कट्टरता की बात करने वाले का लिया जाए नाम, पूरा मुल्क कट्टर नहीं हो सकता: यासूब अब्बास
Advertisement

कट्टरता की बात करने वाले का लिया जाए नाम, पूरा मुल्क कट्टर नहीं हो सकता: यासूब अब्बास

यासूब अब्बास ने आगे कहा कि आप पूरे मुल्क को कह रहे हैं कि देश में कट्टरता पनप रही है, जबिक देश में कट्टरता नहीं पनप रही है. आज भी मुल्क में हिंदू का दरवाज़ा मुसलमान से और मुसलमान का दरवाज़ा हिंदू के दरवाज़े लगा हुआ है.

फाइल फोटो

नई दिल्ली: साबिक उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी के ज़रिए राष्ट्रीयता पर दिए गए बयान के बाद वो सियासी लीडरों के निशाने पर आ गए हैं. लोग उनके बयान की सख्त मज़म्मत कर रहे हैं. इसी सिम्त में शिया मज़हबी रहनुमा यासूब अब्बास ने कहा है कि मुल्क में कट्टरता नहीं पनप रही है बल्कि इस देश में आज भी हिंदू-मुसलमान का दरवाज़ा एक दूसरे से मिलता है. 

यासूब अब्बास ने कहा कि हामिद अंसारी के इस बयान मैं सख्त मज़म्मत करता हूं. जिस वक्त कोरोना महामारी पर बातचीत चल रही थी तो उस वक्त उन्होंने मुल्क की कट्टरता पर बात की थी. हमारा मुल्क कट्टर नहीं है, हमारा मुल्क तो एकता का प्रतीक (मज़हर) है. यहां हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, यहूदी, पारसी सब मिल जुलकर रहते हैं. 

उन्होंने आगे कहा कि हमारा मुल्क एक गुलदस्ते की तरह है. अगर कहीं पर कोई कट्टरता की बात हो रही है तो खास तौर पर वही शख्स कर रहा है. उन्होंने हामिद अंसारी को सलाह देते हुए कहा कि जो इंडिविजुअल है आप उसका नाम लेकर बात करनी चाहिए, उसके अंदर आप देश को जोड़ दें यह गलत है. यासूब अब्बास ने आगे कहा कि आप पूरे मुल्क को कह रहे हैं कि देश में कट्टरता पनप रही है, जबिक देश में कट्टरता नहीं पनप रही है. आज भी मुल्क में हिंदू का दरवाज़ा मुसलमान से और मुसलमान का दरवाज़ा हिंदू के दरवाज़े लगा हुआ है. 

क्या कहा था हामिद अंसारी ने
बता दें जुमा के रोज़ हामिद अंसारी ने कांग्रेस लीडर शशि थरूर की नई किताब के विमोचन के दौरान कहा था कि कोरोना वायरस से पहले ही हिंदुस्तानी समाज दो अलग-अलग महामारियों 'मज़हबी कट्टरता' और 'जारहाना राष्ट्रवाद' (Aggressive nationalism) का शिकार हो चुका है. उन्होंने आगे कहा कि इन सब के मुकाबिले 'देश प्रेम' ज्यादा मसबत (सकारात्मक) अवधारणा है. क्योंकि यह फौजी और सकाफती (सांस्कृति) शक्ल से ज्यादा डिफेंसिव है. 

मरकज़ की नरेंद्र मोदी हुकूमत पर तंज़ कसते हुए हामिद अंसारी ने कहा कि चार सालों की छोटी सी मियाद में हिंदुस्तान ने 'उदार राष्ट्रवाद' से 'सांस्कृतिक राष्ट्रवाद' तक की एसी नई सियासी परिकल्पना का सफर तय कर लिया है. जो लोगों के दिमाग में मज़बूती से घर कर गई है. अंसारी ने आगे कहा कि आज मुल्क 'प्रकट' (ज़ाहिरी) 'अप्रकट' (गैरज़ाहिरी) ख्यालों और नज़रियों के खतरे में दिख रहा है, जो 'हम' और 'वो' के ख्याली ज़िमरे (श्रेणी) की बुनियाद पर बांटने की कोशिश करते हैं.

Zee Salaam LIVE TV

Trending news