'अपनी सूरत से खफा बैठे हैं हम', गुलाम हमदानी मुसहफी के शेर
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'अपनी सूरत से खफा बैठे हैं हम', गुलाम हमदानी मुसहफी के शेर

Ghulam Hamdani Mashafi Poetry: गुलाम हमदानी मुसहफी उर्दू के बड़े शायर थे. गुलाम हमदानी का मुकाबला इंशा के साथ था. वह दिल्ली के करीब अकबरपुर में पैदा हुए. उनका बचपन अमरोहा में गुजरा. पढ़ें गुलाम हमदानी के शेर.

'अपनी सूरत से खफा बैठे हैं हम', गुलाम हमदानी मुसहफी के शेर

Ghulam Hamdani Mashafi Poetry: शेख वली मुहम्मद के बेटे मुसहफा अकबरपुर में पैदा हुए और अमरोहा में पले बढ़े. बचपन से ही इन्हें शेर व शायरी का शौक था. इनके दौर में मीर, दर्द और सौदा जैसे शायर बुजुर्ग हो गए थे. इनका असर इनकी शाइरी पर पड़ा. मुग़ल शासन के बुरे दौर में कई शायरों ने दिल्ली छोड़ दिया. मुसहफ़ी भी फैज़ाबाद पहुंचे, वहां टाण्डा में नवाब मुहम्मद यार ख़ां के दरबार में मुलाज़िम हुए. 

जो मिला उस ने बेवफ़ाई की 
कुछ अजब रंग है ज़माने का 

आस्मां को निशाना करते हैं 
तीर रखते हैं जब कमान में हम 

ऐ इश्क़ जहाँ है यार मेरा 
मुझ को भी उसी जगह तू ले चल 

छेड़ मत हर दम न आईना दिखा 
अपनी सूरत से ख़फ़ा बैठे हैं हम 

चमन को आग लगावे है बाग़बाँ हर रोज़ 
नया बनाऊँ हूँ मैं अपना आशियाँ हर रोज़ 

चाहूँगा मैं तुम को जो मुझे चाहोगे तुम भी 
होती है मोहब्बत तो मोहब्बत से ज़ियादा 

लोग कहते हैं मोहब्बत में असर होता है 
कौन से शहर में होता है किधर होता है 

बाल अपने बढ़ाते हैं किस वास्ते दीवाने 
क्या शहर-ए-मोहब्बत में हज्जाम नहीं होता 

देख कर हम को न पर्दे में तू छुप जाया कर 
हम तो अपने हैं मियाँ ग़ैर से शरमाया कर 

कर के ज़ख़्मी तू मुझे सौंप गया ग़ैरों को 
कौन रक्खेगा मिरे ज़ख़्म पे मरहम तुझ बिन 

आँखों को फोड़ डालूँ या दिल को तोड़ डालूँ 
या इश्क़ की पकड़ कर गर्दन मरोड़ डालूँ 

आग़ोश की हसरत को बस दिल ही में मारुँगा 
अब हाथ तिरी ख़ातिर फैलाऊँ तो कुछ कहना 

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