Russia Supreme Court on Taliban: साल 2021 में तालिबान ने अफगानिस्तान की सत्ता में वापसी की. इसके बाद तालिबान ने अफगानिस्तान में कई महत्वपूर्ण बदलाव किए और दूसरे देशों के साथ अपनी कूटनीति में बदलाव किया. तालिबान के इस बदलाव का असर भी दिख रहा है, जब रुस की कोर्ट ने उन पर लगा सालों से प्रतिबंध हटा दिया.
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Russia News Today: रूस की सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (17 अप्रैल) को अफगानिस्तान के तालिबान पर लगा प्रतिबंध हटा लिया है, जिसे दो दशक से अधिक समय पहले आतंकवादी समूह घोषित किया गया था. यह कदम तालिबान के लिए एक कूटनीतिक जीत के तौर पर देखा जा रहा है, जिसे 2003 में रूस ने आतंकवादी संगठनों की सूची में डाल दिया था.
तालिबान को आतंकवादी संगठनों की सूची में डालने के बाद रूसी कानून के तहत उनसे किसी भी प्रकार का संपर्क दंडनीय था. अभियोजक जनरल के कार्यालय के अनुरोध पर न्यायालय का यह फैसला पिछले साल पारित एक कानून के बाद आया है, जिसके मुताबिक, किसी संगठन को आतंकवादी संगठन के रूप में प्रतिबंधित किए जाने के कदम को न्यायालय जरिये निलंबित किया जा सकता है.
तालिबान ने रुस के कई कार्यक्रमों में लिया भाग
रुस की सुप्रीम कोर्ट ने तालिबान से यह टैग ऐसे समय पर हटाया है, जब उनका प्रति प्रतिनिधिमंडल कई बार रूसी सरकार के जरिये आयोजित कार्यक्रमों और बैठकों में हिस्सा ले चुका है. इन बैठकों और कार्यक्रमों का जरिये रूस खुद को इस क्षेत्र में एक प्रभावशाली ताकत के रूप में स्थापित करना चाहता है.
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला रूस के अभियोजन विभाग की उस अपील पर आया है, जो पिछले साल बने एक कानून के आधार पर की गई थी. इस कानून के तहत अब किसी संगठन को "आतंकवादी संगठन" घोषित करने का दर्जा अदालत के जरिये निलंबित किया जा सकता है. इंटरनेशनल पॉलिटिकल एक्सपर्ट इसे रुस के जरिये अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार को मान्यता दिए जाने के रुप में देख रहे हैं.
कौन है तालिबान?
अफगानिस्तान में तालिबान का प्रभाव एक बार फिर तेज़ी से बढ़ा है. साल 2001 में अमेरिकी नेतृत्व वाली सेना ने तालिबान को सत्ता से बेदखल कर दिया था. लेकिन दो दशकों बाद, यह समूह फिर से मज़बूत होकर लगभग पूरे अफगानिस्तान पर नियंत्रण कर चुका है. अमेरिका ने 11 सितंबर, 2021 तक अपने सभी सैनिकों को वापस बुलाने की योजना बनाई थी. तालिबान और अमेरिका के बीच 2018 में बातचीत शुरू हुई थी, जिसका नतीजा 2020 में दोहा समझौते के रूप में सामने आया.
तालिबान की शुरुआत 1990 के दशक की शुरुआत में हुई थी. 'तालिबान' शब्द पश्तो में छात्रों के लिए प्रयोग होता है. यह आंदोलन धार्मिक मदरसों से शुरू हुआ, जिसमें सुन्नी इस्लाम की कट्टर विचारधारा को अपनाया गया. सऊदी अरब द्वारा इसे आर्थिक समर्थन भी मिला. शुरुआत में इस समूह ने शांति और शरिया क़ानून लागू करने का वादा किया, जिससे लोगों का समर्थन मिला.
1995 में तालिबान ने हेरात प्रांत और 1996 में काबुल पर कब्ज़ा किया. इसके बाद 1998 तक देश का लगभग 90 फीसदी हिस्सा इनके नियंत्रण में आ गया. सोवियत संघ की वापसी और मुजाहिदीन के अत्याचारों से त्रस्त लोग तालिबान को एक विकल्प के रूप में देखने लगे. साल 2003 में रुस की सरकार ने तालिबान पर प्रतिबंध लगा दिया. साल 2021 में अफगानिस्तान में तालिबान सरका की वापसी के बाद रुस ने इन प्रतिबंधों को हटा लिया है. दूसरी तरफ तालिबान भी पश्चिमी देशों से खासकर अमेरिका और उसके सहयोगियों से रिश्ते बेहतर करने में जुटा है.