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हिंदू महासभा ने किया नाथूराम गोडसे की 'ज्ञान शाला' का आगाज, गर्माया सियासी माहौल

जबकि भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद को इसमें जगह नहीं दी गई है. गोडसे की जयंती और पुण्यतिथि के बाद अब इस "ज्ञान शाला" के आगाज के बाद नया सियासी विवाद खड़ा हो गया है

फाइल फोटो
फाइल फोटो

ग्वालियर: हिंदू महासभा (Hindu Mahasabha) ने दौलतगंज में मौजूद अपने दफ्तर में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी (Mahtma Gandhi) का कत्ल करने वाले नाथूराम गोडसे (Nathuram Godse) की 'ज्ञान शाला' का आगाज़ किया है. जिसमें वीर सावरकर, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की स्थापना करने वाले डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार और श्यामा प्रसाद मुखर्जी को नाथूराम गोडसे का प्रेरणा स्त्रोत बताया गया है, जबकि भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद को इसमें जगह नहीं दी गई है. गोडसे की जयंती और पुण्यतिथि के बाद अब इस "ज्ञान शाला" के आगाज के बाद नया सियासी विवाद खड़ा हो गया है.

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इस मामले को लेकर साबिक मंत्री और एमपी कांग्रेस के सीनियर नेता डॉ. गोविंद सिंह ने भाजपा सरकार पर निशाना साधा है. उन्होंने कहा कि 'भाजपा और आरएसएस की सरकार बनती है तब महात्मा गांधी के कातिलों का महिमामंडित किया जाता है.' डॉ. गोविंद सिंह ने कहा कि जिन महात्मा गांधी को पूरी दुनिया आदर्श मानती है उनके कातिलों के नाम पर ज्ञान शाला खोली जा रही है. गोडसे का प्रचार-प्रसार करना कत्ल को बढ़ावा देना है.

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इस मामले में कांग्रेस नेता गोविंद सिंह (Govind Singh) ने सीएम शिवराज से मांग की है कि 'जिस तरह मध्य प्रदेश में माफियाओं पर कार्रवाई की जा रही है, उसी तरह इस मामले में भी कार्रवाई होनी चाहिए. उन्होंने साफ कहा कि अगर शिवराज सिंह गोडसे ज्ञान शाला खोलने वालों पर कार्रवाई नहीं करते तो माना जाएगा कि इन लोगों को मुख्यमंत्री का साथ मिला हुआ है.

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क्या-क्या होगा इस ज्ञान शाला में
ग्वालियर में अखिल भारतीय हिंदू महासभा का दफ्तर पिछले 80 सालों से मौजूद है. इस दफ्तर में 1947 में नाथूराम गोडसे ने कुछ दिन बिताए थे. हिंदू महासभा के लोग बापू के कातिल नाथूराम गोडसे को अपना आराध्य मानते हैं. इस ज्ञान शाला के ज़रिए नाथूराम के प्रेरणा स्त्रोत रहे महापुरुषों की कुर्बानियों का प्रचार प्रसार किया जाएगा. इस ज्ञान शाला के जरिये गोडसे के आखिरी बयान का भी किया प्रचार किया जाएगा.

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बता दें कि ग्वालियर में गोडसे को लेकर पहले भी बवाल हो चुका है. बात 15 नवंबर 2017 की है, जब ग्वालियर में हिंदू महासभा ने महात्मा गांधी के कातिल नाथूराम गोडसे का मंदिर बनाया था, जिसमें नाथूराम गोडसे की मूर्ति कायम की गई थी, इसके बाद मध्य प्रदेश की सियासत में उबाल आ गया था. उस वक्त ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा था कि, 'बापू के कातिल नाथूराम गोडसे की मूर्ति को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा' और ये मामला इतना तूल पकड़ गया कि उस वक्त की शिवराज सरकार और जिला प्रशासन ने भारी विरोध के चलते उस मूर्ति को वहां से हटाकर जब्त कर लिया था.

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ग्वालियर से गोडसे का संबंध
ग्वालियर शुरू से ही हिंदू महासभा का गढ़ रहा है, यहां हिंदू महासभा आज भी गोडसे को भगवान की तरह पूजती है. 20 जनवरी 1948 को गांधी जी का कत्ल की नाकाम कोशिश के बाद गोडसे ग्वालियर आए थे और यहां कुछ दिन रहे. कुछ दिनों बाद गोडसे ने अपने साथियों के बदले खुद ही गांधी की जान लेने की तैयारी की और ग्वालियर में हिंदू महासभा के नेता के साथ मिलकर महात्मा गांधी के कत्ल की साजिश रची. इस दौरान उन्होंने शिंदे की छावनी से पिस्टल खरीदी गई और यहीं पर नाथूराम को महात्मा गांधी की जान लेने का प्रशिक्षण भी दिया गया था. नाथूराम गोडसे ने ग्वालियर में स्वर्ण रेखा नदी के किनारे बंदूक चलाने की ट्रेनिंग ली थी.

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