एक सवाल का जवाब देते हुए मनोज सिन्हा ने कहा कि मुझे लगता है कि यहां सबसे बड़ी दिक्कत जो मुझे समझ आ रही थी, वो ये थी कि आम आदमी के लिए प्लेटफॉर्म उपलब्ध नहीं था. वो अपनी बात कहां कहे, ये सामान्य रूप से सबसे बड़ी परेशानी थी. जितने हमारे अधिकारी हैं, वो लोगों से मिले और उनकी समस्याएं दूर करें.
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जम्मू: जम्मू-कश्मीर में धारा 370 खत्म होने के बाद वादी में किस तरह हालात बदल रहे हैं? नए निजाम की दस्तक से हौसलों ने किस तरह उड़ान भरी है? जी सलाम के खास प्रोग्राम "नया सवेरा" #NayaSavera के मंच से जम्मू-कश्मीर के LG मनोज सिन्हा के साथ जी सलाम के एडिटर दिलीप तिवारी ने खास बात चीत की. पढ़ें उनका पूरा इंटरव्यू.
ये जो 8 महीने का सफर रहा है. जो बदलाव की बयार लाने की मंशा थी, केंद्र सरकार की, आप उसे कैसे देखते हैं?
मैं मानता हूं कि इसका मूल्यांकन यहां के लोग करेंगे. वो ही मूल्यांकन सही होगा. मैंने कोशिश प्रारंभ की है, जब परिणाम दिखेंगे तो सही मूल्यांकन हो पाएगा. यहां टैलेंट बहुत है और बहुत कुछ करने की गुंजाइश है. देखते हैं आगे क्या होता है.
पिछले 8 महीनों के कार्यकाल में आप क्या उपलब्धियां गिनाना चाहेंगे. खास तौर पर उद्योगों की बात करें, डीडीसी चुनाव की बात करें या युवाओं में रोजगार की बात करें. इनमें से क्या उपलब्धियां रही हैं, जिन्हें आप जनता के बीच ले जा पाए?
मुझे लगता है कि यहां सबसे बड़ी दिक्कत जो मुझे समझ आ रही थी, वो ये थी कि आम आदमी के लिए प्लेटफॉर्म उपलब्ध नहीं था. वो अपनी बात कहां कहे, ये सामान्य रूप से सबसे बड़ी परेशानी थी. जितने हमारे अधिकारी हैं, वो लोगों से मिले और उनकी समस्याएं दूर करें. इसकी कोशिश की गई है. दूसरा जन अभियान चलाया था, जिसमें केंद्र सरकार द्वारा चलाई जा रहीं सामाजिक सुरक्षा कि 54 योजनाओं का समावेश हो जाए, ये कोशिश की गई थी. मोटे तौर पर जनता की सुनवाई के रास्ते बने हैं. जब मैंने कार्यभार ग्रहण किया था तो यहां कई चुनौतियां थी जैसे डोमिसिल, कास्ट सर्टिफिकेट, आय प्रमाण पत्र, तो उसमें काफी हद तक सफलता मिली है. एक ब्लॉक दिवस कार्यक्रम शुरू कराया गया है, ताकि लोगों की समस्याओं का निदान कराया जा सके. काफी हद तक चीजें चैनेलाइज हो गई हैं.
लोकतंत्र हमारी नसों में है परंपराओं में है. पंचायतें थीं, डीडीसी हैं. यहां पंचायती राज व्यवस्था द्विस्तरीय थी, जब पंचायती राज व्यवस्था देश में लागू हुई तो त्रिस्तरीय पंचायती व्यवस्था लागू हुई. इस बार कोशिश की है कि यहां भी वो व्यवस्था लागू हो. डीडीसी के चुनाव में हुए. लोग शांतिपूर्ण ढंग से उत्साहपूर्वक मतदान किया. युवाओं में बड़ा उत्साह था. पंचायती राज व्यवस्था को मजबूत करने के लिए काम किया जा रहा है. ये सच है कि जम्मू कश्मीर को समझने के लिए अगर बात मैं कहूं तो सभी को क्लीयेरिटी रहेगी. यहां का बजट बाकी राज्यों की तुलना में सबसे ज्यादा है. पिछले साल भी एक लाख करोड़ रुपए था. इस साल संसद ने जो बजट पास किया है. वह एक लाख आठ हजार छ सौ इकसठ करोड़ रुपए के करीब है. उसके पहले साल 90 हजार करोड़ रुपए था. जम्मू कश्मीर की जनसंख्या एक करोड़ पैंतीस लाख के करीब है. विकसित राज्यों को छोड़ दिया जाए तो पिछड़े राज्यों जैसे बिहार की आबादी 11 करोड़ के आसपास है और उसका बजट 2 लाख करोड़ रुपए है. उत्तर प्रदेश की आबादी 25 करोड़ रुपए से ज्यादा और बजट 5 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा है. तो मोटे तौर पर तुलनात्मक दृष्टि से यहां बजट 6-7 गुना ज्यादा रहा है.
इसके बावजूद यहां 977 गांव सड़क से नहीं जुड़े हैं. कठिनाई तब होती है, जब लोग कहते हैं कि पीने के पानी की समस्या है. लोग कहते हैं कि गांव में बिजली नहीं पहुंची है. तो ये जो मूलभूत सुविधाएं हैं, जो सभ्य समाज में जीने के लिए जरूरी होती हैं, वो जम्मू कश्मीर में किन्हीं कारणों से नहीं हो पाई हैं. मैं उन कारणों में नहीं जाना चाहता. मैं कोशिश कर रहा हूं कि आने वाले दो ढाई वर्षों में मूलभूत सुविधाएं लोगों तक पहुंच जाएं. 6 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा सिर्फ पानी के लिए रखे गए हैं. एक दिन मैं गया था गुलमर्ग में, विंटर गेम्स का उद्घाटन करने. घाटी में बर्फ और बिजली लोगों ने पहली बार देखी है. गर्मी में जम्मू में बिजली की जो हालत होती है, हाय तौबा मच जाती है. अब जो मेन ट्रांसमिशन लाइन बनाई है भारत सरकार ने. वह 14 साल पहले मंजूर हुई थी. जिसमें पुंछ या रजौरी में 400 केवीए का सबस्टेशन बनना था, लेकिन अभी तक नहीं बन पाया.
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यहां ग्लैडिनी में एक सबस्टेशन है. भेल ने वहां ट्रांसफर्मर लगाए हैं और कोशिश है कि इस बार गर्मियों में जम्मू के लोगों को हम थोड़ी राहत दे सकेंगे. साथ ही अगले तीन सालों में जम्मू में 23 किलोमीटर और श्रीनगर में 25 किलोमीटर मेट्रो बनाकर देवेंद्र राणा जी को उसमें चढ़ाने का काम करूंगा, ये मैं सार्वजनिक रूप से कह रहा हूं. टेक्नोलॉजी की बात करूं तो जैसे आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस है, रोबोटिक्स है, ब्लॉक चेन हो. यहां के युवाओं में काफी टैलेंट है और वो जिस तरह की बात करते हैं, वो लोग हमारे इलाके में नहीं हैं. लेकिन ना आईटी पार्क है, ना आईटी टावर है. तो आईटी टावर का काम दे दिया है 18 महीने में तय था 2 महीने बीत गए हैं. 16 महीने में जम्मू और श्रीनगर दोनों जगह आईटी टावर तैयार हो जाएंगे.
आज के युग में डाटा सेंटर ना हो, तो वो राज्य और केंद्र शासित प्रदेश कहां जाएगा. मैं समझता हूं कि इन्हीं मूलभूत बातों पर हम फोकस कर रहे हैं. एक बात मैं कहना चाहता हूं कि पंचायती राज व्यवस्था को मजबूत करना है. क्योंकि वह लोकतंत्र की नींव है. पिछले साल बैक टु विलेज कार्यक्रम में मैंने जो हिसाब लगाया था उसके मुताबिक 4290 पंचायतें हैं यहां पर. एक दो पंचायतें थी जिनके पास 50 लाख से 40-42 लाख रुपए थे. आज कोई पंचायत नहीं होगी, जिनके पास काम करने के लिए एक करोड़ रुपए से कम फंड होगा.डीडीसी चुनाव जो हुआ है. हर जिले को 10 करोड़ रुपए दे रहे हैं. डीडीसी चेयरमैन बीडीसी को पैसा दे रहे हैं. ताकि जमीन पर जो काम अभी तक नहीं हुआ है वो हो सके. रोजगार की बात करें तो निजी निवेश ना होने की वजह से यहां के लोग सरकारी नौकरियों पर आश्रित रहे हैं. यहां 4 लाख से ज्यादा सरकारी मुलाजिम हैं. वहीं बिहार में 3 लाख 10 हजार हैं. 85 हजार के आसपास दिहाड़ी मजदूर हैं. लेकिन जिस तरह से चला है उसे देखकर मुझे हैरानी होती है कि ये शासन चल कैसे रहा था? देश में प्रधानमंत्री मोदी ने एक वर्क कल्चर स्थापित किया है. पहले शिलान्यास होता था और परियोजना का उद्घाटन 15 साल बाद होता था. लेकिन अब शिलान्यास के साथ ही उसके उद्घाटन की तारीख भी तय कर दी जाती है. अब इस प्रक्रिया को जम्मू कश्मीर में भी लागू कर दी जाएगी. बिना टेंडर के काम हुए हैं. बिना अप्रूवल के काम हुए हैं. अब से जो टेंडर नहीं है, अप्रूव नहीं है. उनका ट्रेजरी बिल ही नहीं देगी. इससे कठिनाई हुई है लेकिन इन्हें झेलने के लिए हम तैयार हैं. एक पारदर्शी व्यवस्था बनाने की दिशा में काम हो रहा है.
जब बैक टु विलेज कार्यक्रम शुरू किया था. विजिटिंग ऑफिसर से हमने कहा था कि जिस पंचायत में आप जाइए. दो ऐसे नौजवानों की पहचान करें, जो अपना कुछ करना चाहते हैं. जम्मू कश्मीर बैंक को ये निर्देश दिया गया था कि ऐसे नौजवानों को फाइनेंस उपलब्ध कराइए. अब तक 20 हजार से ज्यादा लोग इसका फायदा ले चुके हैं. दो लाख से 10 लाख रुपए तक लोगों ने कर्ज लिया है और अपना काम कर रहे हैं.
हमने कार्यक्रम का नाम नया सवेरा दिया है, रोशनी नहीं दिया है. क्योंकि रोशनी को लेकर काफी विवाद रहे हैं. मैं आपसे जानना चाहता हूं कि जम्मू कश्मीर की जनता जिस सवेरे का इंतजार कर रही थी वो सवेरा हो गया है या उसमें थोड़ी रोशनी और डालनी बाकी है?
सूरज की किरणे दिख गई हैं पूरा प्रकाश भी जल्द देखेंगे.
आप केंद्र में मंत्री रहे हैं, सियासत में रहे हैं. आप उस प्रदेश में आते हैं, जहां पर सियासत में लोग इतने शामिल होते हैं, देश के कई प्रधानमंत्री भी वहीं से आते हैं. अभी आपने आदेश दिया है कि जम्मू कश्मीर की सभी सरकारी इमारतों पर 15 दिन के अंदर तिरंगा फहरा दिया जाएगा. इसको हम बड़े बदलाव का संकेत माने.
भारत कोई जमीन का टुकड़ा नहीं है. ये जीता जागता राष्ट्र पुरुष है. ये हर भारतीय कर्तव्य है और सर्वोच्च न्यायालय का भी निर्देश है कि हर सरकारी भवन पर तिरंगा लहरना चाहिए. इसलिए जम्मू कश्मीर में भी हर सरकारी इमारत पर तिरंगा फहराने का निर्देश दिया गया है, जो नहीं मानेगा उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी.
लंबे समय बाद पाकिस्तान के पीएम और पाकिस्तान के प्रमुख कह रहे हैं कि पुराने मुद्दों को छोड़कर आगे बढ़ने का वक्त आ गया है. बैक चैनल डिप्लोमेसी के जरिए भी बातचीत हो रही है और सीज फायर का उल्लंघन भी कम हुआ है. इसकी वजह सख्ती है या पाकिस्तान को समझ आ गया है कि इस तरह से बात आगे बनेगी नहीं.
मैं अल्लाह से दुआ करूंगा कि पाकिस्तान को सद्बुद्धि आए. उन्हें अपने नागरिकों की चिंता करनी चाहिए. जिस तरह से कोविड फैल रहा है, उन्हें वैक्सीन की चिंता करनी चाहिए. भारत अब बहुत समर्थ देश है. दुनिया की चौथी सबसे मजबूत आर्मी हमारे पास है. जब गलवान घाटी और बाकी स्थानों पर हमारी सेना मुकाबला कर सकती है. तो किसी का भी मुकाबला करने में हमारी सेना समर्थ है. मुझे लगता है खतरनाक खेल खेलते रहे हैं. अब उन्हें समझना चाहिए कि अगर आग लगाएंगे तो खुद ही उसमें जलेंगे.
विरोधियों का कहना है कि कभी ईडी, कभी इनकम टैक्स तो कभी सीबीआई के नाम पर बीजेपी अपने विरोधियों को परेशान करती रहती है. इस पर आप क्या टिप्पणी करेंगे.
देश में बहुत से लोग हैं, जो विपक्ष की राजनीति में थे लेकिन उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई. जांच एजेंसियों को उनका काम स्वतंत्र रूप से करने देना चाहिए. साथ ही जो लोग कहते हैं कि राजनीतिक विद्वेष से कार्रवाई हुई है तो मैं उस बात को नकारता हूं. साथ ही सार्वजनिक रूप से वचन देता हूं कि एक भी निर्दोष के खिलाफ कार्रवाई नहीं होगी.
आवाम की बात कार्यक्रम के तहत क्या आप राज्य के अंतिम व्यक्ति तक पहुंच पाएंगे?
ऐसा कोई दावा नहीं है, कोशिश रहेगी. इस धरती पर कोई पूर्णांक नहीं है. हम भी सीख रहे हैं. लोगों से बात करके मुझे जानकारी मिलती है. पहली आवाम की बात के बाद ज्यादा जानकारी मिलेगी. मैं भी यहां के लिए नया हूं. जैसे जैसे लोगों से बात होगी, मुझे भी समझने में सहूलियत होगी.
यहां औद्योगिकरण की रफ्तार धीमी है. ट्राइपोट और कस्टम क्लीयरेंस की बात हुई है. निर्यात से 5 हजार करोड़ का लक्ष्य भी है. तो क्या नई गतिविधियों से यहां इंडस्ट्री को बल मिलेगा?
नई इंडस्ट्रियल पॉलिसी में 28400 करोड़ रुपए का लॉन्ग टर्म इंडस्ट्रियल इन्सेंटिव का प्रावधान किया गया है. उसमें 25 हजार करोड़ रुपए जीएसटी के ही हैं. पहले भी अन्य राज्यों में इन्सेंटिव दिए गए हैं लेकिन लोगों ने इंसेंटिव ले लिए लेकिन इंडस्ट्री भी नहीं आयी. ऐसे में हमने प्रावधान किया है कि जब इंडस्ट्री लग जाएगी, तभी उन्हें इंसेंटिव दिए जाएंगे. राज्य में काफी निवेश आने वाला है. इसके लिए ट्रांसपोर्टेशन को बेहतर किया जा रहा है. रेलवे की कनेक्टिविटी अगले साल तक हो जाएगी. साथ ही ट्राइपोड और स्टोरेज के लिए भी कई कंपनियां यहां आ रही हैं. रेलवे का केंटेनर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया भी यहां काम शुरू कर रहा है. कार्गो शिपिंग भी जल्द शुरू होगी और जम्मू और श्रीनगर से 24 घंटे के लिए हवाई यातायात भी जल्द शुरू होगा.
स्वास्थ्य और शिक्षा, दो ऐसे क्षेत्र हैं, जिनसे राज्य के विकास को गति मिलती है. लेकिन यहां इन क्षेत्रों में हालात इतने अच्छे नहीं है. इस दिशा में आप क्या कर रहे हैं?
मैं इस बात से सहमत नहीं हूं. पिछले कुछ सालों में यहां 7 नए मेडिकल कॉलेज आए हैं. दो एम्स, जम्मू और श्रीनगर, दो कैंसर इंस्टीट्यूट और बोन इंस्टीट्यूट, बच्चों के लिए अस्पताल. तो स्वास्थ्य के क्षेत्र में इतना काम हुआ है. देश के प्रधानमंत्री ने यहां इतने इंस्टीट्यूट दिए हैं. कोविड की तैयारी में जिला अस्पतालों में भी ऑक्सीजन प्लांट लगे हैं. कई बन गए हैं, कई बन रहे हैं. ये सच है कि यहां प्राइवेट सेक्टर में अच्छे अस्पताल नहीं हैं. हमारी कोशिश है कि आने वाले दिनों में यहां कुछ अस्पताल आ जाएंगे. मेडिसिटी और एजुसिटी के निर्माण के लिए भी प्रयास किए जा रहे हैं.
एजुकेशन के क्षेत्र में राज्य में 7 यूनिवर्सिटी हैं. जम्मू अकेला शहर है, जहां आईआईटी भी है, आईआईएम भी हैं. ऐसा किसी शहर में नहीं है. जम्मू और कश्मीर यूनिवर्सिटी भी हैं. बड़ी पुरानी यूनिवर्सिटी हैं. नई एजुकेशन पॉलिसी को लागू करने के लिए काम हो रहा है. स्कूली शिक्षा में वोकेशनल कोर्सेज पर जोर दिया जा रहा है. पिछले साल 61 हजार का एनरोलमेंट हुआ था. इस बार एक लाख से ज्यादा का एनरोलमेंट हुआ है.
कश्मीर के केसर को ईरान से टक्कर मिल रही है. जीआई टैग की दिशा में क्या प्रयास किए जा रहे हैं?
ईरान के केसर का कश्मीर के केसर से कोई मुकाबला नहीं है. जीआई टैगिंग होने के बाद ये अंतर दुनिया को पता चल गया है. जीआई टैगिंग के बाद अब कश्मीर के केसर की कीमत ईरान के केसर से ज्यादा हो गई है. सेब के उत्पादन में अगर हम हाई डेंसिटी उत्पादन की तरफ जाते हैं तो आने वाले चार साल में हम चार गुना उत्पादन ज्यादा कर सकते हैं. इसी तरह अखरोट का उत्पादन भी बढ़ा सकते हैं. जमीन संबंधी नियमों को लेकर मैं कहना चाहता हूं कि लोग हाई डेंसिटी प्लांटेशन कर सकते हैं. जम्मू में दूध के उत्पादन की दिशा में बढ़ोत्तरी हो रही है और आने वाले तीन सालों में अमूल यहां से 5 लाख लीटर दूध की खरीद करेगा.
कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास का भी मुद्दा है, रोजगार का भी मुद्दा है.
रोजगार, पुनर्वास और आवास एक दूसरे से लिंक्ड हैं. भारत सरकार ने 6 हजार नौकरी और 6 हजार घर उन लोगों के लिए पहले घोषित किए थे. पहले किन्हीं कारणों से ये नौकरियां उन्हें नहीं मिल पाती थी. आज मैं ये कहना चाहता हूं कि 167 पदों को छोड़कर बाकी सलेक्शन बोर्ड को भेज दिए गए हैं और जून तक ये सभी पद भर जाएंगे.
3265 मकानों के टेंडर हो चुके हैं और बाकी के तीन महीनों में हो जाएंगे. कश्मीर के लोग भी चाहते हैं कि कश्मीरी पंडित वापस लौटे. कुछ ताकतें हैं जो इसके खिलाफ हैं लेकिन अधिकतर कश्मीरी चाहते हैं कि वो लोग वापस लौटे.
डीडीसी चुनाव शांतिपूर्ण हुए लेकिन हाल ही में दो पार्षदों की हत्या हुई. उससे फिर लगता है कि आतंकी ताकतें चुनौती देने की कोशिश कर रही हैं.
ये कोशिश हुई है और आगे भी होगी. इसमें कितनी सतर्कता रखी जाएगी. वो सार्वजनिक रूप से नहीं कहा जा सकता लेकिन इस पर पूरा ध्यान है.
घाटी में फिल्मों की शूटिंग का दौर फिर से लौट पाएगा?
हाल ही में मशहूर गायक जुबिन नौटियाल के एक गाने की शूटिंग जम्मू कश्मीर में हुई है और कई अन्य फिल्म निर्माता भी यहां आए हैं. जिस तरह से 60-70 के दशक में फिल्मों की शूटिंग कश्मीर में हुआ करती थी, आने वाले दिनों में वैसा ही माहौल देखने को मिलेगा.
जून में अमरनाथ यात्रा शुरू होने वाली है. आप इसे कितनी बड़ी चुनौती मानते हैं?
पूरे देश में ये सोचते हैं कि इसमें बड़ी तकलीफ होती है लेकिन आज के समय में इस यात्रा में किसी को कोई तकलीफ नहीं होगी. रामबन में ऐसा भवन तैयार किया जा रहा है, जिसमें 3-4 हजार लोग बारिश की स्थिति में ठहर सकें. अगले दो महीने में फ्रेम स्ट्रक्चर बनाने जा रहे हैं. जम्मू में भी अमरनाथ श्राइन बोर्ड का कार्यालय और 4 हजार लोगों के ठहरने के लिए भवन का निर्माण अगले साल तक हो जाएगा. दो साल में अमरनाथ यात्रा के रास्तों में किसी को तकलीफ ना हो, ऐसी व्यवस्था करने जा रहे हैं. देश के साधू संतों से भी निवेदन किया गया है कि वह अमरनाथ यात्रा पर आएं. उन्हें तकलीफ ना हो और वो अच्छा भाव लेकर जाएं.
दरबार के मूवमेंट में बड़ा लाव-लश्कर लगता है. क्या इसमें कुछ बदलाव आएगा?
200 ट्रक फाइल जम्मू से श्रीनगर जाती है और श्रीनगर से जम्मू आती है. जम्मू में 15 अप्रैल से सचिवालय में मैं कोई फाइल नहीं लूंगा. धीरे धीरे कंप्यूटराइजेशन की दिशा में काम हो रहा है. अगली बार ट्रकों की संख्या में कमी आ जाएगी और धीरे धीरे खत्म हो जाएगी.
दिल्ली कटरा हाइवे को विकास के लिए अहम माना जाता है. मार्च में शुरू होने की संभावना थी, थोड़ा लेट हुआ है. तो क्या इसमें गति आएगी?
कोरोना के चलते पूरी दुनिया में विकास की रफ्तार रुकी है. भारत में भी ऐसा हुआ है और जम्मू कश्मीर में भी. लेकिन आने वाले दिनों में इसमें तेजी आएगी और समय से काम पूरा कर लिया जाएगा.
आप उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखते हैं. तो जब आप जम्मू कश्मीर में काम कर रहे हैं तो क्या आपका जम्मू कश्मीर को लेकर आपके नजरिए में क्या बदलाव आया है?
मैं किसी के कहने पर नजरिया नहीं बनाता हूं, खुद अनुभव करता हूं और फिर वैसी धारणा बनाता हूं. जम्मू कश्मीर के लोग बहुत अच्छे हैं और चाहते हैं कि गुड गवर्नेंस हो और पार्दर्शिता से विकास हो.
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