एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि हम यह समझते हैं कि जैसी पीढ़ी हमारी थी या हम से पिछले जनरेशन थी कि मां बाप की बात आखिरी लकीर होती थी, उसके आगे आप नहीं जा सकते थे. अब वो दौर बदल गया. अब मुझे बच्चे को बताना पड़ेगा कि मैं जो बात कह रहा हूं वो क्यों कह रहा हूं.
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जी सलाम के एडिटर इरफान शेख़ ने सीनियर आईपीएस ऑफिसर कैसर खालिद के साथ एक्सक्लूसिव बातचीत की. इस दौरान कैसर खालिद ने युवाओं से जुड़े तमाम मुद्दों पर खुलकर अपनी बात रखी. आईपीएस कैसर खालिद ने इस इंटरव्यू में कई ऐसी बातें बताई जो आज के समय में हर मां-बाप और उनके बच्चों को जाननी चाहिए. क्योंकि आज के समय में मां-बाप और उनके बच्चों के बीच जितना फासला बढ़ चुका है वो परेशान कर देने वाला है. इस इंटरव्यू में खालिद कैसर ने बताया कि आखिर मां बाप या फिर बच्चे कहां गलतियां कर रहे हैं और उन्हें दूर करने के लिए हम क्या करना होगा.
क्या है कामयाबी का हासिल करने का तरीका?
एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि वो चीज जो आपको कहीं पर फोकस रखती है, जो आपको किसी काम करने के लिए मोटिवेट करती है, जो आपको सोने नहीं देती, आपको लगता है कि मैं इस चीज कैसे हासिल करूं, वो एक गोल होता है, वो एक ड्रीम होता है. दूसरा यह कि मन के अंदर यह विश्वास होना कि मैं उस चीज को हासिल कर सकता हूं, मेरे अंदर वो सलाहियत है, मैं कोशिश करूंगा तो वहीं पहुंच सकता हूं, ये कनविक्शन है और जब ये दो चीजें मिल जाती हैं तो इंसान वो एक कामयाबी की तरफ अच्छाई की तरफ जिंदगी में कुछ करने की तरफ लेकर जाती है. अगर इन दोनों में से कोई एक चीज मिसिंग है तो इसका नतीजा फ्रस्टेशन होगा.
पहले और अब के मां बाप में क्या फर्क?
उन्होंने आगे कहा बताया कि आज का बच्चा फ्रस्टेट क्यों होता है? हम कहते हैं कि यह करो, क्योंकि हम ये समझते हैं कि उसे यह करना चाहिए लेकिन हम उसे कनवेंस नहीं कर पाते कि उसे ये क्यों करना चाहिए. मैं उसको कभी कोई लॉजिक नहीं देता हूं उसे कभी कोई रीज़नली बात नहीं बताता हूं, तो वो क्यों सुनेगा मेरी बात? वो जब समाज जाता है, स्कूल में जाता है, जब वो डिबेट में जाता है वहां पर वो कारण देता है कि मैं यह बात इसलिए कह रहा हूं या कह रही हूं. लेकिन हम कभी घरों में रीज़न नहीं देते. हम यह समझते हैं कि जैसी जनरेशन हमारी थी या हम से पिछले जनरेशन थी कि मां बाप की बात आखिरी लकीर होती थी, उसके आगे आप नहीं जा सकते थे. अब वो दौर बदल गया. अब मुझे बच्चे को बताना पड़ेगा कि मैं जो बात कह रहा हूं वो क्यों कह रहा हूं.
बच्चे खुदा की वजूद में यकीन नहीं रखे तो डंडा नहीं मारा जा सकता
कैसर खालिद ने आगे बताया कि पहले लोग कितनी देर काम करते थे और कितने लोग काम करते थे, अमूमन हमारी सोसायटी यह स्ट्रक्चर था कि एक मेंबर घर में पूरी तरह से मुलव्विस रखता था. अगर बाप काम कर रहा है तो माएं काम नहीं करती थी, माएं काम कर रही होती थीं तो बाप कुछ ऐसा काम करते थे जिससे कि वो घर पर अटेंशन दे सके. लेकिन अब ऐसा नहीं होता, दोनों की नौकरी बहुत ज्यादा हाई स्ट्रेस हो गई है, दोनों थक कर लौटते हैं, बच्चा दिन भर किसी और के सहारे होता है. या तो वो टीवी के सहारे होगा, या किसी मेड के सहारे होगा ये फिर वो अपने गैजेट के सहारे होगा. ऐसी सूरत में हम बच्चों के साथ कम्युनिकेशन नहीं बना पाते. साथ ही बच्चों को भी नहीं समझा पाते कि इंफॉर्मेशन इज़ नॉट विज़डम. बेशक इंफॉर्मेशन विज़डम की शुरुआत है लेकिन विज़डम तजुर्बे से आता है और यह एक्सपीरियंस मुझे नैरेट करके बच्चे को कनवेंस करना होगा. उन्होंने आगे बताया कि अगर मेरे बच्चे खुदा के वजूद में यकीन नहीं रखते तो मैं उन्हें डंडा नहीं मार सकता. मुझे बच्चों को यह बताना पड़ेगा कि क्यों है?
'बच्चों के थॉट प्रोसेस की इज्ज़त करना बहुत जरूरी'
आईपीएस कैसर ने बच्चों को कनवेंस करने का तरीका बताते हुए कहा कि सबसे पहली बात तो यह कि हमें बराबरी के उसूल पर आजाइए. मैं और मेरा बच्चा किसी बात पर बहस कर रहे हैं तो हम दोनों बराबर हैं. मैं बाप और वो बच्चा नहीं है. उस वक्त हम दोनों बराबर हैं. दूसरा यह कि मैं अपनी बात रखूंगा अपनी लॉजिक और अपने रीज़ंस के साथ. मैं उसको पूरा मौका दूंगा कि वो अपनी बात भी मेरे सामने रखे और अगर मैं उसकी किसी बात इत्तेफाक नहीं रखता तो उसे कहूंगा I agree to disagree. उसको वक्त लगेगा, उसको तजुर्बा चाहिए, उसको दुनिया देखनी है. हो सकता है 10 साल बाद वो इस बात को समझे कि फादर, पापा या मम्मा जिस बात को कह रही हैं वो बात सही थी. लेकिन जैसे ही मैं उसको इंपोज़ करना चाहूंगा तो वो बोलेगा कि यह तो गुलामी है. हमें उसके थॉट प्रोससेस की इज्ज़त करना बहुत जरूरी है.
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