सैयद अब्बास मेहदी रिज़वी: अज़ीम अमरोहवी का नाम अदबी हलक़ों में अदब के साथ लिया जाता है. तक़रीबन निस्फ़ सदी तक उन्होंने इल्मो अदब की आबयारी की. इन तमाम मुद्दत के दौरान उनकी 50 से ज़्यादा किताबें मंज़रे आम पर आयीं. ज़बानों अदब का फ़रोग़ उनकी ज़िंदगी का नस्बुल ऐन रहा. अज़ीम साहब के तारीख़ी शऊर और मंतिख़ि ज़ेहन ने उर्दू शायरी के तमाम असनाफ़ पर अपने तख़य्युलात और अफ़कार के आबशार बरसाए. 29 अप्रैल 1945 में एक दींदार घराने में पैदा हुए अज़ीम अमरोहवी ने 24 साल की उम्र में ही शेर कहना शुर कर दिया था.
अपनी तख़लीक़ात का अज़ीम जख़ीरा अज़ीम छोड़ गए
अपनी तख़लीक़ात का जो जख़ीरा अज़ीम साहब छोड़ गए वो उर्दू ज़बान और नई नस्लों के लिए बाइसे फ़ख़्र है. शायर के साथ साथ वो माहिरे इस्लामियात भी थे. मजलिसों और महफ़िलों में जिस अंदाज़ में वो शरीक होते थे उससे इस बात का इज़हार होता था कि मोहम्मद स.अ. और उनकी आल से किस क़दर अक़ीदत और उन्स है. एक ही शख़्सियत के कितने रुख़ थे. उर्दू वालों के लिए एक शायर. मज़हबी लोगों के लिए मुबल्लिग़े दीन.अदीबों के लिए मुसन्निफ़. दानिशवरों के लिए मुफ़क्किर और सहाफ़ियों के लिए इल्म का बोलता ज़ख़ीरा. अज़ीम अमरोहवी को साबिक़ सद्रे जम्हूरिया ज्ञानी जैल सिंह व प्रतिभा देवी पाटिल के हाथों ऊर्दू अवार्ड से सरफ़राज़ किया जा चुका था. उनकी दर्जनों किताबें भी यूपी उर्दू एकेडमी और दिल्ली के सक़ाफ़ती इदारों की जानिब से अवार्डयाफ़्ता थीं.
दिल्ली के एस्कॉर्ट अस्पताल में ली आख़िरी सांस
उसूल परस्त अज़ीम अमरोहवी पिछले 15 बरसों से दिल की बीमारी से जूझ रहे थे. कल रात भी उन्के सीने में शदीद दर्द हुआ जिसके बाद 9 अक्टूबर की रात दिल्ली के एस्कॉर्ट अस्पताल में दाख़िल कराया गया, जहां उन्होने आज दोपहर तक़रीबन 2 बजे आख़िरी सांस ली. अज़ीम साहब अपने पीछे 5 भाई,2 बेटे और 1 बेटी छोड़ गए.
Zee Salaam LIVE TV