लियाकत अली ख़ाँ (Liaquat Ali Khan) की सरकार के तख़्तापलट की साजिश रचने के जुर्म में फैज कैद में रहे. फ़ैज़ (Faiz Ahmad Faiz) ने आधुनिक उर्दू शायरी को एक नई ऊँचाई दी.
Trending Photos
नई दिल्ली: फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ (Faiz Ahmad Faiz) भारत के जाने माने उर्दू और पंजाबी शायर थे. उन्हें क्रांतिकारी रचनाओं के लिए जाना जाता है. फैज पर आरोप लगते रहे हैं कि वह कम्यूनिस्ट थे और इस्लाम से इतर रहते थे. जेल के दौरान लिखी गई उनकी कविता 'ज़िन्दान-नामा' को बहुत पसंद किया गया था. उनकी लाइन 'और भी ग़म हैं ज़माने में मुहब्बत के सिवा' बहुत मशहूर है. फैज अहमद फैज की पैदाईश 13 फ़रवरी 1911 को लाहौर के पास सियालकोट शहर, पाकिस्तान में हुई थी. उनकी इब्तिदाई तालीम उर्दू, अरबी और फ़ारसी में हुई.उसके बाद उन्होंने स्कॉटिश मिशन स्कूल तथा लाहौर युनिवर्सिटी से पढ़ाई की. उन्होंने अंग्रेजी और अरबी में एमए किया. शुरुआत में वो एमएओ कालेज, अमृतसर में लेक्चरर बने. उसके बाद मार्क्सवादी विचारधाराओं से बहुत प्रभावित हुए. उन्होंने उर्दू साहित्यिक मासिक अदब-ए-लतीफ़ का संपादन किया. विभाजन के वक़्त लाहौर चले गए. वहाँ जाकर इमरोज़ और पाकिस्तान टाइम्स का संपादन किया. इसके बाद सेना में भर्ती हुए. लियाकत अली ख़ाँ की सरकार के तख़्तापलट की साजिश रचने के जुर्म में कैद में रहे. फ़ैज़ ने आधुनिक उर्दू शायरी को एक नई ऊँचाई दी. फैज को 1963 में सोवियत रशिया से लेनिन शांति पुरस्कार प्रदान किया गया. 1984 में नोबेल पुरस्कार के लिये भी उनका नामांकन किया गया था.
और क्या देखने को बाक़ी है
आप से दिल लगा के देख लिया
---
तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म भरने लगते हैं
किसी बहाने तुम्हें याद करने लगते हैं
---
नहीं निगाह में मंज़िल तो जुस्तुजू ही सही
नहीं विसाल मयस्सर तो आरज़ू ही सही
---
वो बात सारे फ़साने में जिस का ज़िक्र न था
वो बात उन को बहुत ना-गवार गुज़री है
---
आए तो यूँ कि जैसे हमेशा थे मेहरबान
भूले तो यूँ कि गोया कभी आश्ना न थे
यह भी पढ़ें: 'मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर, लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया'
ज़िंदगी क्या किसी मुफ़लिस की क़बा है जिस में
हर घड़ी दर्द के पैवंद लगे जाते हैं
---
न जाने किस लिए उम्मीद-वार बैठा हूँ
इक ऐसी राह पे जो तेरी रहगुज़र भी नहीं
---
''आप की याद आती रही रात भर''
चाँदनी दिल दुखाती रही रात भर
---
कब ठहरेगा दर्द ऐ दिल कब रात बसर होगी
सुनते थे वो आएँगे सुनते थे सहर होगी
---
गर बाज़ी इश्क़ की बाज़ी है जो चाहो लगा दो डर कैसा
गर जीत गए तो क्या कहना हारे भी तो बाज़ी मात नहीं
Video: