सरकार ने दो दशकों से अधिक समय और तीन प्रयासों के बाद आखिरकार अपनी प्रमुख राष्ट्रीय विमानन कंपनी एयर इंडिया को बेच दिया.
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नई दिल्लीः एयर इंडिया (Air India) 69 साल बाद एक बार फिर से अपने संस्थापक टाटा समूह (Tata Group) की हो गई है. नमक से लेकर सॉफ्टवेयर तक बनाने वाले समूह ने घाटे में चल रही एयरलाइन का अधिग्रहण कर कई साल से इसकी बिक्री के लिए किए जा रहे असफल प्रयासों पर विराम लगा दिया है. सरकार ने दो दशकों से अधिक समय और तीन प्रयासों के बाद आखिरकार अपनी प्रमुख राष्ट्रीय विमानन कंपनी एयर इंडिया को बेच दिया. एयर इंडिया अब अपने संस्थापक टाटा समूह के पास लौट गयी (Tata Sons Takes Over Air India) है. दूसरी तरह इसे यह भी कहा जा सकता है कि एयर इंडिया आज सरकार के लिए परायी हो गई.
टाटा ने 1932 में एयरलाइन की स्थापना की थी
जहांगीर रतनजी दादाभाई (जेआरडी) टाटा ने 1932 में एयरलाइन की स्थापना की और इसका नाम टाटा एयरलाइंस रखा. 1946 में टाटा संस के विमानन प्रभाग को एयर इंडिया के रूप में सूचीबद्ध किया गया था और 1948 में यूरोप के लिए उड़ान सेवाएं शुरू करने के साथ एयर इंडिया इंटरनेशनल को शुरू किया गया था. यह अंतरराष्ट्रीय सेवा भारत में पहली सार्वजनिक-निजी भागीदारी में से एक थी, जिसमें सरकार की 49 प्रतिशत, टाटा की 25 प्रतिशत और शेष हिस्सेदारी जनता की थी.
1953 में किया गया एयर इंडिया का राष्ट्रीयकरण
1953 में एयर इंडिया का राष्ट्रीयकरण किया गया और अगले चार दशक तक यह भारत के घरेलू विमानन क्षेत्र पर राज करती रही. 1994-95 में निजी कंपनियों के लिए विमानन क्षेत्र के खुलने और निजी कंपनियों द्वारा सस्ते टिकटों की पेशकश करने के साथ एयर इंडिया ने धीरे-धीरे अपनी बाजार हिस्सेदारी खोनी शुरू कर दी.
अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में हुई थी विनेश की कोशिश
अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार ने अपनी व्यापक निजीकरण और विनिवेश को बढ़ावा देने की पहल के तहत 2000-01 में एयर इंडिया में सरकार की 40 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचने की कोशिश की थी. टाटा समूह के साथ सिंगापुर एयरलाइंस ने हिस्सेदारी खरीदने में रुचि दिखाई, लेकिन अंततः सिंगापुर एयरलाइंस को मुख्य रूप से निजीकरण के खिलाफ ट्रेड यूनियनों के विरोध के चलते पीछे हटना पड़ा. फलतः विनिवेश योजना पटरी से उतर गई.
2007-08 में इंडियन एयरलाइंस के साथ किया गया इसका विलय
वर्ष 2004 से 2014 के दौरान कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार ने 10 वर्षों में एयर इंडिया सहित किसी भी निजीकरण के एजेंडा को आगे नहीं बढ़ाया. पिछली संप्रग सरकार ने 2012 में एयर इंडिया को पटरी पर लाने की योजना के साथ-साथ वित्तीय पुनर्गठन योजना (एफआरपी) को मंजूरी दी थी. 2007-08 में इंडियन एयरलाइंस के साथ विलय के बाद से एयर इंडिया को हर साल नुकसान उठाना पड़ा.
मोदी सरकार ने दी इसे बेचने की सैद्धांतिक मंजूरी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली राजग सरकार 2014 में सत्ता में आने के बाद केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों (सीपीएसई) के निजीकरण के प्रयास शुरू किए. जून 2017 में मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति (सीसीईए) ने एयर इंडिया और उसकी पांच अनुषंगी कंपनियों के रणनीतिक विनिवेश के विचार को सैद्धांतिक मंजूरी दे दी. इसके लिए मंत्रियों की एक समिति यानी ‘एयर इंडिया स्पेसिफिक ऑल्टरनेट मैकेनिज्म’ (एआईएसएएम) का गठन किया गया.
जानिए, एयर इंडिया के बेचने का पूरा घटनाक्रम, कब क्या हुआ
मार्च 2018ः सरकार ने एयर इंडिया में 76 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदने के लिए निवेशकों से रुचि पत्र आमंत्रित किये. इसके तहत शेष 26 प्रतिशत हिस्सेदारी सरकार के पास होती. इस सौदे में एयर इंडिया एक्सप्रेस की 100 प्रतिशत और ग्राउंड हैंडलिंग से जुड़ी इकाई एआईएसएटीएस की 50 प्रतिशत हिस्सेदारी भी शामिल थी. बोली लगाने की आखिरी तारीख 14 मई थी.
मई 2018ः एयर इंडिया के लिए कोई बोली प्राप्त नहीं हुई.
जून 2018ः सरकार ने तेल की कीमतों में नरमी आने तक एयर इंडिया की बिक्री की प्रक्रिया को धीमा करने का फैसला किया.
जनवरी 2020ः सरकार ने एयर इंडिया के निजीकरण के लिए रुचि पत्र (ईओआई) जारी किया. सरकार ने कहा कि वह 100 फीसदी हिस्सेदारी बेच कर एयर इंडिया से पूरी तरह बाहर निकलेगी. इस सौदे में एयर इंडिया एक्सप्रेस का 100 प्रतिशत और एआईएसएटीएस का 50 प्रतिशत हिस्सा भी शामिल होगा. बोली लगाने की अंतिम तिथि 14 दिसंबर तक पांच बार बढ़ाई गई. ईओआई के अनुसार, 31 मार्च, 2019 तक एयरलाइन के कुल 60,074 करोड़ रुपये के कर्ज में से, खरीदार को 23,286.5 करोड़ रुपये का भार अपने ऊपर लेना था.
अक्टूबर 2020ः सरकार ने सौदे को आकर्षक बनायाय निवेशकों को एयर इंडिया के कर्ज की राशि के एक हिस्से की अदायगी की शर्त में ढील दी.
दिसंबर 2020ः दीपम सचिव ने कहा कि एयर इंडिया के लिए कई बोलियां आई हैं.
मार्च 2021ः तत्कालीन नागर विमानन मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा कि कोई विकल्प नहीं बचा है, हम या तो निजीकरण करेंगे या हम एयरलाइन को बंद कर देंगे. एयर इंडिया के अभी पैसा कमाने के बावजूद हमें हर दिन 20 करोड़ रुपये का नुकसान होता है.
अप्रैल 2021ः सरकार ने एयर इंडिया के लिए वित्तीय बोलियां आमंत्रित करनी शुरू की. बोली लगाने की अंतिम तिथि 15 सितंबर थी.
सितंबर 2021ः टाटा समूह, स्पाइसजेट के प्रवर्तक अजय सिंह ने वित्तीय बोली लगाईं.
आठ अक्टूबर 2021ः सरकार ने घोषणा की कि टाटा समूह ने एयर इंडिया के लिए 18,000 करोड़ रुपये की सफल बोली लगाई है.
25 अक्टूबर 2021ः सरकार ने एयर इंडिया के हस्तांतरण के लिए टाटा समूह के साथ शेयर खरीद समझौते पर हस्ताक्षर किए.
27 जनवरी 2021ः एयर इंडिया पूरी तरह टाटा समूह की हुई.
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