लहू से मेरी पेशानी पे हिंदुस्तान लिख देना... क्यों लिखना पड़ गया Rahat Indori को यह शेर
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लहू से मेरी पेशानी पे हिंदुस्तान लिख देना... क्यों लिखना पड़ गया Rahat Indori को यह शेर

Rahat Indori Birthday Special: राहत साहब ने बताया था एक बार उन्हें किसी ने 'जिहादी' कह दिया था. इतना सुनने के बाद राहत साहब रात भर सो नहीं पाए, कभी इधर तो कभी उधर की करवटें बदलते रहे.

फाइल फोटो
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Rahat Indori Birthday Special: एक लंबे अरसे तक पूरी दुनिया में शायरी का सबसे बड़ा चेहरा रहे 'राहत इंदौरी' 11 अगस्त 2020 को हम सब को अलविदा कह गए. लेकिन वो अपनी बेखौफ शायरी का ज़खीरा हम लोगों को दे गए हैं. राहत इंदौरी ने लगभग हर मौजू पर शेर कहे हैं. जिन्हें हम और शायद आप भी हालात के मुताबिक कहीं ना कहीं इस्तेमाल करते रहते हैं. राहत इंदौरी का नाम उन शायरों में शुमार किया जाता है. जो अपनी बेबाकी और बेखौफी के लिए पहचाने जाते थे.

राहत साहब कई बार अपनी शायरी की वजह से कुछ लोगों के निशाने पर आ जाते थे. उन्हें इस बात की बिल्कुल भी परवाह नहीं थी कि उनके शेर को सुनकर कोई क्या कहेगा, वो हमेशा सच के साथ खड़े रहते थे भले ही हवा का रुख जिस तरफ हो. इसीलिए वो लिखते हैं कि-

"हमारे मुंह से जो निकले वही सदाकत है
हमारे मुंह में तुम्हारी जुबान थोड़ी है"

राहत साहब के यूं तो हज़ारों की तादाद में शेर ऐसे हैं जो लोगों को जुबानी याद होंगे लेकिन एक शेर ऐसा है जो उनके देहांत के बाद सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ था. वो शेर था.

"मैं मर जाऊँ तो मेरी एक अलग पहचान लिख देना
लहू से मेरी पेशानी पे हिंदुस्तान लिख देना"

राहत साहब का यह शेर अमर है लेकिन क्या आपको पता है कि ऐसी क्या वजह थी कि उन्हें यह शेर लिखना पड़ गया. दरअसल इस शेर के पीछे एक अहम किस्सा है, जो उन्होंने एक मुशायरे के दौरान खुद बताया था.

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राहत साहब ने बताया था एक बार उन्हें किसी ने 'जिहादी' कह दिया था. इतना सुनने के बाद राहत साहब रात भर सो नहीं पाए, कभी इधर तो कभी उधर की करवटें बदलते रहे. वो बोले कि मैं रात भर अपना जायज़ा लेता रहा कि आखिर मुझमें ऐसा क्या है जिसने मुझे जिहादी बना दिया. जब सुबह तक उन्हें कोई जवाब नहीं मिला. तभी उन्हें अज़ान की आवाज़ सुनाई दी. उन्होंने उस तरफ इशारा किया और कहा-

तू ही बता दे या रब क्या  मैं जिहादी हूं...? फिर वो आगे कहते हैं कि मैं जिहादी तो नहीं हूं लेकिन कुछ अलग जरूर हूं’ इसी घटना के बाद राहत साहब ने शेर लिखा–

मैं मर जाऊं तो मेरी एक अलग पहचान लिख देना, लहू से मेरी पेशानी पे हिंदुस्तान लिख देना.

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