पुरानी दिल्ली में रहने वाले मोहम्मद तकी बताते हैं कि "इस बार कुछ नए तरीके की पतंगे बनाई है जिसमें खासतौर से कोरोना से बचने के पैगाम लिखे हैं.
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दिल्ली: कोरोना ने इंसानी जिदंगी को पूरी तरह बदलकर रख दिया है. इसी बदलाव का असर इस बार 15 अगस्त के मौके पर भी देखने को मिल रहा है. हर साल पुरानी दिल्ली का आसमान 15 अगस्त के नज़दीक आते ही रंग बिंरगी पतंगों से सजा नज़र आता है. इस बार भी ये नज़ारा आम है लेकिन कोरोना वायरस के इस दौर में लोग पंतग के ज़रिए भी एक बड़ा पैगाम दे रहे हैं. इस बार उड़ने पतंगों के ज़रिए कुछ दुकानदार कोरोना से बचने के तरीकों का पैगाम दे रहे हैं. इसके पीछे मकसद लोगों को बैदार करना है.
पुरानी दिल्ली में रहने वाले मोहम्मद तकी बताते हैं कि "इस बार कुछ नए तरीके की पतंगे बनाई है जिसमें खासतौर से कोरोना से बचने के पैगाम लिखे हैं. पतंग के ज़रिए चेहरे पर मास्क लगाने, हाथों को सैनिटाइज रखने, ज़रूरी काम होने पर ही घर से बाहर निकलने और सोशल डिस्टेसिंग पर अमल करने की बात लिखी गई है. ताकि जब कोई पतंग खरीदे या पतंग कट कर किसी के घर जाए तो वो लोग बैदार हो जाएं वो कोरोना से बचाव के तरीके अपनाकर इस लड़ाई में अपना तआवुन दें. मोहम्मद तकी का कहना है कि पतंगों के ज़रिए दिए जाने वाले मैसेज से लोगों को बैदार करने की ख्वाहिश थी इसलिए इस बार ये मुहिम चलाई जा रही है.
पुरानी दिल्ली में पतंग उड़ाने की रिवायत आज़ादी के दौर से चली आ रही है. जानकार बताते है कि उस वक्त लोग अग्रेंज़ों के खिलाफ पतंगों पर नारे लिखकर अपने मुल्क से मोहब्बत का इज़हार किया करते थे. बाद में जब मुल्क आज़ाद हुआ तो आज़ादी की खुशी नें रंग बिरंगी पतंगों को उड़ाकर खुशी का इज़हार किया गया. आज भी हर साल 15 अगस्त के मौके पर पुरानी दिल्ली के लाल कुआं इलाके में दिल्ली की सबसे बड़ी पतंग मंडी लगती है और आसपास के इलाके में आज़ादी के दिन की रौनक देखते ही बनती है. लालकिले के नज़दीक होने के चलते यहां 15 अगस्त को लेकर लोगों में अलग ही खुशी नज़र आती है.
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