'इन्हीं पत्थरों पे चल कर अगर आ सको तो आओ', पढ़ें मुस्तफा ज़ैदी के बेहतरीन शेर
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'इन्हीं पत्थरों पे चल कर अगर आ सको तो आओ', पढ़ें मुस्तफा ज़ैदी के बेहतरीन शेर

Poetry of the day: मुस्तफ़ा ज़ैदी की शादी एक जर्मन लड़की वेरा ज़ैदी (Vera Zaidi) से हुई. जिससे इनकी दो संतानें हैं. साल 1970 में इन्हें और 38 दूसरे ऑफिसर को नौकरी से हटा दिया गया.

मुस्तफा जैदी (Mustafa Zaidi)

Poetry of the day: मुस्तफ़ा ज़ैदी (Mustafa Zaidi) पाकिस्तानी उर्दू शायर थे. उन्होंने पाकिस्तान में सरकारी मुलाजिमत की. उन्हें तेज इलाहाबादी (Teg Allahabadi) के नाम से भी जाना जाता था. मुस्तफ़ा ज़ैदी 10 अक्टूबर 1930 को पैदा हुए. उन्होंने साल 1954 में प्रतियोगी परीक्षा पास की. इसके बाद उपायुक्त और उप सचिव के तौर पर सरकारी मुलाजमत से पहले उनको इंग्लैंड भेजा गया. मुस्तफ़ा ज़ैदी की शादी एक जर्मन लड़की वेरा ज़ैदी (Vera Zaidi) से हुई. जिससे इनकी दो संतानें हैं. साल 1970 में इन्हें और 38 दूसरे ऑफिसर को नौकरी से हटा दिया गया. उनकी शुरूआती शायरी रोमंटिक थी. 17 साल की उम्र में उनके कलाम का पहला संग्रह ज़ंजीरें (1949) छपा. इसके बाद 1964 में 'रोशनी'. 2 अक्टूबर 1970 को उन्होंने कराची में में आखिरी सांस ली. 

तुझ से तो दिल के पास मुलाक़ात हो गई 
मैं ख़ुद को ढूँडने के लिए दर-ब-दर गया 
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हम अंजुमन में सब की तरफ़ देखते रहे 
अपनी तरह से कोई अकेला नहीं मिला 
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यूँ तो वो हर किसी से मिलती है 
हम से अपनी ख़ुशी से मिलती है 
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इन्हीं पत्थरों पे चल कर अगर आ सको तो आओ 
मिरे घर के रास्ते में कोई कहकशाँ नहीं है 
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इश्क़ इन ज़ालिमों की दुनिया में 
कितनी मज़लूम ज़ात है ऐ दिल 
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मैं किस के हाथ पे अपना लहू तलाश करूँ 
तमाम शहर ने पहने हुए हैं दस्ताने 
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इस तरह होश गँवाना भी कोई बात नहीं 
और यूँ होश से रहने में भी नादानी है 
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रूह के इस वीराने में तेरी याद ही सब कुछ थी 
आज तो वो भी यूँ गुज़री जैसे ग़रीबों का त्यौहार 
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मेरे नग़्मात की तक़दीर न पहुँचे तुझ तक 
मेरी फ़रियाद की क़िस्मत कि तुझे छू आई
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वो इक तिलिस्म था क़ुर्बत में उस के उम्र कटी 
गले लगा के उसे उस की आरज़ू करते  
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