Covid-19:लाखों लोगों की जान बचा चुके डॉक्टर इस्माइल खुद कोरोना से हारे जिंदगी की जंग
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Covid-19:लाखों लोगों की जान बचा चुके डॉक्टर इस्माइल खुद कोरोना से हारे जिंदगी की जंग

'दो रुपये वाले डॉक्टर' के नाम से मशहूर हुए आंध्र प्रदेश के डॉक्टर के.एम. इस्माइल हुसैन ने कोरोना से अपनी जान गंवाई

Covid-19:लाखों लोगों की जान बचा चुके डॉक्टर इस्माइल खुद कोरोना से हारे जिंदगी की जंग

कुरनूल: लोगों की ज़िंदगी बचाने वाले डॉक्टर को खुदा कहा जाता है. इस संजीदा वक्त में भी कोरोना वॉरियर डॉक्टर्स खुदा से कम नहीं हैं. इसी सिम्त में एक डॉक्टर ने कोरोना से अपनी जान गंवा दी. दरअसल हम बता रहे हैं लाखों गरीब लोगों का मुफ्त में इलाज करने वाले आंध्र प्रदेश के डॉक्टर के.एम. इस्माइल हुसैन (Dr KM Ismail Hussain) के बारे में जो कोरोना वायरस के खौफनाक असर से खुद को नहीं बचा सके और इस महामारी से बचाने की लड़ाई के दौरान ही दम तोड़ दिया.

डॉक्टर के.एम. इस्माइल हुसैन आंध्र के साथ ही पड़ोसी रियासतों तेलंगाना और कर्नाटक में भी लोगों के बीच काफी फेमस थे. डॉ इस्माइल की अचानक तबियत खराब होने लगी उन्हें सांस लेने में तकलीफ के चलते हॉस्पिटल में एडमिट कराया गया. लेकिन वो ज़्यादा समय तक सर्वाइव नहीं कर सके और हॉस्पिटल में उन्होंने आखिरी सांस ली. मौत के बाद डॉ इस्माइल में कोरोना (Coronavirus) की तस्दीक हुई.

डॉ इस्माइल की मौत की ख़बर मिलने ही कई वो लोग मायूस हो गए जिनकी ज़िंदगी उन्होंने महज दो रुपये फीस लेकर बचाई थी. उनके जनाजे में बड़ी तादाद में लोगों के आने की उम्मीद थी, लेकिन कोरोना की वजह से जारी गाइडलाइन्स के चलते घर के केवल 5 से 6 लोग ही शामिल हुए. डॉक्टर इस्माइल में कोरोना के तस्दीक के बाद उनके घर के मेंबरान का भी टेस्ट किया गया जिनमें से कुछ मेंबरान में भी कोरोना तस्दीक हुई. फैमिली मेंबरान के साथ ही हॉस्पिटल के स्टाफ को भी क्वारंटीन कर दिया गया है.

डॉक्टर इस्माइल ने इलाज के लिए गरीबों से पैसा नहीं लिया ज्यादातर आबादी के गरीब होने की वजह से कभी भी मशवरा फीस जैसा कुछ चार्ज नहीं किया. हॉस्पिटल में जहां वह बैठते उसी के पास में एक बॉक्स रखा होता था. जिसके पास जितनी हैसियत होती वो उसी हिसाब से पैसे डाल दिया करता था. पहले लोग उन्हें 2 रुपये देकर चले जाते थे. कई लोग इसे ही उनकी फीस समझने लगे और वह 'दो रुपये वाले डॉक्टर' के तौर पर फेमस हो गए.

बता दें कि दिल्ली के निजामुद्दीन मरकज में आयोजित तबलीगी जमात के प्रोग्राम में शामिल होकर लौटे लोगों की पहचान के लिए हुकूमत ने डॉक्टर इस्माइल की मदद ली थी. वह 10 अप्रैल तक घर-घर जाकर जमातियों की पहचान के काम में लगे रहे थे. वह अपने सभी मरीजों के साथ एक जैसा ही रवैया इख्तियार करते थे चाहे मुस्लिम हो या फिर हिंदू. उन्होंने अपनी मौत से कुछ दिनों पहले तक भी सैकड़ों कोरोना मुतास्सिर की ज़िदगी बचाई थी.

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