Opinion: आतंकवाद के खिलाफ फतवा; बहुत देर कर दी हुजूर आते-आते!
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Opinion: आतंकवाद के खिलाफ फतवा; बहुत देर कर दी हुजूर आते-आते!

Indian Muslim and Terrorism: पहलगाम हमला और पाकिस्तान में घुसकर आतंकी ठिकानों के खिलाफ भारतीय सेना की कार्रवाई के बाद भारत के मुसलामानों ने जो आतंकवाद के खिलाफ एकजुटता का प्रदर्शन किया वो अभूतपूर्व है. इससे ने सिर्फ आतंकवाद को लेकर मुसलमानों के स्टैंड का सार्वजनिक प्रकटीकरण हुआ है, बल्कि इससे बहुसंख्यक समाज के अन्दर भी एक स्पष्ट सन्देश गया है, जो मुसलमानों को आतंकवाद के समर्थक के तौर पर संदेहास्पद नज़र से देखते थे.       

Opinion: आतंकवाद के खिलाफ फतवा; बहुत देर कर दी हुजूर आते-आते!

मौन, हमेशा सहमति का प्रतीक हो ये ज़रूरी नहीं है. यह पाश्चाताप और आत्मग्लानि का भी सूचक है, लेकिन इसे चालाक लोग सहमति मान लेते हैं.   

मौन धारण कर लेने से कई बार आप समस्याओं से बच जाते हैं, तो कई बार आपका ये मौन आपको डूबा भी देता है. समस्याओं में फंसा देता है.  

जैसे पिछले 30 सालों में मुसलमानों के मौन ने उन्हें डुबाया और फंसाया है.

भारत सहित दुनिया भर में आतंकवाद का सबसे बड़ा भुक्तभोगी मुसलमान रहा है, जितना नुकसान उनका हुआ किसी अन्य का नहीं हुआ, जितनी लाशें उनकी गिरी, औरतें विधवा हुई और बच्चे यतीम हुए किसी दूसरे का नहीं हुआ. देश बर्बाद हुआ सो अलग. इसके बावजूद इसे मुसलमान और इस्लाम से जोड़कर देखा जाता रहा है.  

मुसलमानों ने भी कभी खुलकर आतंकवाद का प्रतिकार नहीं किया.

ओसामा बिन लादेन, मुल्ला ओमर, बगदादी, आदि मुस्लिम नाम देखकर कुछ लोग इस दुविधा में फंसे रहे कि आतंकवाद से शायद मुसलमान या इस्लाम का भला होगा. दुनिया पर इस्लाम का दबदबा कायम होगा!  उन्हें  लगा ये पश्चिमी ताकतों से लड़ने का हथियार है! 
 
वो इस खेल को समझ नहीं पाए कि आतंकवाद विशुद्ध रूप से आर्थिक और राजनीतिक साम्राज्यवाद का एक हथियार है, जिसका भविष्य हमेशा वाइट हाउस में बैठने वाला आदमी और उसका यूरोपियन पार्टनर्स तय करता है. ये एक भय का कारोबार है, जिसमें मुस्लिम देश और मुसलमानों से सिर्फ डिलीवरी बॉय का काम लिया जा रहा है, और इसका मुनाफा इसका बोर्ड और डायरेक्टर्स खा रहा है! 

जब डोनाल्ड ट्रम्प अभी अभी सीरिया के अंतरिम सरकार के प्रधानमंत्री अहमद अल शरा से मिलकर सीरिया पर लगे अमेरिकी प्रतिबंधों को हटा दिया तो सब कुछ क्रिस्टल की तरह साफ़ हो चुका है. यही अहमद अल शरा जब आतंकवादी संगठन अलकायदा का लड़ाका था, तो अमेरिका ने उसपर 10 मिलियन डॉलर का इनाम रखा था.

ओसामा बिन लादेन को पकड़ लेने वाला अमेरिका अहमद अल शरा को अबतक इसलिए नहीं पकड़ पाया था, क्यूंकि उसे सीरिया में रूस समर्थित 40  साल पुरानी बशर अल असद सरकार को अहमद अल शरा की मदद से उखाड़ फेंकनी थी. 

दुनिया के साम्राज्यवादी ताकतों ने इस खेल में भारत सहित दुनिया भर के 2 अरब से मुसलमानों की छवि बिगाड़ दी. पूरे इस्लाम को आतंकवाद का जनक बता दिया. इसके बाद भी समाज का बौद्धिक तबका सोता रह गया. न तो कभी इस खेल का पर्दाफाश करने की कोशिश की न कभी खुलकर इसका विरोध किया.  

भारत के मुसलमान भी इस मामले में एक एक पैसिव नागरिक बने रहे. आतंकवाद के आरोप में मुसलमानों के पकड़े जाने पर सरकार को कोसने और बंद कमरे में मातम मनाने के अलावा कुछ नहीं कर सके.

कभी कांग्रेस तो कभी भाजपा सरकारों को कोसते रहे है, जबकि आतंकवाद के आरोपों में सबसे ज्यादा UPA-1 और 2 में मुस्लिम नौजवानों को गिरफ्तार किया गया. इसी बीच NIA ने  इंडियन मुजाहिदीन नाम का एक कागज़ी आतंकवादी संगठन भी पैदा कर दिया.  

भाजपा के शासनकाल में आतंकवाद के फर्जी केस में पकड़े गए दर्ज़नों मुस्लिम युवा सबूतों के आभाव में रिहा कर दिए गए.. 

बाल, दाढ़ी, नेल पॉलिश, लिपस्टिक, कपड़े, मेंहदी लगाने, बाल डाई करने, हगने-मूतने जैसे छोटी-छोटी बातों पर फतवा देने वाले उलेमा आतंकवाद के खिलाफ उठकर कभी मुखर नहीं हुए. पाकिस्तान में तो मौलानाओं का एक ग्रुप आतंकवाद का ब्रांड एंबेसडर तक बन गया. कुछ पढ़े-लिखे नौजावान भी उनके बहकावे में आ गए. हीरे जैसी मिली ज़िन्दगी को गोली- बन्दूक, बम-तम में गंवा दिया.  

लेकिन हाल में पहलगाम में हुए आतकंवादी हमले के बाद ऐसा पहली बार हो रहा है, जब देश का मुसलमान आतंकवाद और पाकिस्तान के खिलाफ खुलकर विरोध कर रहा है. इस मामले में वो एक पैसिव एजेंट की पहचान छोड़कर एक्टिव रोल निभा रहा है. पहलगाम हमले के बाद तमाम मस्जिदों में इस घटना की निंदा की गई, और मृतकों की आत्मा की शांति के लिए दुआएं की गई. 

10 साल के  भाजपा शासन ने मुसलमानों के दिमाग की बत्ती जला दी है. 

मुसलमानों के इस पहल और व्यवहार का बाकी समाज पर इतना फर्क पड़ा है कि पहलगाम हमले में मरने वाले उन 26 पर्यटकों में सबसे ज्यादा चर्चा और हमदर्दी वो मुसलमान घोड़ा वाला कश्मीरी सैयद आदिल हुसैन शाह ले गया जो इस हमले में मरने वाल एकलौता मुसलमान था..देशवासियों ने उसे हीरो बना दिया. उसके परिवार को सर आँखों पर बैठाया.

बाद में पाकिस्तान में घुसकर करवाई करने की मांग हो या ऑपरेशन सिंदूर का समर्थन देना हो, मुसलमानों ने अपनी जबरदस्त सहभागिता सुनिश्चित की है. इससे लगा कि मुसलामानों ने भी साझा दर्द का अनुभव किया है. ये पूरे देश, समाज और खुद मुसलमानों के लिए एक सकारात्कम संदेश है. 

यहाँ भी लोग विंग कमांडर व्योमिका सिंह से कहीं ज्यादा कर्नल सोफिया कुरैशी के पराक्रम को याद किया और उनकी चर्चा की गई..

कर्नल सोफिया कुरैशी पर जब मध्य प्रदेश में भाजपा विधायक ने टिपण्णी की, तो पूरा देश उनके विरोध और सोफिया के समर्थन में एकजुट हो गया..

दुनिया आपका दिल नहीं देखती, बोले गए शब्द सुनती है, और किए गए ऐक्शन को देखती है. इसलिए ये बदलाव जरूरी है.  मुसलमानों को देश के लिए देश के साथ ऐसी ही दिल से अपना रोल प्ले करना होगा, तभी देश से साम्प्रदायिक ताकतें भी कमजोर होंगी. उनकी मजबूती के लिए मुसलमान बराबर के जिम्मेदार हैं.  

इस बीच एक अच्छी खबर ये है कि जो मुसलमान जिस मौलाना को भाजपा का एजेंट और नॉएडा के हिंदी न्यूज़ चैनलों का पेड मौलाना बताते हैं, उन्होंने एक शानदार काम किया है. 

उत्तर प्रदेश के बरेली जिले में सुन्नी बरेलवी उलमा ने 15 मई को आतंकवाद के खिलाफ फतवा जारी किया था. 

ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना मुफ्ती शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में फतवा जारी किया, जिसमें बड़ी संख्या में सुन्नी उलेमा और पत्रकार मौजूद थे. फतवे में हाफिज सईद के संगठन लश्कर-ए-तैयबा और मसूद अजहर के संगठन जैश-ए-मोहम्मद आदि को गैर इस्लामी करार दिया गया और कहा गया कि जिन लोगों ने इस्लाम के नाम पर लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठन बनाए हैं, और उनके जरिए लोगों की हत्याएं कर रहे हैं, ये सभी चीजें शरीयत की रोशनी में अवैध और नाजायज और हराम हैं.

इस्लाम शांति और सद्भाव का धर्म है और समाज के हर वर्ग में शांति पसंद करता है.  सभी मनुष्यों के लिए न्याय का आदेश देता है.

फतवे में कहा गया कि क़ुरआन के मुताबिक एक निर्दोष व्यक्ति की हत्या पूरी मानवता की हत्या है. एक अच्छा मुसलमान वह है जिसके हाथ, पैर और जुबान किसी को नुकसान न पहुंचे.  अपने देश से प्यार करना किसी के ईमान का आधा हिस्सा है. 

फतवे में सख्त लहजे में कहा गया कि आजकल कुछ लोग कुरआन और इस्लाम में "जिहाद" के अर्थ को गलत तरीके से पेश करके इस्लाम के नाम पर एक-दूसरे को मारने की कोशिश कर रहे हैं. यह पूरी तरह से इस्लाम और कुरान और हदीस के सिद्धांतों (नियमों) के खिलाफ है.

हम ये नहीं कह रहे कि इससे पहले किसी ने आतकंवाद की निंदा नहीं की होगी या फतवा नहीं जारी किया होगा.. लेकिन ये अमल मुसलमानों को लगातार करना था. दूसरे मुस्लिम संगठनों को भी इसपर मुखर होकर विरोध करना था.. मुस्लिम समाज के अंदर इसे पब्लिक डिस्कोर्स का हिस्सा बनाना था कि आतंकवाद से मुसलमानों का कोई लेना देना नहीं है.. हम उतने ही भुक्तभोगी हैं, जितने दुनिया के दूसरे लोग हैं. 

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