उर्दू की चाशनी में घुली कान्हा के लिए मीरा की मोहब्बत
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उर्दू की चाशनी में घुली कान्हा के लिए मीरा की मोहब्बत

मीरा की मोहब्बत और इबादत की शायरी को तहज़ीब के लिए पहचानी जाने वाली भाषा उर्दू में ढालने का कारनामा शायर हाशिम रज़ा जलालपुरी ने कर किया है.

उर्दू की चाशनी में घुली कान्हा के लिए मीरा की मोहब्बत

नई दिल्ली: मोहब्बत और इबादत को एक सांचे में ढालकर शायरी करने वाली श्री कृष्ण की दीवानी मीराबाई ने अपनी शायरी में राजस्थानी, बृजभाषा, अधवी और गुजराती समेत कई जबानों के शब्द का इस्तेमाल किया है लेकिन उनकी मोहब्बत और इबादत की शायरी को तहज़ीब के लिए पहचानी जाने वाली भाषा उर्दू में ढालने का कारनामा शायर हाशिम रज़ा जलालपुरी ने कर किया है. 

मीराबाई की सभी 209 पदावली उर्दू भाषा में, ये सुनने में थोड़ा मुश्किल काम लगता है लेकिन ऐसा हुआ है और इसके लिए 5 साल की सख्त मेहनत लगी है. यूपी में जलालपुर के रहने वाले हाशिम रज़ा जलालपुरी ने मीराबाई की 209 पदावली को 1510 शेर में तब्दील कर तारीख रकम कर दी है. मीराबाई की पदावली किताबों में पढ़ाई जाती है लेकिन उनकी पदावली को ब्रज भाषा से उर्दू शायरी में अनुवाद करने का काम आसान नहीं था.

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इस बारे में हाशिम रज़ा जलालपुरी कहते हैं कि उन्हें बचपन से ही मीराबाई की पदावली बेहद पंसद हैं और वे उन्हें सबसे बड़ी शायरा भी मानते रहे हैं, इसलिए जैसे ही उन्होंने मीराबाई की पदावली का उर्दू अनुवाद करने का मन बनाया तो फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा.

हाशिम रज़ा जलालपुरी कहते है कि जो बात मीराबाई ने उस जमाने मे कही उसको लोग सिर्फ ब्रज भाषा में ही पढ़ते है लेकिन मीराबाई की बातें सभी लोगों तक पहुंचे इसके लिए अलग-अलग भाषाओं में उनकी पदावली का ट्रेंसलेशन जरूरी है. उर्दू ऐसी भाषा है जिससे बड़े पैमाने पर लोग जुड़े है. इसके साथ-साथ उन्होंने हिंदी के जानने वालों के लिए भी देवनागरी में इसका अनुवाद किया है जो आसानी से पढ़ी जा सकती है.

साथ ही वो बताते है कि अब उनकी कोशिश कबीर जी के दोहों का उर्दू में अनुवाद के साथ दुनिया के सामने लाने की है. इससे पहले अनवर जलालपुरी ने भगवत गीता का तर्जुमा भी उर्दू शायरी में किया था जो तारीख में दर्ज है.

मीराबाई की पदावली का उर्दू तरजुमा

 

अन गिनत लोगों की तुम ने ऐ हरी
आ पड़ी थी जो भी मुश्किल दूर की

मसला था द्रौपदी की लाज का
लंबा साड़ी का किनारा कर दिया

लोग थे पौशाक उसकी खींचते
जिस्म बे पर्दा ना फिर भी कर सके

भक्त की जां की हिफाज़त के लिए
शेर का था रूप धारा आपने

डूबते गजराज की जां भी बचाई
और मगरमछ के दहन से दी रिहाई

कह रही है मीरा दासी आपकी
दूर कर दो मेरी तकलीफें हरी

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