Kushinagar News: सैयद शहीद बाबा की मजार को लेकर क्यों छिड़ा है विवाद, जानें पूरा मामला
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Kushinagar News: सैयद शहीद बाबा की मजार को लेकर क्यों छिड़ा है विवाद, जानें पूरा मामला

Kushinagar News: भगवान बुद्ध के महापरिनिर्वाण स्थल कुशीनगर से महज 15 किमी दूर फाजिलनगर में ये टीला मौजूद है. ASI के रिकॉर्ड के मुताबिक, ये जगह कभी पूजा-अर्चना का केंद्र हुआ करती थी. यहीं पर एक मजार है. इसी को लेकर विवाद है.

Kushinagar News: सैयद शहीद बाबा की मजार को लेकर क्यों छिड़ा है विवाद, जानें पूरा मामला

Kushinagar News: उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले के फाजिलनगर कस्बे में इन दिनों एक पुराना टीला चर्चा में है. यहां सैयद शहीद बाबा की मजार को लेकर विवाद खड़ा हो गया है. इल्जाम है कि यह मजार भारत सरकार के पुरातत्व विभाग (ASI) द्वारा संरक्षित प्राचीन स्मारक की जमीन पर बनी है. जबकि मजार की देखरेख करने वाले परिवार और मुस्लिम पक्ष का कहना है कि यह मजार सैकड़ों साल पुरानी है और उनके पूर्वजों से इसकी देखभाल होती आ रही है.

मजार की देखरेख करने वाले परिवार का दावा है कि यह मजार बहुत पुरानी है और उनके पूर्वज इसकी देखभाल करते हैं. जबकि स्थानीय लोगों का दावा है कि ये मजार उनकी दो-तीन पीढ़ियों के समय में ही बनी है. पहले यहां एक छोटा सा चबूतरा और लकड़ी की घेराबंदी थी, जिसे बाद में हिंदू-मुस्लिम समुदाय ने मिलकर पक्के निर्माण में बदला है.

क्या है पूरा मामला
दरअसल, भगवान बुद्ध के महापरिनिर्वाण स्थल कुशीनगर से महज 15 किमी दूर फाजिलनगर में ये टीला मौजूद है. ASI के रिकॉर्ड के मुताबिक, ये जगह कभी पूजा-अर्चना का केंद्र हुआ करती थी. विभाग की खुदाई और सर्वे रिपोर्ट में भी इस स्थान को ‘फाजिलनगर का कोट’ कहा गया है, जो बौद्धकालीन और ब्राह्मणवादी सभ्यता से जुड़ा रहा है. इसी टीले के पास एक मजार बनी है, जिसका नाम सैयद शहीद बाबा मजार है.

कितनी बड़ी है यह जगह
भारत सरकार के पुरातत्व विभाग ने जब इस स्मारक को संरक्षित किया था, तब इस टीले की हर जानकारी दर्ज की थी. ज़ी मीडिया के पास मौजूद कागजों के मुताबिक, टीला ‘फाजिलनगर का कोट’ के नाम से जाना जाता है और इसका कुल संरक्षित क्षेत्र 2.25 एकड़ है. साथ ही इसके चारों तरफ लगभग 101 एकड़ का विनियमित इलाके भी है. रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि इस जगह पर रोजाना 200 से ज्यादा लोग और करीब 100 से 180 विदेशी सैलानी आते हैं. वहीं, मजार पर भी हर गुरुवार और शुक्रवार को 200 से 400 लोग पहुंचते हैं. उर्स के मौके पर यह संख्या कई गुना बढ़ जाती है. 

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