'अब ये भी नहीं ठीक कि हर दर्द मिटा दें, कुछ दर्द कलेजे से लगाने के लिए हैं'
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'अब ये भी नहीं ठीक कि हर दर्द मिटा दें, कुछ दर्द कलेजे से लगाने के लिए हैं'

अख्तर साहब को सन 1976 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया. अख्तर साहब ने फिल्म अनारकली, नूरी, प्रेम पर्वत, रजिया सुल्तान, बाप रे बाप आदि फिल्म के लिए बेहतरीन गाने लिखे

 

प्रतीकात्मक फोटो

नई दिल्ली: जाँनिसार अख्तर उर्दू के बड़े शायरों में शुमार होते हैं. वह 20वीं सदी के भारत के सबसे बड़े शायर और गीतकार में से एक थे. वह मारूफ लिरिसिस्ट जावेद अख्तर के वालिद हैं. जांनिसार अख्तर 18 फरवरी 1914 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर में पैदा हुए थे. अख्तर साहब ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से सन 1935-36 में उर्दू एम. ए. किया था. 1947 के देश बंटवारे के पहले एक ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज में उर्दू के प्रोफेसर रहे और फिर सन 1956 तक भोपाल के हमीदिया कॉलेज में उर्दू विभाग के अध्यक्ष पद पर रहे. अख्तर साहब को सन 1976 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया. अख्तर साहब ने फिल्म अनारकली, नूरी, प्रेम पर्वत, रजिया सुल्तान, बाप रे बाप आदि फिल्म के लिए बेहतरीन गाने लिखे.

आहट सी कोई आए तो लगता है कि तुम हो 
साया कोई लहराए तो लगता है कि तुम हो 
***
आज तो मिल के भी जैसे न मिले हों तुझ से 
चौंक उठते थे कभी तेरी मुलाक़ात से हम
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लोग कहते हैं कि तू अब भी ख़फ़ा है मुझ से 
तेरी आँखों ने तो कुछ और कहा है मुझ से 
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और क्या इस से ज़ियादा कोई नर्मी बरतूँ 
दिल के ज़ख़्मों को छुआ है तिरे गालों की तरह 
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सौ चाँद भी चमकेंगे तो क्या बात बनेगी 
तुम आए तो इस रात की औक़ात बनेगी 
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आँखें जो उठाए तो मोहब्बत का गुमाँ हो 

नज़रों को झुकाए तो शिकायत सी लगे है 
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मुआफ़ कर न सकी मेरी ज़िंदगी मुझ को
वो एक लम्हा कि मैं तुझ से तंग आया था
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देखूँ तिरे हाथों को तो लगता है तिरे हाथ 
मंदिर में फ़क़त दीप जलाने के लिए हैं 
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जब लगें ज़ख़्म तो क़ातिल को दुआ दी जाए 
है यही रस्म तो ये रस्म उठा दी जाए 
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आँखों में जो भर लोगे तो काँटों से चुभेंगे 
ये ख़्वाब तो पलकों पे सजाने के लिए हैं 
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