अल्लामा इकबाल का नाम मोहम्मद इकबाल है. उन्हें अल्लामा ऐजाज से नवाजा गया. वह 9 नवंबर 1877 में पंजाब के सियालकोट में पैदा हुए. उन्होंने स्नातक और परास्नातक लाहौर के सरकारी कॉलेज से किया.
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Poetry of the Day: अल्लामा इकबाल ने बीसवीं सदी में उर्दू जबान में बेहतरीन शेर लिखे. अल्लामा इकबाल का नाम मोहम्मद इकबाल है. उन्हें अल्लामा ऐजाज से नवाजा गया. वह 9 नवंबर 1877 में पंजाब के सियालकोट में पैदा हुए. उन्होंने स्नातक और परास्नातक लाहौर के सरकारी कॉलेज से किया. इसके बाद आगे की पढ़ाई करने के लिए यूरोप चले गए. इसके बाद जर्मनी गए. यहां इन्हें म्यूनिख युनिवर्सिटी से फिलॉसफी में पीएचडी की उपाधि से नवाजा गया. पी.एचडी. की उपाधि प्राप्त करने के बाद उन्होंने लंदन से बैरिस्ट्री का इम्तिहान भी पास किया. साल 1908 में वापस लाहौर आए. इकबाल ने बहुत लिखा लेकिन वह शायरी के लिए ज्यादा मशहूर हुए. उन्होंने 'असरार-ए-खुदी' किताब लिखी जिसके लिए उन्हें नाइट हुड की उपाधि से नवाजा गया. 'रुमुज-ए-बेखुदी', 'बंग-ए-दारा' भी मशहूर किताबें हैं. इरान में उन्हें उनके फारसी में किए गए काम के लिए याद किया जाता है. 21 अप्रैल 1938 को वह इस दुनिया को अलविदा कह गए.
भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी
बड़ा बे-अदब हूँ सज़ा चाहता हूँ
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न समझोगे तो मिट जाओगे ऐ हिन्दोस्ताँ वालो
तुम्हारी दास्ताँ तक भी न होगी दास्तानों में
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फ़क़त निगाह से होता है फ़ैसला दिल का
न हो निगाह में शोख़ी तो दिलबरी क्या है
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इल्म में भी सुरूर है लेकिन
ये वो जन्नत है जिस में हूर नहीं
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हया नहीं है ज़माने की आँख में बाक़ी
ख़ुदा करे कि जवानी तिरी रहे बे-दाग़
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हरम-ए-पाक भी अल्लाह भी क़ुरआन भी एक
कुछ बड़ी बात थी होते जो मुसलमान भी एक
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माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं
तू मेरा शौक़ देख मिरा इंतिज़ार देख
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तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ
मिरी सादगी देख क्या चाहता हूँ
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नशा पिला के गिराना तो सब को आता है
मज़ा तो तब है कि गिरतों को थाम ले साक़ी
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ढूँडता फिरता हूँ मैं 'इक़बाल' अपने आप को
आप ही गोया मुसाफ़िर आप ही मंज़िल हूँ मैं
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