कि "जहां तक 'वक्फ-बाय-यूजर' का सवाल है, तो इसे पंजीकृत करना बहुत कठिन होगा. इसलिए इसमें अस्पष्टता है. आप यह तर्क दे सकते हैं कि वक्फ-बाय-यूजर का दुरुपयोग भी हो रहा है, इस पर आपकी बात सही हो सकती है. यह बात भी सही हो सकती है कि इसका दुरुपयोग किया जा रहा है, लेकिन साथ ही साथ यह भी सच है कि कुछ वास्तविक वक्फ-बाय-यूजर भी हैं. आप यह नहीं कह सकते कि कोई भी असली वक्फ बाय यूजर नहीं है."

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