Ali Khan Mahmudabad Controversy: हालिया दिनों अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद ने 'ऑपरेशन सिंदूर', कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह को लेकर कथित विवादित बयान दिया था. जिसके बाद उन्हें हरियाणा पुलिस ने दिल्ली से गिरफ्तार कर लिया.
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AU Professor Ali Khan Mahmudabad News: हरियाणा के अशोका यूनिवर्सिटी (AU) के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद कथित विवादित बयानों को लेकर सुर्खियों में हैं. अली खान महमूदाबाद ने 'ऑपरेशन सिंदूर' की प्रेस ब्रीफिंग को लेकर कर्नल सोफिया कुरैशी को भारत की विविधता का प्रतीक बताया था और अल्पसंख्यक समाज की मॉब लिंचिंग और बुलडोजर एक्शन को लेकर सवाल खड़े किए थे. उनके इस बयान के बाद बवाल खड़ा हो गया और बीजेपी नेताओं की शिकायत पर हरियाणा पुलिस ने अली खान को दिल्ली से गिरफ्तार कर लिया.
अली खान महमूदाबाद के खिलाफ बीजेपी के कई नेता विरोध कर रहे हैं, तो इसके उलट बीजेपी के ही कई नेताओं को उनकी गिरफ्तारी पच नहीं रही है. मीडिया में छपी खबरों के मुताबिक, हरियाणा पुलिस ने अली खान महमूदाबाद के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (BNS) के तहत विद्रोह भड़काने, सांप्रदायिक सौहार्द और धार्मिक भावनाओं को आहत करने आरोप लगाए गए हैं. अली खान महमूदाबाद के खिलाफ हरियाणा राज्य महिला आयोग ने भी नोटिस भजेा था.
दूसरी तरफ AU प्रशासन ने एक बयान जारी कर कहा कि उन्हें प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद की गिरफ्तारी की खबर मिली है. यू्निवर्सिटी प्रशासन इस मामले में और अधिक जानकारी इकट्ठा कर रहा है और जरुरत पड़ने पर वह पुलिस और प्रशासन की मदद करने को तैयार है. हालांकि, मामले को तूल पकड़ता देख प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद ने कहा कि उनके बयान को गलत तरीके से पेश किया गया. उन्होंने सोशल मीडिया पर पोस्ट एक संदेश में कहा कि मुझे हैरानी हो रही है कि महिला आयोग ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर मेरे पोस्ट को गलत तरीके से पढ़ा और समझा, जिससे उन्होंने अर्थ ही बदल दिया.
अली खान महमूदाबाद के खिलाफ अब बीजेपी और दक्षिणपंथी संगठनों ने मोर्चा खोल दिया है. अली खान और उनके परिवार के साथ बीजेपी की बीच पुरानी अदावत रही है. दरअसल, अली खान का ताल्लुक एक सियासी और शाही परिवार से है. उनका जन्म दिसंबर 1982 में हुआ था. अली खान महमूदाबाद के वालिद का नाम मोहम्मद आमिर मोहम्मद खान था, जिन्हें महमूदाबाद का राजा साहब कहा जाता था. उनके दादा मोहम्मद आमिर अहमद खान, महमूदाबाद रियासत के आखिरी राजा थे. आजादी से पहले मोहम्मद आमिर अहमद खान का शुमार मुस्लिम लीग के कद्दावर नेताओं में होता था.
मोहम्मद आमिर अहमद खान आजादी से पहले साल 1945 में ईराक चले गए थे. देश विभाजन के बाद 1957 में वह पाकिस्तान चले और फिर लंदन में बस गए. लंदन जाने से पहले उन्होंने विरासत में मिली दौलत को पाकिस्तान को दान कर दी. हालांकि, अली खान महमूदाबाद के वालिद मोहम्मद आमिर मोहम्मद खान ने विशाल पैतृक संपत्ति को हासिल करने के लिए लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद उन्हें अपनी संपत्ति को वापस पाने में कामयाबी भी मिली. साल 2017 में केंद्र की बीजेपी सरकार ने 'एनिमी प्रॉपर्टी एक्ट' में संशोधन कर बेशुमार दौलत से वंचित कर दिया.
ब्लूक्राफ्ट डिजिटल फाउंडेशन के सीईओ अखिलेश मिश्रा ने अली खान महमूदाबाद के पैतृक संपत्ति को लेकर बड़ा दावा किया है. उन्होंने पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली के बयान का हवाला देते हुए कहा कि 'एनिमी प्रॉपर्टी एक्ट' 1968 के जरिये महमूदाबाद के राजा को भारत में उनकी सभी संपत्तियों से वंचित कर दिया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने गलती से यह फैसला दे दिया कि राजा का बेटा (जो भारत में रहता था) संपत्ति का वारिस बन सकता है, जबकि राजा खुद पाकिस्तान के नागरिक बन चुके थे. उन्होंने कहा कि साल 2017 में भाजपा सरकार ने कानून बनाकर इस मामले का स्थायी समाधान किया और महमूदाबाद परिवार को संपत्ति मिलने से रोक दिया.
प्रोफेस अली खान महमूदाबाद के दादा मोहम्मद आमिर अहमद खान के मुस्लिम से जुड़े होने की वजह से लगातार सवाल खड़े होते रहे हैं. मोहम्मद आमिर अहमद खान, पाकिस्तान के बानी मोहम्मद अली जिन्ना एक दूसरे के करीबी माने जाते थे. मोहम्मद आमिर अहमद खान और जिन्ना की दोस्ती की तस्वीरें आज भी पाकिस्तान के लाहौर म्यूजियम में मौजूद हैं. जिन्ना से प्रभावित होकर मोहम्मद आमिर अहमद खान ने मुसलमानों के लिए एक अलग देश बनाने की मांग में शामिल हो गए.
अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद के परिवार का इतिहास भारत के विभाजन और पाकिस्तान आंदोलन से गहराई से जुड़ा रहा है. उनके परदादा राजा मोहम्मद अली मोहम्मद खान शुरू में पाकिस्तान की विचार के विरोधी थे, लेकिन 1940 में मुस्लिम लीग के जरिये लाहौर प्रस्ताव पारित किए जाने के बाद उन्होंने पाकिस्तान के निर्माण का समर्थन शुरू कर दिया. बताया जाता है कि इस परिवर्तन के पीछे मोहम्मद अली जिन्ना का प्रभाव था, जो उनके परिवार के पुराने दोस्त और करीबी भी थे. इसके बाद ऑल इंडिया मुस्लिम स्टूडेंट्स फेडरेशन ने पाकिस्तान आंदोलन के पक्ष में जोरदार प्रचार शुरू किया.
राजा साहब ने अपने नाबालिग बेटे के लिए एक ट्रस्ट बनाया था. इस ट्रस्ट में मोतीलाल नेहरू, मोहम्मद अली जिन्ना, डिप्टी हबीबुल्लाह और चौधरी बम बहादुर शाह जैसे लोग शामिल थे. मोतीलाल नेहरू की मौत राजा साहब से पहले हो गई थी और 1931 में राजा साहब की मौत के बाद जिन्ना इस ट्रस्ट के सबसे प्रभावशाली सदस्य बन गए. जिन्ना ने कहा था कि "भारत में एक अलग मुस्लिम राज्य का विचार मुसलमानों की कल्पना को वैसे ही झकझोर गया जैसे पहले कभी कुछ नहीं किया था."
हरियाणा के शिक्षा मंत्री महिपाल ढांडा ने अशोका यूनिवर्सिटी के सहायक प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद की गिरफ्तारी पर कहा कि उनका परिवार शुरू से विवादास्पद रहा है. पूर्व में परिवार की जिन्ना के करीबी होने पर उन्होंने आरोप लगाया कि प्रोफेसर के दादा बंटवारे के समय मुस्लिम लीग के कैशियर थे और पाकिस्तान चले गए थे.