`अज्ञेय` ने नवप्रयोगों से दिनमान के जरिए सरोकारी पत्रकारिता को एक नई दिशा दी
Birthday Special: सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन, अज्ञेय का पूरा नाम था. `अज्ञेय` उपनाम उन्हें प्रेमचंद्र द्वारा दिया गया था. गौतम बुद्ध की निर्वाण स्थली कुशीनगर अज्ञेय की जन्मस्थली थी.
सूनी-सी सांझ एक
दबे पांव मेरे कमरे में आई थी
मुझको वहां देख
थोड़ा सकुचाई थी.
किसी ने सही ही कहा हैं कि, श्रेष्ठ रचनाएं अपना पाठक स्वयं ढूंढ लेती हैं. अज्ञेय के बारे में यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा, क्योंकि उनका वैविध्यपूर्ण विस्तृत यथार्थवादी लेखन आज के दौर में भी प्रसांगिक है. अगर सही आशय में कहा जाए तो, हिंदी के सर्वाधिक प्रतिष्ठित साहित्यकारों में से एक अज्ञेय के एक-एक शब्द काफी विचारणीय होते हैं.
इन्होंने कविता, कहानी, उपन्यास, यात्रा-वृतांत, निबंध, आलोचना और डायरी जैसी साहित्य की सभी विधाओं में अपना श्रेष्ठ सृजन किया. साहित्य में प्रयोगवाद और प्रगतिवाद के प्रवर्तक अज्ञेय साहित्य में हमेशा नई धारा के हिमायती थे. अज्ञेय ने गद्म और पद्म दोनों में अपना उत्कृष्ट दिया. दो विपरीत विचारधाराओं पर समान मत रख, वह अपनी हर रचना को उत्तम बना देते थे. अज्ञेय की प्रयोगशीलता के कायल स्वयं हिंदी के शीर्ष आलोचक नामवर सिंह थे.
रचना संसार
आत्मकथात्मक शैली में लिखा गया कालजयी उपन्यास 'शेखर: एक जीवनी' के जरिए अज्ञेय ने व्यक्ति के अंतर्मन के द्वंदो का बेजोड़ मनोविश्लेषण किया है. ठीक उसी प्रकार अपने दूसरे उपन्यास 'नदी के द्वीप' में भी मानव अंर्तसंबंधों को आधार बना मानवीय संवेदनाओं का श्रेष्ठ चित्रण किया है. इस उपन्यास के प्रशंसक महान दार्शनिक ओशो भी थे. वैसे ही अपने तीसरे उपन्यास अपने-अपने अजनबी में अस्तित्ववाद की नए ढंग से व्याख्या कर दार्शनिकता की एक नई दृष्टि पैदा करते हैं. असाध्य वीणा जैसी लंबी कविता लिखना केवल अज्ञेय के बस की बात थी. क्योंकि मैं उसे जानता हूं, पहले मैं सन्नाटा बुनता हूं, प्रिजन डेज एंड अदर पोयम्स (अंग्रेजी में ), अरे यायावर रहेगा याद?, सबरंग, त्रिशंकु, स्मृति, भवंति, तारसप्तक, सदानीरा आदि उनकी प्रसिद्ध रचनाएं हैं.
जीवन परिचय
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन, अज्ञेय का पूरा नाम था. 'अज्ञेय' उपनाम उन्हें प्रेमचंद्र द्वारा दिया गया था. गौतम बुद्ध की निर्वाण स्थली कुशीनगर अज्ञेय की जन्मस्थली थी. 7 मार्च 1911 को जन्मे अज्ञेय की प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही पिता के संरक्षण में हुई. इन्होंने संस्कृत, फारसी अंग्रेजी और बांग्ला भाषा एवं साहित्य का गहन अध्ययन किया. 1925 में पंजाब से एंट्रेंस की परीक्षा पास कर, मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी की. 1929 में लाहौर के फरमन कॉलेज से बीएससी करने उपरांत अंग्रेजी विषय से एम.ए में दाखिला लिया. इसी दौरान आगे भारत के स्वाधीनता आंदोलन से जुड़े. अपने क्रांतिकारी गतिविधियों के कारण 1930 में गिरफ्तार हो गए और 6 वर्ष जेल की सजा भुगतने के बाद 1936 में रिहा हुए. इस दौरान वह महान क्रांतिकारी भगत सिंह के संपर्क में भी रहे. सैनिक, विशाल भारत, नया प्रतीक, दिनमान, नवभारत टाइम्स, वाक, एवरीमैंस जैसी पत्र-पत्रिकाओं का संपादन भी किया.
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1965 में दिनमान पत्रिका के माध्यम से उन्होंने हिन्दी पत्रकारिता में एक नया प्रतिमान स्थापित किया, जो आज भी अनुकरणीय हैं. अपने नवाचार एवं नवप्रयोगों से दिनमान के जरिए सरोकारी पत्रकारिता को एक नई दिशा दी. ऑल इंडिया रेडियो में नौकरी के बाद, कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से लेकर जोधपुर विश्वविद्यालय तक में अध्यापन का भी कार्य किया. विविधता उनकी रचना में ही नहीं, बल्कि उनके संपूर्ण जीवन में थी. साहित्य, संस्कृति और शिक्षा के प्रति उनका विशेष अनुराग था उसी उद्देश्य से होने
वत्सल निधि नामक एक संस्था की स्थापना की. 1964 में आंगन के पार द्वार के लिए उन्हें साहित्य अकादमी और 1978 में कितनी नावों के लिए इन्हें भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला. 4 अप्रैल 1987 को उनका निधन हो गया. उसके पश्चात उनकी योजनाओं को उनकी बुद्धिजीवी जीवनसंगिनी कपिला वात्स्यायन ने पूरी तन्मयता के साथ आगे बढ़ाया. घुमक्कड़ी के शौकीन अज्ञेय देश-विदेश की यात्रा करते रहते थे. बहुआयामी व्यक्तित्व के मालिक अज्ञेय एक कुशल फोटोग्राफर भी थे. संवेदनशील कवि, श्रेष्ठ कथाकार, कुशल संपादक और सफल शिक्षक अज्ञेय अपनी हर रचना से एक नई दृष्टि पैदा करते हैं.
हरे भरे हैं खेत
मगर खलिहान नहीं
बहुत महतो का मान
मगर दो मुट्ठी दान नहीं
भरा है दिल
पर नियत नहीं
हरी है कोख
तबीयत नहीं
अज्ञेय ने अपनी हर रचना के माध्यम से हर परंपरागत शैली और धारा को तोड़ा. विरोधाभासों से भरे अज्ञेय ताउम्र परंपरावादियों के निशाने पर रहे. नए प्रयोगों के आग्रही अज्ञेय एक यथार्थवादी चिंतक भी थे.
ए.निशांत, लेखक एक स्वतंत्र पत्रकार हैं.
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