सबसे बड़ी बात यह है कि जब भी किसी किसी जगह का नाम बदला जाता है तो वहां मौजूद सभी बैंक, रेलवे स्टेशन, ट्रेनों, थानों, बसों, बस अड्डों, स्कूलों-कॉलेजों को अपनी स्टेशनरी व बोर्ड में लिखे पतों पर जिले का नाम बदलना पड़ता है.
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Sarijuddin/नई दिल्ली: पिछले दिनों उत्तर प्रदेश सरकार जगहों के नाम बदलने के लिए सुर्खियों में रही है. इसी रास्ते पर असम की सरकार भी चल पड़ी है. असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा का कहना है कि वह जिलों, कस्बों और गांवों का नाम बदलने के लिए राय शुमारी करेगी. किसी भी जगह का नाम बदलने के लिए एक प्रक्रिया होती है. यह प्रक्रिया कफी लंबी होती है. आइए जानते हैं कि किसी भी शहर या जिले का नाम बदलना कितना मुश्किल है? इसकी क्या प्रक्रिया है? इसमें अवाम को कितनी मुश्किल होती है?
किसी भी शहर या जिले का नाम बदलने के लिए केंद्र सरकार ने एक गाइडलाइन जारी की है. इसके लिए केंद्र सरकार की सहमति जरूरी होती है. होती है.
शहर का नाम बदलने की क्या प्रक्रिया है?
किसी भी जगह का नाम बदलने के लिए सबसे पहले कोई विधायक या एमएलसी सरकार से मांग करता है. इसके बाद सरकार यह जानने की कोशिश करती है कि इलाके के लोग क्या चाहते हैं. इंतेजामिया किसी भी जगह का नाम बदलने के लिए पूरी जानकारी मांगती है. उसका इतिहास भी खंगालती है.
सबसे पहले किसी भी जगह का नाम बदलने के लिए प्रस्ताव कैबिनेट में रखा जाता है. कैबिनेट में प्रस्ताव पास होने के बाद शहर के बदले नाम पर मुहर लग जाती है. इसके बाद नए नाम का गजट कराया जाता है. गजट कराने के बाद सरकारी दस्तावेजों से नए नाम लिखे जाने की शुरूआत होती है. इसके बाद किसी जगह का नया नामकरण हो जाता है.
सबसे बड़ी बात यह है कि जब भी किसी किसी जगह का नाम बदला जाता है तो वहां मौजूद सभी बैंक, रेलवे स्टेशन, ट्रेनों, थानों, बसों, बस अड्डों, स्कूलों-कॉलेजों को अपनी स्टेशनरी व बोर्ड में लिखे पतों पर जिले का नाम बदलना पड़ता है. इन संस्थानों से जुड़ी वेबसाइट के नाम भी बदलने पड़ते हैं. इसके साथ ही आम लोगों को अपने दस्तावेज बदलने पड़ते हैं. इस सब चीजों के नाम बदलने के लिए काफी रक्म की दरकार
नाम बदलने में कितना खर्च आता है.
किसी भी जगह का नाम बदलने में कितना खर्च आएगा इसका सही अंदाजा लगाना मुश्किल है. किसी शहर का नाम बदलने के बाद और किन-किन चीजों का नाम बदला जाएगा इस बारे में कोई डेटा मौजूद नहीं है. लेकिन बताया जाता है कि केंद्र से लेकर प्रदेश के खजाने के साथ-साथ सरकारी व गैर सरकारी क्षेत्र के संस्थानों और आम जनता को भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है. अवाम नए पते के हिसाब से अपने दस्तावेज बदलवाने पड़ते हैं जो काफी जटिल प्रक्रिया है. किसी भी शहर का नाम बदलने में जो पैसा खर्च होता है वह पैसा सरकार लगाती है. यह पैसा सरकार तक जनता के टैक्स के जरिए जाता है. इसके अलावा अवाम को अपने दस्तावेज में जो तबदीली करानी पड़ती है उसमें अच्छा खासा पैसा खर्च होता है.
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