अंग्रेजी सामराज को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया हिंदुस्तान में बसने वाली हर क़ौम ने हर मज़हब ने बराबर से अपनी हिस्सेदारी और ज़िम्मेदारी अदा की...इसीलिए आज़ाद हैं हम...
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सैय्यद अब्बास मेहदी रिज़वी: हमारे बुज़ुर्गों ने अपने मुल्क की आज़ादी को पामाल करने वाली उस सफ़ेद फ़ाम क़ौम को अपने रगों के ख़ून के आख़िरी क़तरों तक बर्दाश्त नहीं किया. मुल्क की इज़्ज़तो हुरमत बचाने के लिए आज़ादी के दीवानों ने पानी के माफ़िक़ ख़ून बहा दिया...और अपनी साबित क़दमी की बदौलत ही अंग्रेजी सामराज को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया हिंदुस्तान में बसने वाली हर क़ौम ने हर मज़हब ने बराबर से अपनी हिस्सेदारी और ज़िम्मेदारी अदा की...इसीलिए आज़ाद हैं हम...
अंग्रेज़ों के ज़ुल्मो-सितम के आगे न झुके, न डरे और न क़दम पीछे किए
हिंदुस्तान को तवील जद्दोजेहद के बाद आज़ादी मिली...इस आज़ादी के लिए हमारे असलाफ़ हमारे आबाओ अजदाद ने, हमारे बुज़ुर्गों और पुरखों ने जबर्दस्त क़ुर्बानियों का नज़राना पेश किया...जानों माल की क़ुर्बानियां दीं....तहरीकें चलाई...तख़्तो दार पर चढ़े...फांसी के फंदे को जुर्रत, हौसले, कमाल और बहादुरी के साथ बख़ूबी गले लगाया....क़ैदो बंद की सोअबते झेली...और हुसूले आज़ादी के पुरख़तर मैदान में जमे रहे डटे रहे ...और आख़िरकार अंग्रेज़ो को मुल्क से बाहर जाने पर मजबूर कर दिया...अंग्रेज़ हुकमरानों ने अपनी हुकूमत बचाने और इक्तेदार को क़ायम रखने के लिए तरह तरह की चालें चली...तदबीरें की...रिश्वतें दीं...लालच दिए..फूट डालो और राज करो का मंसूबा पूरे मुल्क में बड़े पैमाने पर चलाया....फ़िरक़ावाराना इख़्तेलाफ़ात पैदा किए....हक़ाएक़ को तोड़ मरोड़ कर पेश किया....आपस में ग़लत फ़हमियां फैलाईं...तारीख़ को मस्ख़ किया....अंग्रेज़ों ने हिंदुस्तान के मासूम बाशिंदों पर ज़ुल्मो-सितम के पहाड़ तोड़े....और नाहक़ लोगों को फांसी दी गई...भीड़ पर गोलियां बरसाई गईं...चलती रेल गाड़ियों से बाहर फेंक दिया गया...मगर अंग्रेज़ों के ज़ुल्मों सितम को कुचलने और तौक़े ग़ुलामी को गर्दन से निकाल फेंकने के लिए मुजाहिदीने आज़ादी नें बहादुरी के साथ ज़ालिम फिरंगियों का मुक़ाबला किया...
तहरीके आज़ादी में मुसलमानों का किरदार
तहरीके आज़ादी में मुसलमानों ने भी बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया...अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ बाक़यादा मुनज़्ज़म जंग नवाज़ सिराजुद्दौला के नाना अली वर्दी ख़ान ने 1754 में की...और इनको शिकस्त दी... इसे पहली मुनज़्ज़म जंगे आज़ादी क़रार दी गई... अली वर्दी ख़ां के बाद उनके नवासे सिराजुदौला ने भी 1757 में अग्रेज़ों से जंग लड़ी मगर अफ़सोस की उन्हें इस जंग मे शिकस्त हुई.
तारीख़ के सफ़हात में प्लासी की जंग 1757 में और बक्सर की जंग 1764 की तफ़सील मौजूद है, यह जंग भी हिंदुस्तानियों की शिकस्त पर ख़त्म हुई. इसके बाद अंग्रेज़ बंगाल, बिहार और उड़ीसा पर पूरी तरह हावी हो गए. उधर दक्कन में अंग्रज़ों के ख़िलाफ़ जंग का महाज़ क़ायम करने वाले हैदर अली और टीपू सुल्तान ने फिरंगियों की नाक में दम कर रखा था. हैदर अली और उनके बेटे टीपू सुल्तान नें अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ चार जंगे लड़ी. 1784 में टीपू सुल्तान नें तोपों की जंग लड़ी और अंग्रेज़ों को पस्पा किया. अंग्रेज़ अपनी इस शिकस्त का बदला लेने के लिए बेचैन थे और आख़िरकार 1799 में टीपू ने जामे शहादत नोश फ़रमाया. उन्होंने अंग्रेज़ों की ग़ुलामी से मौत को बेहतर क़रार दिया. सुल्तान टीपू का एक मशहूर मक़ौला है कि गीदड़ की सौ साल की ज़िंदगी से शेर की एक दिन की ज़िंदगी अच्छी है.
आज़ादी की तहरीक वतन के रखवालों के सीनें में आग की तरह जल रही थी. 1857 की बग़ावत ने हर हिंदुस्तानी के दिलो दिमाग़ में इंक़ेलाब पैदा कर दिया. मंगल पांडे की आवाज़ पर लब्बैक कहने के लिए 1857 में हिंदुस्तान के उलेमाए किराम की एक जमात पैदा हुई. इन उलेमा ने वो इंक़ेलाब अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ बरपा किया कि अंग्रेजी हुकूमत को दिन में तारे नज़र आने लगे. इस इंक़ेलाब के मुलज़िम अंग्रेज़ों की निगाह में इतने बड़े मुजरिम समझे गए कि 1857 की ग़दर में पकड़े गए हिंदुस्तान के जांबाज़ों को या तो फांसी दे दी गई या बहुत से लोगों को अंडमान निकोबार में मौत से बत्तर ज़िंदगी गुज़ारने के लिए भेज दिया गया.
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